इंदिरा गांधी पर जस्टिस जगमोहन ने क्या दिया था फैसला? क्या की थी टिप्पणी, जिसकी तारीफ कर रहे CJI रमना

इंदिरा के खिलाफ कुल सात आरोप लगाए गए थे लेकिन कोर्ट ने पांच मामलों में उन्हें बरी कर दिया जबकि दो मामलों में दोषी ठहराया था.  पहला कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने सचिवालय में काम करने वाले यशपाल कपूर को चुनाव एजेंट बनाया था जो उस वक्त सरकारी अफसर थे.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगनमोहन लाल सिन्हा ने PM इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया था. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस एनवी रमना (Justice NV Ramana) ने 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court)  के उस फैसले और उसे लिखने वाले जज की तारीफ की है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ दिया गया था.  दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस जगनमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को देश के राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा फैसला सुनाया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का दोषी ठहराते हुए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था. जज ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया था.

यह मामला 1971 के आम चुनावों से जुड़ा था. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता राजनारायण ने याचिका दाखिल कर इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने रायबरेली के संसदीय चुनाव में सीमा से ज्यादा पैसे खर्च किए हैं एवं सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया है. राजनारायण ने इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इस मुकदमे को इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से भी जाना जाता है. राजनारायण के वकील तब शांति भूषण थे.

मामले की सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी को बयान दर्ज कराने के लिए हाईकोर्ट में बुलाया गया था. शांति भूषण ने लिखा है कि 18 जून 1975 को सुबह 10 बजे जब कोर्ट में खचाखच भीड़ थी, तब जज सिन्हा ने कहा था कि कोर्ट की एक परंपरा है कि जब जज अंदर दाखिल हों, तभी लोगों को खड़ा होना चाहिए, किसी गवाह के आने पर किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए.

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इंदिरा गांधी को अयोग्य घोषित करना साहसिक फैसला : CJI रमना

बाद में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गवाही देने के लिए कोर्ट में पेश हुईं तो उनके सम्मान में कोई खड़ा नहीं हुआ. उनकी पैरवी कर रहे वकील एससी खरे भी आधे-अधूरे खड़े हुए थे. इंदिरा गांधी को यह देखकर अटपटा लगा था. इसी बीच कोर्ट के अरदली ने उनका नाम पुकारकर उन्हें कठघरे में खड़ा होने को कहा. शुरू में इंदिरा थोड़ा सकुचाईं लेकिन कोर्ट का सम्मान करते हुए वो कठगरे में जा खड़ी हुई थीं, हालांकि, उन्हें कठघरे में ही एक कुर्सी उपलब्ध कराई गई, जिस पर वो करीब पांच घंटे तक बैठी रही थीं और अपना बयान दर्ज करवाया था.

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इंदिरा इस वाकये से काफी आहत हुई थीं और जब अदालत से निकलीं तो किसी से बात न करते हुए सीधे अपनी कार में जा बैठी थीं. भारत के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री को अदालत में पेश होना पड़ा था.

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इंदिरा के खिलाफ कुल सात आरोप लगाए गए थे लेकिन कोर्ट ने पांच मामलों में उन्हें बरी कर दिया जबकि दो मामलों में दोषी ठहराया था.  पहला कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने सचिवालय में काम करने वाले यशपाल कपूर को चुनाव एजेंट बनाया था जो उस वक्त सरकारी अफसर थे. कोर्ट ने इसे गलत बताया और दूसरा कि इंदिरा ने चुनावी सभा में लाउडस्पीकर और शामियाने की व्यवस्था सरकारी खर्चे पर करवाई थी. कोर्ट ने इसे भी गलत मानते हुए उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी थी और छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया था. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उस पर स्थगन आदेश दे दिया था.

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