चीन-म्यांमार सीमा पर पूर्वोत्तर के विद्रोही संगठन फिर से सक्रिय : सुरक्षा विशेषज्ञ

आगामी मणिपुर विधानसभा चुनावों को बाधित करने के इच्छुक विद्रोही मणिपुरी समूह चीन के यून्नान प्रांत और म्यांमार में सीमावर्ती इलाकों पर फिर से संगठित हो रहे हैं. साल 2020 में म्यांमार में हुए सैन्य तख़्तापलट का फायदा उठाते हुए म्यांमार-चीन सीमा पर पूर्वोत्तर के विद्रोही संगठनों का आवागमन बढ़ गया है.

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नई दिल्‍ली:

चीन-म्यांमार सीमा पर भारत के खिलाफ़ साज़िशें एक बार फिर तेज़ होने के संकेत मिल रहे हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्वोत्तर के उग्रवादी म्यांमार के साथ लगते चीन के सीमावर्ती इलाकों में फिर से संगठित होने पर काम कर रहे हैं. ये खबर ऐसे समय आई है जब मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं और मणिपुर और नागालैंड में शांति वार्ता का मुद्दा ज़ोरों पर है. इस बीच भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी हमलों का खतरा बढ़ गया है. ऐसा माना जा रहा है कि नगालैंड में शांतिवार्ता रुकी हुई है. इस कारण कुछ नगा समूह धीरज खो रहे हैं और आगामी मणिपुर विधानसभा चुनावों को बाधित करने के इच्छुक विद्रोही मणिपुरी समूह चीन के यून्नान प्रांत और म्यांमार में सीमावर्ती इलाकों पर फिर से संगठित हो रहे हैं. साल 2020 में म्यांमार में हुए सैन्य तख़्तापलट का फायदा उठाते हुए म्यांमार-चीन सीमा पर पूर्वोत्तर के विद्रोही संगठनों का आवागमन बढ़ गया है.

असम राइफल्स के पूर्व महानिरीक्षक मेजर जनरल भबानी एस दास ने कहा, ‘‘उग्रवाद के फिर से सिर उठाने का चीनी पहलू है. कई उग्रवादी समूहों के चीन में लोग हैं.''

ऐसा माना जा रहा है कि ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम' (आई), ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर' और शांति वार्ता के विरोधी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन)(के) के अलग हुए गुट सीमावर्ती इलाकों में फिर से संगठित हो रहे हैं.

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सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेवानिवृत्त अतिरिक्त महानिदेशक और पूर्वोत्तर उग्रवाद संबंधी मामलों के विशेषज्ञ संजीव कृष्ण सूद ने कहा, ‘‘पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों के पीछे मौजूद चीन के हाथ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन हमें इस तथ्य को भी देखना होगा कि कई नगा शांति वार्ता में अनसुलझे मामलों के कारण अधीर हो गए हैं और मणिपुरी उग्रवादी आगामी विधानसभा चुनाव में हस्तक्षेप करना चाहेंगे.''

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मणिपुर में हाल में कुछ उग्रवादी हमले हुए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि ये हमले मणिपुर विधानसभा चुनाव के दौरान किए जाने वाले विस्फोटों की साज़िश का ट्रेलर हैं.

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सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अक्सर अलग-अलग लक्ष्य रखने वाले उग्रवादी समूहों ने बड़े हमले करने के लिए हाथ मिलाया है.

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इन हमलों में पिछले साल 13 नवंबर को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में आईईडी विस्फोटकों और गोलियों से घात लगाकर किया गया वह हमला भी शामिल है, जिसमें असम राइफल्स के एक कमांडिंग अफसर, उनकी पत्नी, बेटे और असम राइफल्स के चार कर्मियों समेत कुल सात लोगों की मौत हो गई थी.

दो प्रतिबंधित उग्रवादी संगठनों पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर (पीएलए) और मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट (एमएनपीएफ) ने चुराचांदपुर जिले के सेहकन गांव में अर्द्धसैन्य बल पर हमले की जिम्मेदारी ली है.

आईपीएस (सेवानिवृत्त) और मॉरीशस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे सुरक्षा विश्लेषक शांतनु मुखर्जी ने कहा, ‘‘आमतौर पर, मैतेई समूहों और नगा समूहों के अलग-अलग और कभी-कभी शत्रुतापूर्ण उद्देश्य होते हैं. वे एक साथ आसानी से नहीं आते. इनके बीच एक मात्र संबंध यह है कि इन्हें चीन के कुनमिंग में शरण मिलती है और वहीं ये हथियार खरीदते हैं.''

मणिपुर के पीएलए से 1980 के दशक में उत्तरी म्यांमार में एनएससीएन ने अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण भी लिया था.

उधर 1950 के दशक में शुरू हुए नगा विद्रोह की आग को चीन ने हवा दी. चीन से नगा विद्रोहियों को प्रशिक्षण और हथियार मिलते थे. इसके अलावा कुछ विद्रोही समूह ईस्ट पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश गए, जहां पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से उन्हें समर्थन मिला.

पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाने वाली शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेशी मार्ग बंद कर दिया, ऐसे में इन समूहों के पास म्यांमार के ज़रिए चीन पहुंचना सबसे अच्छा विकल्प बचता है.

पूर्वी कमान में आतंकवाद रोधी और खुफिया जानकारी के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले सेवानिवृत्त मेजर जनरल बिस्वजीत चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘विद्रोही समूह कई वर्षों से कुनमिंग में ग्रे मार्केट (ऐसा बाजार जहां अनधिकृत माध्यम से सामान बेचा और खरीदा जाता है) से हथियार खरीदते हैं.

अपनी गतिविधियों के लिए धन जुटाने के लिए ये विद्रोही समूह चीन, म्यांमार और थाईलैंड के सीमावर्ती इलाकों में नशीले पदार्थों की तस्करी करते हैं. इसके लिए विद्रोही समूह कई सालों से चीन की यात्रा करते रहे हैं.

हालांकि म्यांमार में आंग सान सू ची की लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद 2019 में एक संयुक्त अभियान में उल्फा (आई), नगा और मणिपुरी समूहों समेत अधिकतर पूर्वोत्तर के विद्रोही समूहों को म्यांमार के शिविरों से बाहर निकाल दिया गया था, लेकिन म्यांमार में उथल-पुथल के बाद ये समूह फिर से पुनर्गठित होने लगे हैं. जनरल चक्रवर्ती ने कहा कि म्यांमार की सेना का अपने सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण नहीं है. म्यांमार के लिए नगा विद्रोहियों की मौजूदगी एक और सिरदर्द है.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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