सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों समलैंगिक विवाह को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो देश-विदेश में चर्चा का विषय रहा. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने विवाह समानता मामले में अपने हालिया फैसले पर कायम रहते हुए कहा कि 13 महत्वपूर्ण फैसलों में मुख्य न्यायाधीश अल्पमत में रहे हैं. वह कल वाशिंगटन, डीसी में जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालयों के दृष्टिकोण' विषय पर तीसरी तुलनात्मक संवैधानिक कानून चर्चा में बोल रहे थे.
मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के 17 अक्टूबर के फैसले पर कहा, "मेरा मानना है कि यह कभी-कभी अन्तःकरण का मत होता है, तो कभी संविधान का वोट होता है. और मैंने जो कहा है, मैं उस पर कायम हूं."
पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सभी न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि विवाह समानता लाने के लिए कानूनों में बदलाव विधायिका के क्षेत्र में अतिक्रमण के समान होगा। हालांकि, समान नागरिक अधिकार और गोद लेने के अधिकार के प्रश्न पर मतभेद था. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसके कौल समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के पक्ष में थे. पीठ के बहुमत ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने कहा कि वह अदालत द्वारा राज्य को ऐसे संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिए एक नया कानूनी ढांचा प्रदान करने का निर्देश देने से असहमत हैं.
मुख्य न्यायाधीश विवाह समानता पर निर्णय संसद पर छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी कायम रहे. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "विवाह कानून में बदलाव करने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. पीठ के सभी पांच न्यायाधीशों के सर्वसम्मत फैसले से, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और समलैंगिक समुदाय के लोगों को हमारे समाज में समान भागीदार के रूप में मान्यता देने के मामले में काफी प्रगति की है, लेकिन इस पर कानून बनाया जाना चाहिए."
मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा था कि जीवन साथी चुनना किसी के जीवन की दिशा चुनने का एक अभिन्न अंग है. उन्होंने कहा, "कुछ लोग इसे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय मान सकते हैं. यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ में जाता है."
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