लंदन से आया छत्रपति शिवाजी का 'बाध नख'... सिर्फ 3 साल के लिए क्यों? बाकी अनमोल धरोहरों की वापसी कब?

लंदन से शिवाजी का बाघ नख तो आ गया, लेकिन सिर्फ तीन साल के लिए ही क्यों? साथ ही सवाल ये भी कि शिवाजी की तीन-तीन पराक्रमी तलवारें कब आएंगी? इंग्लैंड के पास भारत की दूसरी कई धरोहरें भी हैं, वो कब वापस आएंगी?

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नई दिल्ली:

छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस बाघ नख से बीजापुर के अफजल खान को मारा था, वो बाघ नख लंदन से हिंदुस्तान लाया गया है. जिस सतारा के महल में शिवाजी ने 10 नवंबर 1659 को अफजल खान को उसके धोखे की सजा दी थी, उसी सतारा में उनका बाघ नख रखा गया, लेकिन इंग्लैंड से ये बाघनख सिर्फ तीन साल के लिए ही मिला है. ऐसे में सवाल ये है कि हमेशा के लिए क्यों नहीं? और अन्य अनमोल धरोहरों का वापसी कब तक होगी?

वीर शिवाजी के बाघ नख में 365 सालों का गौरवशाली इतिहास समाया हुआ है. इस पर इतिहास की एक तारीख छपी है- 11 नवंबर 1659, दिन सोमवार.

बाघ नख लंदन के अलबर्ट म्यूजियम से 3 साल के लिए भारत लाया गया
सतारा में शुक्रवार को वही इतिहास वर्तमान की आंगन में उतर आया. जिस शिवाजी की प्रेरणा से मराठा इतिहास बनता है, उनसे जुड़ा बाघ नख जनता के बीच प्रदर्शित किया गया. इस मौके पर एक बड़े जलसे में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और दोनों उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार भी शामिल हुए. ये बाघ नख लंदन के अलबर्ट म्यूजियम से तीन साल के लिए भारत लाया गया है. ये महाराष्ट्र सरकार की नजर में इतनी अहमियत इसलिए रखता है, क्योंकि इसके साथ मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के जीवन की एक अहम घटना जुड़ी हुई है कि कैसे उन्होंने अफजल खान के धोखे का करारा जवाब दिया था.

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शिवाजी महाराज का 'बाघ नख'
  • बाघ के पंजे जैसा हथियार 
  • छत्रपति शिवाजी ने किया था इस्तेमाल 
  • इसी से शिवाजी ने अफ़ज़ल ख़ान को मारा 
  • इससे अफ़ज़ल ख़ान का चीर दिया था पेट  
  • 1659 में बीजापुर का जनरल था अफ़ज़ल ख़ान 
  • लंदन के म्यूज़ियम से इसे मुंबई लाया गया
  • मुंबई से ले जाकर सतारा संग्रहालय में रखा गया
  • 7 महीने तक सतारा के संग्रहालय में रहेगा
  • बुलेट प्रूफ़ कवर से वाघ नख की सुरक्षा
कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज प्रतापगढ़ किले में बैठकर बीजापुर सल्तनत के अफजल खान का इंतजार कर रहे थे. अफजल खान ने आते ही शिवाजी को गले लगाने के लिए बाहें पसारी और जैसे ही शिवाजी अफजल खान से गले लगे, अफजल ने शिवाजी को कटार से मारने की कोशिश की. शिवाजी पहले से सतर्क थे, इसलिए अफजल खान को कमर से कसकर पकड़ा और बाएं हाथ में पहने बाघ नख अफजाल के पेट में घुसा दिया. अफजल खान की चीख निकलती इससे पहले दाहिने हाथ में लिए बिछुवे से शिवाजी ने अफजल खान पर फिर हमला किया. शिवाजी का प्रहार इतना घातक था कि अफजल खान का वहीं काम तमाम हो गया.

अफजल खान का पेट चीरने वाले उसी बाघ नख को अब कुछ समय तक सतारा के म्यूजियम में रखा गया है, जो भारत के वीर सपूत की वीरता की निशानी है. इस बाघ नख ने सिर्फ अफजल के पेट पर ही अपनी लकीर नहीं छोड़ी, बल्कि इतिहास पर वो गहरी इबारत लिख दी है जो कभी मिटाए नहीं मिट सकती.

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छत्रपति शिवाजी के पिता एक महान राजा और कुशल रणनीतिकार थे
17वीं सदी के मध्य तक छत्रपति शिवाजी राजे भोसले के पिता शाहजी भोसले एक महान राजा और कुशल रणनीतिकार थे,
लेकिन बीजापुर का आदिलशाही दरबार को शाहजी का पराक्रम फूटी आंख पसंद नहीं आता था. 1648 में अफजल खान शिवाजी के पिता शाहजी को बेड़ियों में जकड़कर बीजापुर ले आया था. इस घटना के छह साल बाद 1654 में उनके बड़े भाई सांभाजी की मौत हुई तो उसमें भी अफजल खान का नाम आया.

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17वीं सदी के अंत में व्यापक राजनीतिक बदलावों से गुजर रहा था महाराष्ट्र 
आज के महाराष्ट्र और उसके नीचे का एक बड़ा हिस्सा उस वक्त व्यापक राजनीतिक बदलावों से गुजर रहा था. भारत के पश्चिमी हिस्से में तीन इस्लामिक सल्तनतों में सत्ता के लिए टकराव था- इनमें गोलकुंडा में कुतुबशाही, अहमदनगर में निजामी शाही और बीजापुर में आदिलशाही सल्तनत थी, और इधर दिल्ली में इन तमाम छोटी-छोटी सल्तनतों से आगे मुगल सल्तनत विराजमान थी, जिसका नेतृत्व शाहजहां कर रहा था.

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उधर सतारा और आसपास शिवाजी अपने सिपहसालारों और भरोसेमंद सैनिकों के साथ अपनी सत्ता को मजबूत बनाने में जुटे थे. शिवाजी की प्रसिद्धि एक कुशल योद्धा और युद्ध रणनीतिकार के रूप में फैल चुकी थी. अपनी गुरिल्ला युद्ध शैली के कारण वो काफी मशहूर हो चुके थे. उसी दौरान शाहजहां की तबीयत बिगड़ी तो दक्षिण में मुगल सल्तनत का कामकाज देख रहा उसका बेटा औरंगजेब वापस दिल्ली जाने लगा. उसकी मुलाकात बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह द्वितीय से हुई. औरंगजेब ने उसे शिवाजी से सतर्क रहने को कहा.

आदिल शाह के नाम पर उसकी सौतेली मां ही हुकूमत चला रही थी. उसने शिवाजी को खत्म करने का काम अफजल खान को सौंपा, जो उसका बड़ा मशहूर योद्धा था.

शिवाजी को पहले से अफजल खान के धोखे का अंदेशा था
इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब 'शिवाजी एंड हिज टाइम्स' के मुताबिक अफजल खान ने बीजापुर के दरबार में डींग हाकी थी, शिवाजी को वो जंजीरों में बांध कर लाएगा, जिसके लिए उसको घोड़े से उतरना भी नहीं पड़ेगा, लेकिन उसके लिए रणनीति बनाई धोखे और मक्कारी की. हालांकि शिवाजी को पहले से अंदेशा था कि अफजल खान धोखा देगा ही देखा. इसीलिए उन्होंने एक झटके में अफजल खान को निपटा दिया. अफजल खान चिल्लाता रहा, लेकिन उसके साथ ही शिवाजी की सेना ने उसके भतीजे रहीम खान और दूसरे सैनिकों को मार गिराया. उस वक्त सतारा में बीजापुर के सैनिकों को शिवाजी के सैनिकों ने घेर लिया, जिसमें 3 हजार सैनिक मारे गए.

शिवाजी से लोगों में आत्मसम्मान और पराक्रम के साथ जीने की प्रेरणा मिली
ये मामला सिर्फ एक अफजल खान से इस देश को मुक्ति दिलाने भर का नहीं था, बल्कि 10 नवंबर 1959 को जो कुछ हुआ, उससे भारत के लोगों में आत्मसम्मान और पराक्रम के साथ जीने की नई प्रेरणा मिली. उस अफजल खान वाली घटना ने शिवाजी को स्थापित कर दिया. उन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई और पंद्रह साल बाद 1674 में मराठा साम्राज्य के सम्राट बने. इतिहास की उस गाथा से वर्तमान अपने लिए कुछ ऐसी मीठी यादें निकाल ही लाता है.

छत्रपति ने विश्वास कायम किया कि स्वयं का राज संभव- पीएम मोदी
2 जून 2023 को पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सैकड़ों सालों की गुलामी ने देशवासियों से उनका आत्मविश्वास छीन लिया था, ऐसे समय में लोगों में आत्मविश्वास जगाना एक कठिन काम था. उस दौर में छत्रपति शिवाजी महाराज ने न केवल आक्रमणकारियों का मुकाबला किया बल्कि जन मानस में ये विश्वास भी कायम किया कि स्वयं का राज संभव है. उन्होंने कहा कि शिवाजी ने भारत के सामर्थ्य को पहचान कर जिस तरह से नौसेना का विस्तार किया वो आज भी हमें प्रेरणा देता है. ये हमारी सरकार का सौभाग्य है कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर पिछले साल भारत ने गुलामी के एक निशान से नौसेना को मुक्ति दे दी. अंग्रेजी शासन की पहचान को हटाकर शिवाजी महाराज की राज-मुद्रा को जगह दी है.

बाघ नख का मामला भारत के लिए सिर्फ एक हथियार का मसला भर नहीं है, बल्कि ये खुद एक इतिहास है जिसमें छुपे स्वाभिमान को हिंदुस्तान जीना चाहता है.

इधर छत्रपति शिवाजी ने जिस बाघ नख को लंदन से भारत लाने को महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मान रही है, उस बाघ नख पर इतिहासकारों ने शंका जताई है. इतिहासकारों को लगता है कि ये वो बाघ नख नहीं है, जिसके जरिए शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मारा था. वहीं इतिहासकारों की उंगली पकड़कर विपक्षी पार्टियां भी सरकार पर सवाल उठा रही हैं.

शिवाजी के बाघ नख पर विवादों का साया

  • क्या लंदन से आया बाघ नख असली नहीं है?
  • पेशवाओं के प्रधानमंत्री ने दिया अंग्रेज को बाघ नख?
  • लंदन वाला सही नहीं तो कहां है असली बाघ नख?

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार की खुशियां बता रही हैं कि लंदन से लाया गया ये बाघ नख वीर शिवाजी का गौरव गान है, लेकिन इस कहानी पर विवादों का पानी फिरने लगा है. सरकार भले ही इस बाघ नख को लेकर उत्साहित हो, लेकिन कहानी में पेंच भी है.

लंदन के म्यूजियम में जब ये बाघ नख रखा गया था तो इसका ब्यौरा देते हुए इसको शिवाजी से जोड़ा गया. ये बताया गया कि ये वो बाघ नख है जिससे छत्रपति शिवाजी ने मुगल सरदार को मारा था. पेशवाओं के प्रधानमंत्री ने जेम्स ग्रांट डफ को तब ये बाघ नख दिया था, जब डफ सातारा में रह रहे थे.

जानकार बता रहे हैं कि लंदन से दी गई इस जानकारी में गलतियां ही गलतियां हैं. पहली बात तो ये कि अफजल खान मुगलों का सरदार नहीं था, बल्कि आदिलशाही का सरदार था. दूसरी बात ये कि पेशवा शब्द का मतलब ही प्रधानमंत्री होता है जो कि मराठा साम्राज्य के छत्रपति के आधीन थे. ऐसे में अगर अंग्रेजों की मानें तो डफ को प्रधानमंत्री ने बाघनख तोहफे में दिया था.

कौन था जेम्स ग्रांट डफ?
जेम्स ग्रांट डफ एक अंग्रेज सैनिक और इतिहासकार था जो 1818 से लेकर 1823 के बीच सातारा में रहा. उसी दौरान उसकी मुलाकात छत्रपति शिवाजी के वंशज छत्रपति प्रताप से हुई थी, हो सकता है कि इसी दौरान प्रताप ने डफ को बाघनख सौंपा हो. उसे बाद में लंदन के म्यूजियम में जगह मिली.

इतिहासकार इंद्रजीत सावंत के मुताबिक सरकार जिस बाघ नख को लंदन से लाकर शिवाजी महाराज का बाघ नख बता रही है वो तो असली है ही नहीं. असली बाघनख तो पहले से ही सातारा में मौजूद है.

सावंत जैसे इतिहासकारों की ओर से बाघ नख की असलियत पर शक जताये जाने के बाद महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टियों ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने बड़ी रकम खर्च करके लंदन से लाये गये बाघनख के रूप में जनता को झूठ परोसा है.

बहरहाल महाराष्ट्र सरकार ने तय किया है कि आने वाले तीन सालों में इस बाघनख को राज्य भर के अलग-अलग इलाकों में घुमाया जाएगा और बडे़ शहरों के म्यूजियम में कुछ वक्त रख कर जनता के बीच प्रदर्शित किया जाएगा.

छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम मराठा पहचान और परंपरा के प्रतीक पुरुष के रूप में लिया जाता है. इसीलिए महाराष्ट्र की राजनीति उनके नाम के इर्द गिर्द अक्सर घूमती है. सवाल है कि क्या ये बाघ नख शिवाजी की वीरता की निशानी है या इससे आगे भी कुछ और है?

मराठा समुदाय महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली
महाराष्ट्र की राजनीति को अपनी आबादी की धुरी पर घुमाने वाले समुदाय का नाम है मराठा. इस समुदाय की ताकत इनको महाराष्ट्र की राजनीति में काफी प्रभावशाली बनाती है. इतना प्रभावशाली कि राज्य के ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठा ही रहे, लेकिन इसका इतिहास उससे भी ज्यादा प्रभावशाली है जो वीर शिवाजी के जीवन और पराक्रम से जुड़ा है. मराठा की हनक और वीर शिवाजी के नाम की चमक ऐसी है कि महाराष्ट्र में हर नेता शिवाजी को सजदा करके ही आगे बढ़ता है.

2 सितंबर, 2022 को भारत सरकार ने नेवी के झंडे में बड़ा बदलाव किया. उस पर लगे सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाकर नया झंडा लगाया गया, जिसमें एक तरफ सत्यमेव जयते लिखा है, जबकि दूसरी तरफ शिवाजी की शाही मुहर की निशानी एंकर बना हुआ है.

सत्ता की राजनीति में मराठा वोटों का हिसाब भी वीर शिवाजी के शौर्य से भी जुड़ जाता है. महाराष्ट्र में मराठा आबादी करीब 32 फीसदी है. इनमें से 79 फीसदी आबादी खेतिहर है. राज्य में उनको दस फीसदी आरक्षण दिया गया है.

दरअसल मराठा आबादी इतनी ज्यादा है कि राज्य में तमाम ताकतवर मुख्यमंत्री इसी तबके से हुए हैं. चाहे वो वाईबी चह्वाण हों, शरद पवार हों, पृथ्वीराज चह्वाण हों, उद्धव ठाकरे हों या फिर मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हों. इन नेताओं की राजनीति भी वीर शिवाजी के नाम के इर्द गिर्द घूमती है.

वीर शिवाजी के नाम का प्रभाव और पराक्रम ऐसा है कि करीब छह दशक पहले जब बाल ठाकरे ने अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत की तो पार्टी का नाम शिवाजी के नाम पर ही शिवसेना रखी. आज भी शिवसेना का प्रभाव ऐसा है कि चाहे वो महायुति खेमे वाली एकनाथ शिंदे की शिवसेना हो या महाविकास अघाड़ी वाली उद्धव ठाकरे की शिवसेना, दोनों का सिक्का इस लोकसभा चुनाव में खूब चला.

महाराष्ट्र की राजनीति मराठा गौरव के इतिहास की गलियों से होकर गुजरती है. इसीलिए वर्तमान राजनीति की चर्चा भी बगैर शिवाजी के नाम के पूरी नहीं होती. महाराष्ट्र से होकर संसद तक जब कभी भी मराठा राजनीति की चर्चा हुई है तो शिवाजी का नाम उसके केंद्र में होता है. अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लंदन से लाए गए वीर शिवाजी के इस बाघ नख पर वोटों की राजनीति भी गरमा सकती है.

लंदन से शिवाजी का बाघ नख तो आ गया, लेकिन सिर्फ तीन साल के लिए ही क्यों? साथ ही सवाल ये भी कि शिवाजी की तीन-तीन पराक्रमी तलवारें कब आएंगी? इंग्लैंड के पास भारत की दूसरी कई धरोहरें भी हैं, वो कब वापस आएंगी?

लंदन में ही पड़ी हैं वीर शिवाजी की तलवारें
अंग्रेज गुलामी के दौरान भारत की कई अनमोल धरोहर जबरन ब्रिटेन ले गए. अब वक्त आ गया है कि वो चीजें भी भारत को मिलनी चाहिए. इनमें खुद शिवाजी की ही तीन प्रमुख तलवारें 'भवानी', 'जगदंबा' और 'तुलजा' इस वक्त ब्रिटिश शाही परिवार की मिल्कियत में लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में रखे हुए हैं.

इनमें सबसे प्रमुख कोहिनूर हीरा है, जिसे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह ने 1849 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को दे दिया था, वो हीरा रानी के मुकुट में लगा है, जिसे टॉवर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में रखा गया है.

कब आएगी बुद्ध की प्रतिमा, टीपू की अंगूठी?
उसी तरह मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की अंगूठी 1799 में उनके मृत शरीर से चुरा लिया गया था. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में नीलामी के दौरान एक अनजान आदमी को उसे करीब 145,000 ब्रिटिश पाउंड में बेचा गया था. उसी तरह गौतम बुद्ध की 8वीं शताब्दी की एक कांस्य प्रतिमा भी इंग्लैंड के पास है, जो इस वक्त लंदन में विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय में रखा हुआ है. यक्ष प्रश्न यही है कि भारत की विरासत की ये अनमोल निशानियां कब वापस मिलेंगी?

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