Chhath Kharna: छठ पर्व का आज दूसरा दिन, खरना पूजा के साथ शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

आज पूरे बिहार में घाट सज गए हैं, घरों में पूजा की तैयारी जोरों पर है. महिलाएं व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार की भलाई की प्रार्थना करेंगी. खरना का यह दिन छठ के सबसे पवित्र और भावनात्मक दिनों में से एक है.

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खरना को आत्मशुद्धि का दिन कहा जाता है. यह दिन संयम, तपस्या और भक्ति का प्रतीक है.
पटना:

लोक आस्था का बड़ा पर्व छठ आज अपने दूसरे दिन यानी खरना के रूप में मनाया जा रहा है. बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में यह पर्व बहुत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती (छठ करने वाली महिलाएं) अपने परिवार की सुख-शांति और संतान की लंबी उम्र के लिए सूर्य देव और छठी माई की पूजा करती हैं. छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं. शाम के समय सूर्य देव को अर्घ्य देकर पूजा करती हैं. खरना का मतलब होता है—मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि. इस दिन का उपवास बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि पूरे दिन बिना पानी पिए रहना होता है.

शाम को व्रती स्नान करके साफ कपड़े पहनती हैं और घर या आंगन को मिट्टी से लीपकर पवित्र जगह बनाती हैं. वहां केले के पत्ते पर प्रसाद रखा जाता है. खरना के प्रसाद में गुड़ की खीर, रोटी (ठेकुआ) और फल होते हैं. सूर्यास्त के बाद सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है और फिर व्रती सबसे पहले खुद प्रसाद खाती हैं. उसके बाद परिवार और आस-पड़ोस के लोगों को प्रसाद देती हैं.

इस दिन का प्रसाद बहुत पवित्र माना जाता है. कोई भी व्यक्ति तब तक प्रसाद नहीं खाता जब तक व्रती उसे न दे. खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं, यानी बिना पानी पिए तीसरे दिन शाम तक उपवास करती हैं. छठ पूजा को सूर्य देव की उपासना का सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है. माना जाता है कि सूर्य देव स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि के दाता हैं. छठ माई यानी सूर्य की बहन की पूजा करने से परिवार में खुशहाली आती है.

आत्मशुद्धि का दिन

खरना को आत्मशुद्धि का दिन कहा जाता है. यह दिन संयम, तपस्या और भक्ति का प्रतीक है. इस दिन घरों में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. घर को गोबर और मिट्टी से लीपकर शुद्ध बनाया जाता है और चारों ओर गंगाजल का छिड़काव किया जाता है.

खरना के दिन से ही माहौल में भक्ति गीतों की गूंज शुरू हो जाती है. गांव-गांव में महिलाएं गाती हैं. इन गीतों से पूरा माहौल श्रद्धा से भर जाता है. इस दिन मिट्टी या पीतल के बर्तनों में ही प्रसाद बनाया जाता है, स्टील या एल्यूमीनियम के बर्तन नहीं चलते.

छठ सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि साफ-सफाई, अनुशासन और एकता का प्रतीक है. इस दिन लोग अपने आसपास की सफाई करते हैं, नदी-तालाबों को सजाते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं. यह पर्व हमें बताता है कि जब हम प्रकृति, पानी और सूर्य का सम्मान करते हैं, तो जीवन में संतुलन और शांति बनी रहती है.

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आज पूरे बिहार में घाट सज गए हैं, घरों में पूजा की तैयारी जोरों पर है. महिलाएं व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार की भलाई की प्रार्थना करेंगी. खरना का यह दिन छठ के सबसे पवित्र और भावनात्मक दिनों में से एक है.

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