करबला के 72 शहीदों का चेहलुम जुलूस निकला, अरबइन वॉक में 21 मिलियन से ज़्यादा लोग हुए शामिल

हर साल दुनियाभर में मोहर्रम महीने की 10 तारीख को आशूरा मनाया जाता है जिस दिन उनकी शहादत हुई थी. शहादत के 40 दिन बाद चेहलूम मनाया जाता है, जिसे अरबइन भी कहा जाता है. इसी अरबइन में लोग नजफ से करबला पैदल जाते हैं.

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इराक के करबला में 21 मिलियन से ज़्यादा श्रद्धालु अरबईन यात्रा में शामिल हुए और नजफ शहर से करबला तक पैदल यात्रा करके इमाम हुसैन के चालीसवे में शामिल हुए. भारत से भी लाखों की तादात में लोग इराक के करबला में जाते हैं.. जिसमें वो इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत के चालीस दिन बाद उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

कौन हैं इमाम हुसैन?
आज से तकरीबन 1400 साल पहले मोहम्मद साहब के नवासे करबला की जमीन पर तीन दिन के भूखे प्यासे यज़ीद शासक के जरिए शहीद कर दिए जाते हैं, जिनमें उनके साथ 72 साथियों की भी शहादत हो जाती है. उन 72 में इमाम हुसैन का एक 6 महीने का बच्चा अली असगर भी मौजूद था, जिसे यज़ीद की फौज ने तीन मुंह के तीर से वार करके कत्ल कर दिया था. तब से लेकर हर साल दुनियाभर में मोहर्रम महीने की 10 तारीख को आशूरा मनाया जाता है जिस दिन उनकी शहादत हुई थी. शहादत के 40 दिन बाद चेहलूम मनाया जाता है, जिसे अरबइन भी कहा जाता है. इसी अरबइन में लोग नजफ से करबला पैदल जाते हैं.

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अरबइन वॉक में हिस्सा के लिए पहुंचते हैं लाखों भारतीय
80 किमी पैदल यात्रा में जगह- जगह खाना-पीना, मेडिकल सर्विस का प्रबंध होता है, जिसमें इराकी लोग सेवा के लिए अपने घर खोल देते हैं और लोग यहां आराम से रहते हैं. यह से सेना निशुल्क होता है. सिर्फ इमाम हुसैन के नाम से श्रद्धालुओं की खिदमत करते हैं. वहीं, नजफ से लेकर करबला तक तकरीबन 1455 पॉल लगे होते हैं और हर पॉल पर दुनियाभर से आए लोग अपने मोकीब (अस्थाई टेंट) लगाते हैं जिसमें उसी देश का खाना पीना मिलता है. भारत से भी कई जगह पर मोकीब लगाए जाते हैं. 327 नंबर पर कारवन ए हिंद के नाम, तो दूसरा 820 पॉल पर खिदमत की जगह बना रखी है.

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इंडिया से तकरीबन 15 मोकीब लगाए जाते हैं, जिसमें लाखों लोग रोज खाना पीना खाते हैं और आराम करते हैं. इंडिया से तकरीबन 50 से ज्यादा डॉक्टर की टीम भी पहुंची, जो बीच बीच मोकिब में रहकर लोगों का इलाज कर रहे है.

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इमाम हुसैन के श्राइन में फहराया गया तिरंगा
जैसे ही पैदल चलकर श्रद्धालु करबला पहुंचते हैं तो इमाम हुसैन श्राइन में जाकर सलाम करते हैं. वहीं, हमारे भारतीयों ने करबला में जुलूस निकाला, जिसमें इमाम हुसैन के श्राइन में जाकर अपना तिरंगा फहराया. इराकियों ने भी भारत का तिरंगा चूमा. इमाम हुसैन ने हिंदुस्तान आने की ख्वाहिश भी की थी. इसी वजह से इराकी लोग भी भारतीयों की बहुत इज्जत करते हैं और हमारे तिरंगे को सलाम करते हैं.

एनडीटीवी से खास बातचीत में हजरत अब्बास हॉली श्राइन के जनरल सेक्रेटरी सैय्यद अफ़ज़ल ने बताया कि हम लोग इन ज़ियारत के लिए आने वालों का बहुत ख्याल रखते हैं. श्रद्धालु को परेशानी का सामना न करना पड़े, इसके लिए हम लोग तैयार रहते हैं. इसबार अरबइन के मौके पर 21 हजार वॉलिंटियर थे, जो पूरा इंतजाम देखते हैं.

कई मशहूर हस्तियां पहुंची अरबइन पर 
मशहूर अभिनेता जावेद जाफरी, लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा समेत कई मशहूर हस्तियां करबला पहुंचे, इराक सरकार और भारतीय डेलीगेट के कोऑर्डिनेटर आगा सुलतान ने बताया कि लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा के साथ एक इंडियन डेलीगेट इमाम हुसैन श्राइन के चीफ शेख़ मेहदी करबलाई से भी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने भारतीयों से कहा कि उन्हें हिन्दुस्तान के लोगों से बहुत मोहब्बत है. अपना इलाज तक करवाने हिंदुस्तान ही आए थे, हमें हर दूसरे इंसान की इज्जत करनी चाहिए, जिससे धर्म आपकी इज्जत करें और एकता की मिसाल बन सकें.

2 करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए था करबला में इंतजाम
NDTV ने 80 किमी तक पैदल चलकर पूरे अरबइन वॉक का जायजा लिया. गर्मी के लिए कदम कदम पर पानी, जूस आदि बांटेते हुए खिदमत करने वाले नजर आए, वहीं लोग रास्ते में रोक-रोक कर विनती करते हैं कि उनके घर पर रेस्ट कर लें. पूरे करबला के हर शहीदों के श्राइन में भी फुल एयर कंडीशनर लगवा रखें हैं, जिससे गर्मी का एहसास न हो सके. वहीं अगर किसी को कभी भी मेडिकल की कोई जरूरत होती है तो फॉरन एंबुलेंस समेत मेडिकल के लिए डॉक्टर मरीजों की मदद करते हैं.

भारत में भी निकाली जाती है अरबइन वॉक
जो लोग इराक के करबला में अरबइन के लिए नहीं जा पाते, वो अपने देश में, अपने शहर में, गांव में ही बनी करबला में पैदल जाते हैं. दिल्ली के जामा मस्जिद से लेकर जोर बाग करबला तक पैदल लोग अरबइन करते हैं, जिनका मकसद एक प्रोटेस्ट होता है कि जुल्म के खिलाफ जैसे इमाम हुसैन झुके नहीं, उसी तरह कभी जुल्म के सामने घुटने नहीं टेकने और हमेशा सच के साथ खड़ा रहना है.

हर साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इमाम हुसैन के बलिदान को याद करके उन्हे श्रद्धांजलि देते हैं. वहीं, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, आरएसएस लीडर इंद्रेश कुमार, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल समेत हर धर्म के लोग इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद करते हैं.

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