महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की चुनौतियां क्या-क्या हैं, कैसे पार पाएगी पार्टी

साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीत कर कांग्रेस महाविकास अघाड़ी में जूनियर पार्टनर थी. लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में किए प्रदर्शन के दम पर वह सीनियर बन गई है. आइए देखते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने चुनौतियों कौन सी खड़ी हैं.

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नई दिल्ली:

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के ऐलान हो गया है. इसके साथ ही वहां के राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी गोटियां बिठानी शुरू कर दी हैं. महाराष्ट्र ने पिछले पांच साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देखें हैं. साल 2019 के चुनाव के बाद सीएम पद को लेकर बीजेपी और शिवसेना का सालों पुराना गठबंधन टूट गया था.सबसे पहले बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी के अजित पवार ने सरकार बनाई. लेकिन यह सरकार बहुत जल्दी ही गिर गई थी.इसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे. बाद में शिवसेना में बगावत हो गई. इसके बाद शिवसेना के बागी गुट ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे. इस बार महाराष्ट्र का मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है. एक  है सत्ताधारी महायुति. इसमें शामिल हैं बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी. दसूरा गठबंधन है कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) का महा विकास अघाड़ी या एमवीए. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 20 नवंबर और मतगणना 23 नवंबर को कराई जाएगी. 

महाराष्ट्र में कांग्रेस की बदली हुई भूमिका

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 44, एनसीपी ने 54 और शिवसेना ने 56 सीटों पर अपना परचम लहराया था. इस आधार पर महाराष्ट्र में जब एमवीए की सरकार बनी थी तो कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका में थी.इसी आधार पर लोकसभा चुनाव में टिकटों का बंटवारा हुआ.शिवसेना को सबसे अधिक 21 सीटें दी गई. वहीं कांग्रेस के हिस्से में 17 और एनसीपी के हिस्से में 10 सीटें आईं. लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की भूमिका को बदल कर रख दिया. कांग्रेस को 13 सीटों पर जीत मिली तो शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) अपने सीटों की संख्या दहाई में भी नहीं पहुंच पाई. लेकिन तीनों ने मिलकर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 17 सीटों पर ही समेट दिया. इसके बाद से कांग्रेस के नेताओं के हौंसले बुलंद हैं. वो सीएम पोस्ट की मांग अपने गठबंधन सहयोगियों से कर रहे हैं. 

वहीं लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में मिली हार से एनडीए को मनोबल कम हुआ था. लेकिन महाराष्ट्र से पहले हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से जीत हासिल की है, उससे उसके हौंसले एक बार फिर बंलुद हैं. वहीं हरियाणा की जीती हुई लड़ाई हारने के बाद से कांग्रेस का मनोबल कमजोर हुआ है.उसके सामने बड़ी चुनौती हरियाणा की हार को पीछे छोड़ महाराष्ट्र में जीत की राह पर आगे बढ़ने की है. कांग्रेस के लिए यह चुनौती केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि झारखंड में भी है, जहां वह अभी जूनियर पार्टी की भूमिका में ही है. हरियाणा की हार के बाद से कांग्रेस अपने गठबंधन सहयोगियों की चुनौती से भी जूझ रही है. 

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सीट शेयरिंग पर जल्द सहमति है जरूरी

कांग्रेस की सबसे पहली चुनौती सीट शेयरिंग की है. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि विधानसभा की 288 सीटों में से 90 फीसद यानी 222 सीटों पर बंटवारे पर सहमति बन गई है. उनके मुताबिक गठबंधन के छोटे दलों के लिए सात सीटें छोड़ी गई हैं. इसमें शेतकरी कामगार पक्ष को तीन, समाजवादी पार्टी को दो और दो सीटें माकपा को दी जाएगी.

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लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारा समय से पहले करके एमवीए ने बड़ी बढ़त हासिल कर ली थी. उसी तर्ज पर एमवीए को विधानसभा चुनाव में भी सीटों का बंटवारा समय रहते कर लेना होगा, जिससे यह जनता में संदेश जाए कि कांग्रेल, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) में कोई मतभेद नहीं हैं और तीनों एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं. 

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गुटबाजी और बयानबाजी से कैसे पार पाएगी कांग्रेस 

हरियाणा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी चरम पर थी.कांग्रेस की एक बड़ी नेता तो दो हफ्ते तक चुनाव प्रचार से गायब रहीं. उन्हें मनाने के लिए हाई कमान को दखल देना पड़ा, तब वो चुनाव प्रचार में लौटीं. लेकिन रिजल्ट आया तो हार की जिम्मेदारी दूसरों पर थोपती हुई नजर आईं.गुटबाजी कांग्रेस की बड़ी चुनौतियों में से एक है. यही वजह है कि अच्छा नैरेटिव खड़ा करने के बाद भी कांग्रेस चुनाव हार जा रही है. महाराष्ट्र कांग्रेस में भी गुटबाजी है. इसलिए जरूरी है कि वह चुनाव से पहले इस पर लगाम लगाए. 

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इसके अलावा कांग्रेस को अपने नेताओं के अनावश्यक बयानबाजी से भी निपटने की जरूरत है. नेताओं की बयानबाजी का असर गठबंधन की सेहत पर भी पड़ता है. हरियाणा में मिली हार के बाद शिवसेना (यूबीटी)  नेता संजय राउत ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए थे. उसे समय रहते निपटा लेने की जरूरत है. इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में एमवीए का मुख्यमंत्री पद के दावेदार के नाम पर भी सहमति बना लेना चाहिए. यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसपर एनडीए उसे घेरने की कोशिश करेगा. अगर एमवीए इस मामले को सुलझा लेता है जो जनता में अच्छा संदेश जाएगा. 

पिछले दिनों महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता दिल्ली आए थे. इस दौरान राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कांग्रेस नेताओं को  अति आत्मविश्वास से दूर रहने, एकजुटता और सत्तारूढ़ एनडीए को हराने के लिए कड़ी मेहनत करने की ताकीद दी थी. 

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