गैर-BJP दलों को जोड़ रहा है दिल्ली के लिए जारी केंद्र सरकार का अध्यादेश

AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल पिछले कुछ दिनों में CPM, NCP, JDU, TMC, BRS, शिवसेना (उद्धव) के नेताओं से मुलाकात के बाद कई पार्टियों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे हैं.

विज्ञापन
Read Time: 28 mins
अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके डिप्टी तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी...
नई दिल्ली:

भले ही कांग्रेस ने दिल्ली में सेवाओं पर अधिकार के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के मुद्दे पर अब तक अपना रुख साफ़ नहीं किया है, लेकिन यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मुकाबला करने के लिए बेहद तेज़ गति से गैर-BJP दलों को जोड़ने वाले मुद्दे के तौर पर उभर रहा है. समर्थन जुटाने की कोशिशों में व्यस्त आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) गुरुवार और शुक्रवार को भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की तैयारी में लगे हुए हैं. गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल पिछले कुछ दिनों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), तृणमूल कांग्रेस (TMC), भारत राष्ट्र समिति (BRS), शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे (SSUBT) के नेताओं से मुलाकात के बाद कई पार्टियों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे हैं.

अरविंद केजरीवाल अब तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके डिप्टी तेजस्वी यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, SSUBT प्रमुख उद्धव ठाकरे, NCP प्रमुख शरद पवार और CPM नेता सीताराम येचुरी से मुलाकात कर चुके हैं, ताकि संसद में, खासतौर से राज्यसभा में, इस विधेयक को नाकाम करने की खातिर समर्थन जुटाया जा सके.

यह विधेयक, जिसके लिए संविधान में संशोधन की ज़रूरत होगी, दिल्ली सरकार के अंतर्गत सिविल सेवा अधिकारियों की तैनाती और तबादलों के अधिकार को लेकर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश की जगह लेगा, और अगर इसे राज्यसभा में शिकस्त देनी है, तो कांग्रेस का समर्थन बेहद अहम होगा.

Advertisement

इस परिस्थिति ने कांग्रेस को अजीबोगरीब हालात में फंसाकर रख दिया है, और वह फ़ैसला ही नहीं कर पाई है, क्योंकि AAP को समर्थन देने पर पार्टी में मतभेद हैं. AAP और कांग्रेस सालों से एक दूसरे से मुकाबिल हैं, और कांग्रेस यह आरोप भी लगाती रही है कि उसी के वोटों की कीमत पर AAP आग बढ़ पाई है, क्योंकि उसने सॉफ़्ट हिन्दुत्व का रुख अपनाया और कांग्रेस के खिलाफ 'झूठा प्रचार' किया. उधर AAP ने भी लगभग हमेशा कांग्रेस के सामने अड़कर उसे कई राज्यों में चुनावी नुकसान पहुंचाया है, जैसे गुजरात. कांग्रेस की पंजाब और दिल्ली इकाइयों ने खासतौर से पार्टी नेतृत्व से आग्रह किया है कि AAP को समर्थन देने का कांग्रेस के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला फ़ैसला नहीं किया जाए.

Advertisement

गैर-BJP पार्टियों का ध्यान इस अध्यादेश के मुद्दे पर उस वक्त गया, जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद ताज़ादम कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि अब विपक्षी गठबंधन में वही केंद्रीय ताकत के रूप में उभरकर सामने आएगी.

Advertisement

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ही है, जिसकी BJP से सीधी टक्कर होगी, और इसी वजह से कांग्रेस के एक वर्ग को लगता है कि पार्टी को विपक्ष में अपना दबदबा बनाए रखना चाहिए और क्षेत्रीय दलों को बहुत ज़्यादा हिस्सेदारी नहीं परोस देनी चाहिए. अब भले ही जब क्षेत्रीय दल अरविंद केजरीवाल का समर्थन कर रहे हैं, यह साफ़ है कि उनका समर्थन कांग्रेस के बढ़ते प्रभुत्व और असर को कम करने के लिए दिया जा रहा है, ताकि आम चुनाव 2024 के करीब आने पर वे सौदेबाज़ी के लिए बेहतर स्थिति में हों.

Advertisement

सूत्रों ने NDTV को बताया है कि कांग्रेस जल्द ही अपना रुख साफ़ कर देगी, उसे संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण पर आधारित बताएगी. और साफ़ कर देगी कि वह BJP की मुखाल्फ़त कर रही है, लेकिन AAP के समर्थन में पूरी तरह नहीं है.

AAP को सबसे मज़बूत समर्थन मंगलवार को CPM से मिला, जब पार्टी के साप्ताहिक पत्र 'पीपल्स डेमोक्रेसी' का ताज़ातरीन सम्पादकीय सामने आया. इसमें पार्टी ने कांग्रेस से कहा कि वह इस मुद्दे पर 'फड़फड़ाना बंद करे', और यह मुद्दा AAP-कांग्रेस के आपसी ताल्लुकात से जुड़ा नहीं है, और इसे 'लोकतंत्र और संघवाद' पर हमले के रूप में देखा जाना चाहिए. पार्टी ने यहां तक कह डाला कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्षी एकता दिल्ली अध्यादेश पर कांग्रेस के रुख पर निर्भर करती है.

CPM के सीताराम येचुरी ने NDTV से कहा कि उन्होंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर AAP का समर्थन करने की अपील की है, क्योंकि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर अध्यादेश लाया जाना संविधान का 'बेशर्मी से किया गया उल्लंघन' है और ऐसा किसी भी गैर-BJP पार्टी की सरकार के साथ हो सकता है. उन्होंने कहा कि BJP सरकार संविधान के स्तंभों और उसके संघीय ढांचे पर हमला करती रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी संयुक्त विपक्षी गठबंधन बनाने की अपनी पहल के तहत पिछले दो माह के दौरान कई विपक्षी और क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मुलाकात की है. अब उनकी पार्टी JDU आम चुनाव 2024 में BJP से मुकाबला करने के लिए बनने वाले गठबंधन का संयोजक नीतीश कुमार को ही नियुक्त करवाना चाहती है, और JDU 12 जून को बिहार की राजधानी पटना में समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों की बैठक की मेज़बानी करने के लिए भी तैयार है.

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस इस बैठक को शिमला में आयोजित करने की इच्छुक थी, जहां सोनिया गांधी भी शामिल होतीं, लेकिन नीतीश कुमार पटना में बैठक की योजना बनाकर सभी पार्टियों को उसमें शिरकत के लिए आमंत्रित करते आ रहे हैं. नीतीश कुमार के साथ अपनी बैठक के दौरान अरविंद केजरीवाल ने खासतौर पर अध्यादेश का विरोध करने के लिए अधिक पार्टियों को साथ लाने में मदद की गुहार की थी, और नीतीश कुमार भी अन्य पार्टियों से बात करने पर सहमत हो गए थे.

सीताराम येचुरी से मुलाकात के बाद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से फिर अनुरोध किया कि वह भले ही उनका सर्थन न करें, लेकिन उनके अभियान का समर्थन करें, क्योंकि यह उनसे जुड़ा मुद्दा ज़रूर है, लेकिन वास्तव में यह जमता, लोकतंत्र और भारतीय संविधान से जुड़ा मुद्दा है. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार राजस्थान में कुछ ऐसा ही करती है, तो AAP उनके साथ खड़ी होगी. इस बीच, अपना विरोध ज़ाहिर करने के लिए अरविंद केजरीवाल ने नीति आयोग की बैठक में भी शिरकत नहीं की, और केंद्र सरकार से गैर-BJP सरकारों को आज़ादी से काम करने देने का आग्रह किया.

केंद्र सरकार का विवादास्पद अध्यादेश, जो राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवा अधिकारियों की तैनाती और तबादलों के अधिकार से जुड़ा है, दिल्ली की निर्वाचित सरकार के स्थान पर दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) को नौकरशाहों के तबादलों और पोस्टिंग का अंतिम अधिकार देता है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के उस फैसले को पलटते हुए 19 मई को अध्यादेश जारी किया था, जिसमें सेवाओं के मामले में दिल्ली सरकार के अधिकार को बरकरार रखा गया था.

केंद्र सरकार के सूत्रों ने NDTV को बताया कि उन्होंने कई वैश्विक मामलों का अध्ययन किया, देश की सुरक्षा और निवेश को हासिल करने में दिल्ली की अहम स्थिति जैसे पहलुओं का भी अध्ययन किया, और साथ ही दिल्ली में काम कर रहे उन नौकरशाहों की शिकायतों पर भी गौर किया, जो अक्सर CM-LG के बीच चल रही जंग की चपेट में आ जाते थे.

Featured Video Of The Day
UP Politics: Mainpuri में Karhal Seat पर आर या पार की लड़ाई! BJP या SP किसका चलेगा दाव?