भारतीय रिजव बैंक (RBI)ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति के अपने अनुमान को पूर्व के 5.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है. पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का मानना है कि देश के केंद्रीय बैंक ने बढ़ती कीमतों को लेकर देर से प्रतिक्रिया दी है. सुब्रमण्यम ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में वैश्चिक अर्थव्यवस्था, सामाजिक सद्भाव के महत्व, भारत में निवेश के माहौल के अलावा संस्थागत आजादी की जरूरत जैसे मुद्दों पर खुलकर राय रखी. मुद्रास्फीति को लेकर आरबीआई के रुख पर निशाना जततो हुए सुब्रमण्यम ने कहा कि कीमतें लगभग तीन वर्षों से बढ़ रही हैं, आरबीआई ने इन्हें रोकने के उपाय करने में देर लगा दी जो संस्थागत स्वतंत्रता (Institutional independence)के एक निश्चित नुकसान को दर्शाता है.
सुब्रमण्यम ने कहा कि मुद्रास्फीति की ऊपरी सीमा को आरबीआई 6 प्रतिशत पर रख रहा है लेकिन उसका लक्ष्य 4 प्रतिशत का है, ऐसे में कुछ बहुत अधिक किया जाना चाहिए. आर्थिक भाषा में कहें तोआरबीआई सुप्रीम कोर्ट की तरह है, हम इन संस्थानों के बीच संघर्ष नहीं चाहते लेकिन साथ ही यह भी नहीं चाहते कि आरबीआई, सरकार का विस्तार (Extension of the Government) बनकर रह जाए.
उन्होंने कहा कि जब मुद्रास्फीति बढ़ती है तो इस पर नियंत्रण के लिए आरबीआई को रेट्स बढ़ाने की जरूरत होती है लेकिन वह ऐसा नहीं करता क्योंकि सरकार पर ब्याज का बोझ बढ़ जाता है.हम इसे राजकोषीय प्रभुत्व (fiscal dominance) कहते हैं, इसके मायने हैं कि राजकोषीय स्थितियां, मौद्रिक नीति पर हावाी हो रही है. मुद्रास्फीति को नीचे लाने के बजाय आरबीआई वह करने की कोशिश कर रहा है जो सरकार उससे कराना चाहती है. यह पूछे जाने पर कि क्या क्या रेट्स में इजाफा, जो कि ईएमआई और लोन को प्रभावित कर रहा है और आम आदमी पर दबाव डाल रहा है, जारी रहेगा, सुब्रमण्यम ने कहा कि हालांकि आरबीआई को मुद्रास्फीति चार प्रतिशत के स्तर तक नीचे रखना है लेकिन उसने चालू वित्त वर्ष में इसे लिए करीब सात फीसदी (6.7 प्रतिशत) का पूर्नानुमान लगा रखा है.
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