टाटा कंसल्टिंग और JNPT के पूर्व अधिकारियों के खिलाफ CBI केस, 800 करोड़ की गड़बड़ी से जुड़ा है मामला

सीबीआई ने 2022 में जेएनपीटी के तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ यह प्रारंभिक जांच शुरू की थी. जांच के दौरान जेएनपीटी के अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों के बीच कथित आपराधिक साजिश का पता चला है.

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नई दिल्ली:

सीबीआई ने जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) व टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स (TCE) के पूर्व अधिकारियों और दो ड्रेजिंग कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. यह मामला मुंबई के पास जहाजों के रास्तों को गहरा करने के लिए कैपिटल ड्रेजिंग प्रोजेक्ट में 800 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमितताओं के आरोप में दर्ज किया गया है. 

सीबीआई की तरफ से टाटा कंसल्टिंग इंजीनियरिंग, बोस्केलिस स्मिट इंडिया एलएलपी, जान डी नल ड्रेजिंग प्राइवेट लिमिटेड और जेएनपीटी मुंबई के तत्कालीन चीफ मैनेजर सहित अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और पब्लिक सर्वेंट द्वारा आपराधिक आचरण के आरोप में मामला दर्ज किया गया है.

क्या है पूरा मामला?

सीबीआई ने तीन साल तक प्रारंभिक जांच (PE) करने के बाद यह कार्रवाई की है. 2022 में जेएनपीटी के तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ यह प्रारंभिक जांच शुरू की गई थी. इसमें संबंधित अधिकारियों पर प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर मूल्यांकन के अनुमानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने, प्रतिस्पर्धा को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय बोली दाताओं को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया गया था.

जांच के दौरान जेएनपीटी के अधिकारियों और अन्य निजी व्यक्तियों के बीच कथित आपराधिक साजिश का पता चला. इससे जेएनपीटी को अवैध रूप से 365.90 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इस मामले में कुल लगभग 800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

छापेमारी में अहम दस्तावेज जब्त

सीबीआई ने एफआईआर दर्ज करने के बाद बुधवार को मुंबई और चेन्नई में पांच जगहों पर छापेमारी की. इनमें जेएनपीटी और टीसीई के तत्कालीन अधिकारियों के आवास और निजी कंपनियों के कार्यालय शामिल थे. सीबीआई प्रवक्ता ने बताया कि छापेमारी में कैपिटल ड्रेजिंग प्रोजेक्ट से संबंधित कई दस्तावेज, डिजिटल उपकरण और सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए निवेश को दर्शाने वाले दस्तावेज बरामद किए गए.

2003 से 2019 के बीच का मामला

सीबीआई ने एफआईआर में कहा कि जेएनपीटी के अधिकारियों द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए निजी कंपनियों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के आरोपों की भी जांच की गई. इसकी वजह से 2003 से 2014 (परियोजना के पहले चरण) और 2013 से 2019 (प्रोजेक्ट के दूसरे चरण) की अवधि में सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ. इस मामले में खबर लिखे जाने तक आरोपी कंपनियों की ओर से प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी.
 

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