अशोका यूनिवर्सिटी के संस्थापक गुप्ता भाइयों के खिलाफ CBI ने लगाया धोखाधड़ी का आरोप

सीबीआई ने अशोका विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक प्रणव गुप्ता और विनीत गुप्ता पर उनकी चंडीगढ़ स्थित दवा कंपनी पैराबोलिक ड्रग्स के जरिए कथित रूप से 1,626 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप लगाया है.

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सीबीआई ने कंपनी, प्रणव गुप्ता, विनीत गुप्ता और 10 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
नई दिल्ली:

सीबीआई ने अशोका विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक प्रणव गुप्ता और विनीत गुप्ता पर उनकी चंडीगढ़ स्थित दवा कंपनी पैराबोलिक ड्रग्स के जरिए कथित रूप से 1,626 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप लगाया है. सीबीआई ने कंपनी, प्रणव गुप्ता, विनीत गुप्ता और 10 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है. उन पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और 11 अन्य बैंकों को धोखा देने का आरोप है. 31 दिसंबर को कई शहरों में दोनों भाईयों की संपत्ति पर छापे मारे गए थे. सीबीआई का कहना है कि छापेमारी में आपत्तिजनक दस्तावेज, लेख और ₹ 1.58 करोड़ नकद पाए गए. गुप्ता बंधुओं पर आपराधिक साजिश और जालसाजी जैसे आरोप हैं.

अशोका विश्वविद्यालय की वेबसाइट के अनुसार विनीत गुप्ता यनिवर्सिटी के संस्थापक और ट्रस्टी हैं, जबकि प्रणव गुप्ता सह-संस्थापक और ट्रस्टी हैं. गुप्ता बंधुओं की कंपनी पैराबोलिक ड्रग्स की स्थापना 1996 में की गई थी. यह कंपनी दवा बनाती है.

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सीबीआई इन आरोपों की जांच कर रही है कि पैराबोलिक ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, आईसीआईसीआई बैंक, आईडीबीआई बैंक, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, एक्जिम बैंक, केनरा बैंक और SIDBI से लोन लेने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया. 

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत के आधार पर सीबीआई की प्राथमिकी में कहा गया है कि कंपनी 2012 से लोन की रकम नहीं चुका रही है. शिकायत के अनुसार, "कंपनी ने प्राथमिक सुरक्षा के मूल्य को बढ़ाकर बैंक वित्त का लाभ उठाया, जिसके चलते बैंक ने लोन के लिए मंजूरी दे दी."

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"बैंकों को अपनी व्यावसायिक जरूरतों की आड़ में धनराशि स्वीकृत करने के लिए प्रेरित करने की साजिश रचने के बाद, अभियुक्तों ने धन का गलत उपयोग करने और पुनर्भुगतान से बचने का प्रयास किया, इसी के चलते उन्होंने व्यक्तिगत रूप से खुद को समृद्ध करने के लिए धन का दुरुपयोग करने की कुटिल रणनीति का इस्तेमाल किया जिससे बैंकों को नुकसान हुआ." 

2014 में स्टेट बैंक ने पैराबोलिक ड्रग्स के खातों को "नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स" के रूप में वर्गीकृत किया. इसके तुरंत बाद सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने भी इसका अनुसरण किया.

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