मध्य प्रदेश सरकार का ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामा एक विरोधाभासी तस्वीर पेश करता है. इसमें प्राचीन भारत को एक जातिहीन, कर्म-आधारित समाज के तौर पर महिमामंडित किया गया है.हालांकि हकीकत अभी भी इस दावे से कोसों दूर है. मध्य प्रदेश में जातिगत असमानता की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाजा 2023 के सर्वेक्षण से भी लगाया जा सकता है. महू स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के सर्वे में पिछड़ी जातियों के बीच तमाम मुद्दों पर राय ली गई तो चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई थीं. इस सर्वेक्षण में शामिल 56 फीसदी पिछड़ों ने कहा कि उन्हें अपमानजनक प्रथाएं झेलनी पड़ती हैं.
लाडली योजना में 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण हो
रिपोर्ट में न सिर्फ जातिगत भेदभाव की जड़ें गहरी पाई गई हैं, बल्कि व्यापक सामाजिक सुधारों की सिफारिश भी की गई है. इनमें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 35% ओबीसी आरक्षण और लाडली बहना - लाडली बेटी जैसी योजनाओं में 50% ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की सिफारिश शामिल है.रिपोर्ट का तर्क साफ है कि जब आधे से अधिक ओबीसी महिलाएं अब भी मजदूरी पर निर्भर हैं, तो सामाजिक न्याय को लागू करने में आधी आबादी की अनदेखी नहीं की जा सकती.
अछूत प्रथा अभी भी कायम
महू स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के इस गोपनीय सर्वे के अनुसार, भेदभाव की जड़ें बेहद गहरी हैं.सर्वे में शामिल 10,000 परिवारों में से 5578 परिवार (करीब 56%) ने माना कि जब उनके घर के सामने से कोई ऊंची जाति का व्यक्ति गुजरता है, तो वे चारपाई या मंच पर बैठे नहीं रह सकते और 'सम्मान' में खड़े हो जाते हैं. 3,797 परिवार (42%) ने कहा कि उनके गाँवों में आज भी अछूत प्रथा जारी है, और जाति-विशिष्ट मोहल्ले ऊंची जातियों से अलग बनाए गए हैं.3,763 परिवारों ने बताया कि ऊंची जातियों के लोग उनके साथ खाना या पानी साझा नहीं करते, जबकि 3238 परिवारों ने कहा कि पुजारी उनके समुदाय में धार्मिक अनुष्ठान करने से इनकार करते हैं.
मंदिर-मठों में पिछड़ों की नियुक्ति नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, 5697 परिवार (57%) ने कहा कि उनके समुदाय के लोगों को मंदिरों में पुजारी या मठों और आश्रमों के प्रमुख के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता, जबकि 5123 परिवारों ने बताया कि उन्हें धार्मिक शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तक नहीं दिया जाता. 2957 परिवारों का कहना है कि उन्हें पुजारी बनने वाले कोर्सों में भी जगह नहीं मिलती.रिपोर्ट कहती है, आज भी यह तय है कि मंदिर में कौन वेदी को छू सकता है, कौन मंत्र बोल सकता है और कौन भगवान की सेवा कर सकता है और यह सब आस्था नहीं, जन्म तय करता है.
शिक्षा-रोजगार की स्थिति दयनीय
शिक्षा और रोज़गार की स्थिति भी उतनी ही चिंताजनक है. 9871 उत्तरदाताओं में से 76% ने बताया कि वे 12वीं से आगे नहीं पढ़ पाए, जबकि केवल 15.6% स्नातक और 8.1% पोस्टग्रेजुएट हैं.94% परिवारों ने कहा कि उन्होंने शादी, खेती या बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज लिया है और केवल 27% के पास पक्का मकान है.आधे से अधिक ओबीसी महिलाएँ अब भी मज़दूरी या खेतों में काम करती हैं.
दमोह का चौंकाने वाला वीडियो
इसी बीच, दमोह से सामने आए एक चौंकाने वाले वीडियो में कुशवाहा समुदाय के एक युवक को एक ब्राह्मण युवक के पैर धोने और पानी पीने पर मजबूर किया गया, अपमान का वह दृश्य, जो उसी असमानता की गूंज है जिसे यह हलफनामा परोक्ष रूप से स्वीकार करता है. एनडीटीवी को मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में दायर इस 15 हजार पन्नों के हलफनामे में शामिल सर्वे रिपोर्ट बताती है कि ऐसी घटनाएं अपवाद नहीं हैं, बल्कि प्रदेश के हजारों परिवारों की रोजमर्रा की सच्चाई है.