कोरोना काल में 500 फीसदी तक बढ़े मानसिक रोगों के मामले, लोग डर से तैयार करवा रहे वसीयत

कोरोनावायरस (Coronavirus) के प्रकोप ने मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा घाव किया है. मुंबई के मशहूर मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश शेट्‌टी बताते हैं कि पिछली लहर की तुलना में इस साल मानसिक रोग वाले मरीजों की संख्या 500 फीसदी बढ़ी है.

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कोरोना की वजह से मनोचिकित्सक भी तनाव में हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
मुंबई:

जानलेवा कोरोनावायरस (Coronavirus) ने खौफ और ‌चिंता की एक नई महामारी को जन्म दिया है. लोग अपने प्राण खोने, प्रियजनों के हमेशा के लिए साथ छोड़ जाने, अकेले रह जाने और नौकरी/रोजगार आदि छिन जाने जैसे अंदेशों से दहशत में हैं. मानसिक रोग वाले मरीजों की संख्या पांच गुना बढ़ी है. लोग अनहोनी की आशंका में अपनी वसीयत तक तैयार करवा रहे हैं. कोरोना संकट के चलते हर आयु वर्ग पर मानसिक प्रभाव पड़ा है.

कोरोना के प्रकोप ने मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा घाव किया है. मुंबई के मशहूर मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश शेट्‌टी बताते हैं कि पिछली लहर की तुलना में इस साल मानसिक रोग वाले मरीजों की संख्या 500 फीसदी बढ़ी है. हर उम्र के लोगों पर इसका असर पड़ा है.

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डॉक्टर शेट्टी ने कहा, '500 प्रतिशत मामले बढ़े हैं. एक दिन में सात मरीज देख रहा हूं लाइव. वर्चुअल तो है हीं उसके अलावा. लोग आत्महत्या की सोचते हैं, घर टूट रहे हैं, लोगों में गुस्सा है. एक कॉरपोरेटर हैं, उनके घर पांच लोगों की जान गई, वो जब मेरे पास आए, बस मैंने कहा मैं तुम्हारे साथ हूं, वो रोने लगे. ऐसे किसी से जब बात करें तो इन्हें रोके मत रोने दें. ये मत कहें सब ठीक है. इनसे मिलें. एक-एक करके मिलें, सारे दोस्त एक बार नहीं. सरकार को मेंटल हेल्थ को गंभीरता से लेना होगा.'

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फोर्टिस की क्लिनिकल सायकॉलिजस्ट दीक्षा अठवाणी कहती हैं, 'हर एज ग्रुप इससे आहत है. बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ा है. गैजेट्स पर निर्भरता बढ़ी है. बड़ों को फाइनेंशियल चिंता सता रही है. जॉब की चिंता है. बुजुर्गों में अकेलापन है. पहले बाहर जा पाते थे अब घर में कैद हैं. इस कारण तनाव बढ़ा है.'

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कई अस्पतालों से जुड़े सायकायट्रिस्ट डॉक्टर अनुपम बोराडे बताते हैं कि कइयों में अनहोनी की आशंका ऐसी बढ़ी है कि वो अपनी वसीयत तक तैयार करवा रहे हैं या पक्का कर रहे हैं कि उनके बैंक खातों और बीमा पॉलिसियों में नॉमिनी के नाम जरूर दर्ज हों.

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डॉक्टर बोराडे ने कहा, 'बुजुर्गों में ये चिंता ज्यादा दिखती है विल के लिए. जो फिटनेस के लिए आते हैं क्योंकि विल बनाने के लिए सायकिएट्री फिटनेस सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है. उनमें देखा जाता है कि मेंटल हालत उनकी ठीक है कि नहीं. अगर मानसिक संतुलन ठीक है तो ढंग से विल बन सकती है. मैं सीनियर सिटीजन से कहना चाहूंगा कि जब तक आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, तब तक आप ध्यान से सोचिए, विल बनाने के बारे में जल्दबाजी मत करिए. अगर चिंता की वजह से जल्दी हो रही है तो चिंता को पहले जाने दीजिए तब सोचिए विल के बारे में.'

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वहीं दूसरी ओर इस महामारी के काल में मनोचिकित्सक खुद भी तनाव में हैं. मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश शेट्टी कहते हैं, 'मेरे घर पर दो मौतें हुईं हैं. मैं अपने दोस्तों से बात करता हूं, रोता हूं, इस तरह तनाव कम करता हूं और अपना ख्याल रखता हूं.'

डॉ अनुपम बोराडे ने कहा, 'जब मेंटल इल्नेस की बात आती है तो हम डॉक्टर इससे इम्यून्ड नहीं हैं. हमको भी स्ट्रेस हो सकता है और ऐसे में हमें भी मदद की जरूरत है.' मनोचिकित्सक मांग कर रहे हैं कि जिस तरह कोविड टास्क फोर्स कई राज्यों में बनी है, ठीक उसी तरह हर जगह मेंटल टास्क फोर्स भी बनें ताकि इस 'अदृश्य दुश्मन' से भिड़ने की तैयारी बड़ी हो सके.

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