इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे लोकप्रिय मंचों की मूल संस्था सोशल मीडिया कंपनी मेटा प्लेटफॉर्म्स (Meta Platforms) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की आजादी) के तहत अधिकारों को एक उपयोगकर्ता द्वारा उसके खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक निजी संस्था है जो सार्वजनिक कार्य का निष्पादन नहीं करती है. एक इंस्टाग्राम अकाउंट को कथित तौर पर निष्क्रिय करने के खिलाफ दायर एक रिट याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में अमेरिका स्थित कंपनी ने कहा कि “इंस्टाग्राम सर्विस एक मुफ्त व स्वैच्छिक मंच है”, जो एक निजी अनुबंध से शासित है तथा याचिकाकर्ता उपयोगकर्ता को “इसके इस्तेमाल का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.”
उच्च न्यायालय में विभिन्न सोशल मीडिया मंचों द्वारा कई उपयोगकर्ता खातों को निलंबित करने और हटाने को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं डाली गई हैं.
एक ट्विटर खाते के निलंबन के खिलाफ एक अन्य याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने मार्च में उच्च न्यायालय को बताया था कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को “सामाजिक और तकनीकी प्रगति की फिसलन में” तथा सोशल मीडिया मंच पर नहीं छोड़ा जा सकता है. उसने कहा था कि सोशल मीडिया मंचों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और भारत के संविधान के अनुरूप होना चाहिए.
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कंपनी की तरफ से हलफनामे में कहा गया, “याचिकाकर्ता का इस अदालत द्वारा अपने रिट अधिकार क्षेत्र को लागू करने का प्रयास विशेष रूप से अनुचित है क्योंकि याचिकाकर्ता और मेटा के बीच संबंध एक निजी अनुबंध से उत्पन्न होता है और कथित विवाद एक संविदात्मक है तथा अनुच्छेद 19 अधिकारों को मेटा जैसे एक निजी संस्था के खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता है.”
इसमें कहा गया, “याचिकाकर्ता का एक निजी संस्था मेटा के खिलाफ अनुच्छेद 19 अधिकारों का दावा करने का प्रयास अनुचित, कानून के विपरीत है, और इसे अस्वीकार किया जाना चाहिए ... मेटा एक सार्वजनिक कार्य का निर्वहन नहीं कर रही है जो इसे अनुच्छेद 226 के तहत इस माननीय न्यायालय के रिट अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी बनाए.”
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