सरकारी दावों के बावजूद यूपी के गन्‍ना मंत्री के क्षेत्र में ही किसानों का 300 करोड़ रुपए अभी तक बकाया

उत्तरप्रदेश सरकार गन्ना किसानों का वक्त पर भुगतान करने के दावे बढ़चढ़ कर करती है, लेकिन खुद उत्तरप्रदेश सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा के शहर शामली में किसानों का करीब 300 करोड़ रुपए बकाया है.

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लखनऊ:

उत्तर प्रदेश सरकार गन्ना किसानों का वक्त पर भुगतान करने के दावे बढ़चढ़ कर करती है, लेकिन खुद उत्तर प्रदेश सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा के शहर शामली में किसानों का करीब 300 करोड़ रुपए बकाया है. गुरुवार को जब राणा सहारनपुर में योगी और अमित शाह की रैली सफल बनाने में जुटे थे तब उनके शहर के गन्ना किसान अपने पैसे के लिए दफ्तरों की ठोकर खा रहे थे. शामली में पांच एकड़ के किसान रजनीश कुमार ने बताया, "मेरा फरवरी से एक लाख बीस हजार का बकाया है, बच्चे की फीस के लिए तीन रुपए सैकड़ा ब्याज पर पंद्रह हजार का कर्ज लिया है और फीस जमा की है, तब जाकर मेरा बच्चा परीक्षा दे पाया है." रजनीश अकेले नहीं हैं. कपिल और गयूर जैसे हजारों किसानों के पास गन्ना बेचने की पर्चियां हैं, लेकिन पैसे नहीं है. जबकि शामली के थाना भवन से खुद राज्‍य सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा विधायक हैं, लेकिन जिले की तीन चीनी मिल, शामली मिल पर करीब 83 करोड़, ऊन मिल पर करीब 60 करोड़ और सबसे ज्यादा थाना भवन चीनी मिल पर करीब 165 करोड़ रुपए का बकाया है.

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गंदराऊं गांव के किसान गयूर हसन का कहना है, "हमारे जिले के गन्ना मंत्री हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में गन्ना के भुगतान में हमारा जिला सबसे पीछे है. इससे क्या अंदाजा लगाते मंत्री जी के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है. सब गेटिंग सेटिंग का मामला है नेता मिल मालिक और अधिकारियों का."

14 दिन में भुगतान और भुगतान न होने पर ब्याज देने की बात कही गई थी, लेकिन मूलधन के साथ किसानों का करीब 6 हजार करोड़ रुपए ब्याज का भी बकाया है. जानकार भी मानते हैं कि मिलें चीनी बेचने के बाद आए पैसे को दूसरे मद में लगाती है.

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कृषि जानकार हरवीर सिंह ने कहा, "पिछली अखिलेश सरकार में भी दो हजार करोड़ के ब्याज का भुगतान नहीं हुआ, इस सरकार में भी ब्याज का भुगतान नहीं किया गया है. सरकार भी चीनी मिलों पर दबाव नहीं डाल रही है. जबकि किसानों को ब्याज लेकर अपना काम चलाना पड़ता है." 

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उधर शामिली से किसान नेता कपिल कुमार ने कहा, "ये ब्याज का बड़ा खेल है. 2014 तक जैसे ही चीनी की बोरी बनी लिमिट हो जाती थी ऐर किसानों का भुगतान हो जाता था, लेकिन 2014 के बाद से किसी चीनी मिल ने अपनी लिमिट नहीं बनवाई. हर महीना पांच से छह करोड़ रुपए का ब्याज अधिकारी नेता और मिल मालिक खा जाते हैं." अब चुनावी मौसम में जब गन्ना किसान धरना प्रदर्शन करने लगे तो शामिली के तीनों चीनी मिलों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया है. 

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