गंवाए दोनों पैर... पर केरल में पार्टी के पांव जमा दिए, अब राज्यसभा सांसद बने BJP के सदानंदन

केरल से आने वाले सी सदानंदन जहां साहस, संघर्ष और सेवा के प्रतीक कहे जाते हैं, वहीं डॉ मीनाक्षी जैन इतिहास को नए सांचे में ढालती विदुषी मानी जाती है, जबकि कूटनीति के दक्ष नायक कहे जाने वाले हर्षवर्धन श्रृंगला को अमेरिका में 'हाउडी मोदी' की सफलता का श्रेय दिया जाता है. 

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  • सदानंदन मास्टर ने 1994 में हुए हमले में दोनों पैर गंवाने के बाद भी शिक्षा व सामाजिक सेवा में सक्रिय भूमिका निभाई
  • डॉ मीनाक्षी जैन ने भारतीय इतिहास पर महत्वपूर्ण शोध किया और उनका काम राम मंदिर मामले में संदर्भ बना.
  • हर्षवर्धन श्रृंगला ने अमेरिका और अन्य देशों में भारत के शीर्ष राजनयिक के रूप में महत्वपूर्ण कूटनीतिक भूमिका निभाई.
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नई दिल्‍ली:

संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को उच्‍च सदन में सी सदानंदन मास्‍टर और अन्य गणमान्‍य लोगों ने राज्‍यसभा सदस्‍य के तौर पर शपथ ली. सदस्‍यता की शपथ लेनेवालों में सदानंदन के अलावा डॉ मीनाक्षी जैन, हर्षवर्धन श्रृंगला, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र प्रसाद वैश्य शामिल हैं. सी सदानंदन, डॉ मीनाक्षी जैन, हर्षवर्धन श्रृंगला को पिछले दिनों राज्‍यसभा सदस्‍य मनोनीत किया था. राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इन सदस्‍यों का मनोनयन किया था. 

केरल से आने वाले सी सदानंदन जहां साहस, संघर्ष और सेवा के प्रतीक कहे जाते हैं, वहीं डॉ मीनाक्षी जैन इतिहास को नए सांचे में ढालती विदुषी मानी जाती है, जबकि कूटनीति के दक्ष नायक कहे जाने वाले हर्षवर्धन श्रृंगला को अमेरिका में 'हाउडी मोदी' की सफलता का श्रेय दिया जाता है. 

आइए जानते हैं, इन नए राज्‍यसभा सदस्‍यों के बारे में. 

सी सदानंदन: काट दिए गए पैर पर हौसला नहीं टूटा 

सी सदानंदन मास्टर का जीवन एक साहसी यात्रा है, जो विचारधारा, संघर्ष और सेवा से गुथा हुआ है. कभी मार्क्सवादी पृष्ठभूमि में पले-बढ़े सदानंदन मास्टर की सोच में बदलाव मलयालम कवि अक्कितम की कविताओं के जरिए आया, जिसने उन्हें राष्ट्रीय सांस्कृतिक विचारधारा की ओर मोड़ा और वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए.

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1994 में वे जब केवल 30 वर्ष के थे, तब उन पर एक बर्बर हमला हुआ, जिसमें उनकी दोनों टांगें काट दी गईं. आरोप लगा कि हमलावर मार्क्सवादी कार्यकर्ता थे. यह हमला उन्हें तोड़ नहीं सका-बल्कि उन्होंने कृत्रिम पैरों के सहारे फिर से खड़े होकर न केवल शिक्षा के क्षेत्र में लौटने का साहस दिखाया, बल्कि सामाजिक कार्य और वैचारिक प्रचार में भी और अधिक सक्रिय हो गए.

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कन्नूर जैसे वामपंथी गढ़ में वे निडर होकर खड़े रहे और हिंसा के खिलाफ संवाद और लोकतांत्रिक संघर्ष को अपनाया. उन्होंने 2016 और 2021 में विधानसभा चुनाव भी लड़ा और आज वे भाजपा के केरल राज्य इकाई के उपाध्यक्ष हैं. उनका राज्यसभा में मनोनयन उस साहसिक यात्रा की स्वीकृति है, जो हिंसा के अंधकार में भी उम्मीद की मशाल लेकर आगे बढ़ी.

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डॉ मीनाक्षी जैन: राम मंदिर केस में संदर्भ बना जिनका शोध  

डॉ मीनाक्षी जैन भारतीय इतिहास के उन विद्वानों में हैं, जिन्होंने परंपरा और आधुनिकता के बीच पुल बनाया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर रही मीनाक्षी जैन ने न केवल अकादमिक दुनिया में गहरी छाप छोड़ी, बल्कि नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च जैसी संस्थाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

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उनका शोध भारतीय समाज, संस्कृति और धार्मिक इतिहास पर केंद्रित रहा है, खासकर मध्यकाल और औपनिवेशिक काल पर. उनका शोध, राम मंदिर केस में भी आधार बना. 1991 में प्रकाशित उनकी डॉक्टरेट थीसिस में उन्होंने जाति और राजनीति के जटिल संबंधों को गहराई से परखा. 2020 में उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो उनके शोध और लेखन की राष्ट्रीय मान्यता है.

डॉ जैन की कृतियां भारतीय इतिहास को पश्चिमी नजरिए से अलग हटकर देखने की कोशिश करती हैं. उनका राज्यसभा में मनोनयन न सिर्फ अकादमिक समुदाय के लिए सम्मान की नजर से देखा जा रहा है.

हर्षवर्धन श्रृंगला: अमेरिका में रहे शीर्ष राजनयिक 

भारत की विदेश नीति के जमीनी क्रियान्वयन में जिन अधिकारियों ने बड़ी भूमिका निभाई, उनमें हर्षवर्धन श्रृंगला का नाम शीर्ष पर आता है. 1 मई 1962 को मुंबई में जन्मे श्रृंगला ने मेयो कॉलेज, अजमेर और सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से शिक्षा प्राप्त की. 1984 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने के बाद उन्होंने लगभग चार दशक तक देश की कूटनीति को आकार दिया.

श्रृंगला ने थाईलैंड, बांग्लादेश और अमेरिका में भारत के शीर्ष राजनयिक के रूप में कार्य किया. खासकर बांग्लादेश में रहते हुए उन्होंने ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते को अंतिम रूप देने में केंद्रीय भूमिका निभाई. अमेरिका में उनके कार्यकाल के दौरान 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम का आयोजन उनकी रणनीतिक दक्षता का उदाहरण है.

2020 से 2022 तक वे भारत के विदेश सचिव रहे और कोविड काल में वैश्विक संपर्क बनाए रखने की जटिल जिम्मेदारी संभाली. IFS से रिटायरमेंट के बाद उन्हें G20 में भारत की अध्यक्षता के लिए मुख्य संयोजक नियुक्त किया गया, जहां दिल्ली डिक्लेरेशन की सफलता में उनकी भूमिका निर्णायक रही. उनका मनोनयन भारत की विदेश नीति में उनकी प्रतिबद्धता और व्यावसायिक दक्षता के सम्मान की तरह देखा जा रहा है.
 

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