कृषि कानूनों पर राहुल गांधी बोले - हमें देश के अन्नदाता का साथ देना होगा

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे पर “एनडीटीवी हिंदी” की एक खबर को रि-ट्वीट करते हुए कहा कि “भारत के किसान ऐसी त्रासदी से बचने के लिए कृषि-विरोधी कानूनों (Anti-agricultural laws) के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं.

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे पर “एनडीटीवी हिंदी” की एक खबर को रि-ट्वीट करते हुए कहा कि “भारत के किसान ऐसी त्रासदी से बचने के लिए कृषि-विरोधी कानूनों (Anti-agricultural laws) के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. इस सत्याग्रह में हम सबको देश के अन्नदाता का साथ देना होगा.” कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को लगभग एक महीना हो रहा है. ऐसे में गुरुवार को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) इन कानूनों को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने जा रहे हैं.

राहुल गांधी ने जिस खबर “'न हस्ताक्षर, न मुहर, ऐसे ही हो रहा अनुबंध', MP के किसान बोले- यही चलता रहा तो हम हो जाएंगे तबाह” को रि-ट्वीट किया उसे एनडीटीवी हिंदी ने 23 दिसंबर को पब्लिश किया था. इस खबर को एनडीटीवी हिंदी ने प्राथमिकता से लिया था. अनुराग द्वारी की ग्राउंड रिपोर्ट वाली इस खबर ने जमीनी स्तर पर मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार की पोल खोलकर रख दी है. दरअसल, इस खबर में उन किसानों ने अपना दुखरा बताया है, जिनसे मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों की जोरो-शोरों से प्रचार करवाई थी.

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प्रचार में दावा किया गया था कि होशंगाबाद जिले के पिपरिया अनुमंडल में कैसे नया कृषि कानून किसानों के हितों की रखवाली करने वाला बनकर उभरा है और कैसे प्रशासन ने फौरन कार्रवाई करते हुए किसानों को नए कानून के तहत 24 घंटे के अंदर न्याय दिलाया? कैसे किसानों से अनुबंध के बावजूद फॉर्चून राईस लिमिटेड ने धान नहीं खरीदी तब एसडीएम कोर्ट ने नए कृषि कानून "किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) अनुबंध मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020" (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम) के प्रावधान के अनुसार कंपनी को खरीद के आदेश दिए? जबकि हक़ीक़त प्रचार से काफी अलग है. प्रचार में जो किसान थे, उन्हीं किसानों में से एक किसान भौंखेड़ी कलां के पुष्पराज सिंह ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा, “किसान उनके उदाहरण से सबक ले सकते हैं, वो कभी अनुबंध पर खेती की सलाह नहीं देंगे. वो अब नये कृषि कानूनों का विरोध करते हैं.

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सिंह ने कहा, "हम पिछले 4 साल से खेती कर रहे हैं लेकिन अनुबंध पर कभी दिक्कत नहीं आई. इस साल करार ये था कि मंडी का जो भी रेट होगा, उससे 50 रु. अधिक पर लेंगे. जब रेट 2300-2400 रुयपे था, तब दिक्कत नहीं थी. जैसे ही 2950 रेट निकला वैसे ही 3000 पर खरीदी करना था लेकिन फॉर्चून के अलावा जितनी कंपनियां थीं, सबके फोन बंद हो गये. पुष्पराज ने कहा, "मुख्यमंत्री शिवराज जी जो कह रहे हैं कि न्याय दिलाया, न्याय की बात तो तब आती जब कंपनी ने बेईमानी की होती या वो हमारी गिरफ्त से भाग गई होती तो किससे न्याय दिलाया? हमारा जो बिल है वो अन्नपूर्णा ट्रेडर्स के नाम पर है लेकिन इस पर ना तो बिल नंबर है, ना टिन नंबर. इसमें सबसे बड़ा नुकसान ये भी है कि वो दवा की जो किट देते हैं, वो भी लेना है चाहे उसकी ज़रूरत हो या नहीं हो. इधर ज्यादा दे रहे हो, उधर दवा के माध्यम से ज्यादा वसूल भी रहे हो." पुष्पराज ने कहा कि सरकार कह रही है कि किसान कहीं भी माल ले जाकर बेच सकते हैं लेकिन जब 200 क्विंटल धान पैदावार हुई तो क्या हम उसे बेचने केरल जाएंगे. उन्होंने कहा कि छोटे किसान अनुंबध की खेती में बर्बाद हो जाएंगे, पंजाब में आंदोलन चल रहा है इसलिये घबराहट में शिवराज जी ट्वीट कर रहे हैं.

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