हिमाचल के निरमंड में शुरू हुआ बूढ़ी दिवाली पर्व, इंद्र-वृतासुर युद्ध की परंपरा निभाई गई

मान्यता है कि मार्गशीष अमावस्या को इंद्र ने देवताओं की मदद से वृत्तासुर को पराजित कर पानी पर उसका आधिपत्य खत्म किया. इसी विजय की स्मृति में आज भी यह दिवाली मनाई जाती है, जिसे इसकी प्राचीनता के कारण ‘बूढ़ी दिवाली’ कहा जाता है. 

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  • हिमाचल प्रदेश के निरमंड में बूढ़ी दिवाली पर्व इंद्र और वृत्तासुर के युद्ध के प्रदर्शन के साथ शुरूहो गया है.
  • इस पर्व का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है और इसे मार्गशीष अमावस्या को मनाया जाता है.
  • बूढ़ी दिवाली को 12 गांवों के लोग पारंपरिक गीतों, नृत्यों और लोकवाद्य यंत्रों के साथ उत्सव मनाते हैं.
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कुल्‍लू:

हिमाचल प्रदेश के निरमंड में सदियों पुरानी परंपरा के तहत बूढ़ी दिवाली (दियाउड़ी) पर्व की शुरुआत हो गई है. गुरुवार रात को इंद्रदेव और वृत्तासुर के बीच हुए पौराणिक युद्ध का प्रदर्शन किया गया, जिसमें इंद्र ने वृत्तासुर का वध कर जल देवता को मुक्त किया. इस पर्व का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. 

रातभर 12 गांवों के लोग अग्नि प्रज्वलित कर पारंपरिक गीतों और नृत्यों के साथ प्राचीन लोकगीतों और वाद्ययंत्रों की थाप पर जश्न मनाते रहे. मान्यता है कि मार्गशीष अमावस्या को इंद्र ने देवताओं की मदद से वृत्तासुर को पराजित कर पानी पर उसका आधिपत्य खत्म किया और लोगों को राहत दी. इसी विजय की स्मृति में आज भी यह दिवाली मनाई जाती है, जिसे इसकी प्राचीनता के कारण ‘बूढ़ी दिवाली' कहा जाता है. 

कई दिनों तक मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली 

यह दिवाली कई जगह तीन, पांच और सात दिनों तक भी मनाई जाती है. सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र में भी अलग-अलग गांवों में बुधवार और गुरुवार को उत्सव मनाया गया. यहां बूढ़ी दिवाली का संबंध राजा बलि और भीम से जुड़ी कथाओं से भी माना जाता है, जो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में प्रचलित है. 

सूखे व्‍यंजन बांटकर देते हैं शुभकामनाएं 

इस दौरान लोग परोकड़िया, विरह गीत, रासा, नाटियां, स्वांग और हुड़क नृत्य करते हैं और जश्‍न मनाते हैं. कुछ गांवों में बढ़ेचू और बुड़ियात नृत्य की परंपरा भी है. लोग एक-दूसरे को मूड़ा, चिड़वा, शाकुली और अखरोट जैसे सूखे व्यंजन बांटकर शुभकामनाएं देते हैं. 

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