दिमाग में घुसकर कैसे केरल में एक कीड़े ने ले ली 19 लोगों की जान, जानें क्‍या हैं लक्षण, बचाव का तरीका

केरल में पीएएम का पहला मामला साल 2016 में सामने आया था और 2023 तक, राज्य में सिर्फ आठ ही मामले सामने आए थे. लेकिन पिछले साल इसमें तेजी से इजाफा हुआ था.

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  • केरल में ब्रेन ईटिंग अमीबा संक्रमण के कारण इस साल अब तक 61 मरीज आए हैं और 19 की मौत हो चुकी है.
  • यह संक्रमण नेग्लेरिया फाउलेरी नामक अमीबा से होता है जो दिमाग में गंभीर सूजन और नुकसान करता है.
  • यह संक्रमण किसी एक पानी के स्रोत से नहीं बल्कि अलग-अलग स्थानों पर अकेले मामलों के रूप में फैल रहा है.
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नई दिल्‍ली:

केरल में स्‍वास्‍थ्‍य विभाग इन दिनों काफी चौंकन्‍ना है. राज्‍य में प्राइमरी एमोबिक मे‍निनगोइंसैफिलाटिस (PAM) या ब्रेन ईटिंग अमीबा के केस में तेजी से इजाफा हुआ है. यह एक असाधारण इनफेक्‍शन है जिसमें दिमाग में गहरा संक्रमण होता है और कभी-कभी मरीज की मौत तक हो जाती है. इस इनफेक्‍शन की वजह से इस साल अब तक केरल में 61 मरीज आए हैं जबकि 19 लोगों की मौत हो चुकी है. यह इनफेक्‍शन नेग्लेरिया फाउलेरी नामक एक अमीबा से फैलता है जिसे आमतौर पर ब्रेन ईटिंग अमीबा भी कहते हैं. 

बच्चे, बूढ़े सब हो रहे शिकार 

राज्‍य की स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि केरल इस समय गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य चुनौती का सामना कर रहा है. यह इनफेक्‍शन पहले कोझीकोड और मल्‍लपुरम जैसे जिलों में था लेकिन अब धीरे-धीरे राज्‍य के दूसरे हिस्‍सों को भी अपनी चपेट में ले रहा है. तीन महीने के नवजात से लेकर 91 साल के बुजुर्ग तक इसके शिकार हो रहे हैं. उन्‍होंने कहा, 'पिछले साल की तरह इस बार केसेज किसी एक पानी के स्‍त्रोत से जुड़े नहीं हैं. इस बार ये स‍िंगल और आइसोलेटेड केस हैं और इसने महामारी की हमारी जांच को और मुश्किल बना दिया है.' 

क्‍या है ब्रेन ईटिंग अमीबा, कैसे होता है इनफेक्‍शन 

केरल सरकार के अनुसार यह अमीबा सेंट्रल नर्व सिस्‍टम पर हमला करता है. सरकार के अनुसार, 'यह इनफेक्‍शन ब्रेन टिश्‍यूज को नष्‍ट कर देता है, दिमाग में गंभीर तौर पर सूजन हो जाती है और कई केसेज में तो मरीज की मौत तक हो जाती है. सामान्‍यतौर पर यह अमीबा स्‍वस्‍थ बच्‍चों को निशाना बनाता है लेकिन किशोर और युवा भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. सरकार के डॉक्‍यूमेंट में आगाह किया है कि यह अमीबा खासतौर पर स्थिर, गर्म और ताजे पानी में पनपता है. इससे उन लोगों को ज्‍यादा खतरा है जो गंदे पानी में स्विमिंग करते हैं, डाइविंग या फिर नहाने के लिए जाते हैं. उनमें इनफेक्‍शन का खतरा कई हद तक बढ़ जाता है. 

एक व्‍यक्ति से दूसरे को नहीं होता 

डॉक्‍यूमेंट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी इसका इनफेक्‍शन बढ़ रहा है. सरकार के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण पानी का तापमान बढ़ रहा है और गर्मी के कारण ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग स्विमिंग और दूसरी एक्टिविटीज के लिए पानी का प्रयोग करते हैं. इससे इस बैक्‍टीरिया से इनफेक्‍शन की संभावना भी बढ़ जाती है. हालांकि यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता. 

क्‍या हैं बैक्‍टीरिया के लक्षण 

ब्रेन ईटिंग बैक्‍टीरिया का डेथ रेट बहुत ज्‍यादा है क्‍योंकि इसका इलाज बहुत मुश्किल है. इसके लक्षण बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस जैसे ही होते हैं जिसमें सिरदर्द, बुखार, जी मिचलाना और उल्‍टी शामिल हैं. डॉक्‍यूमेंट के मुताबिक जब तक मैनिंजाइटिस के बाकी सामान्य कारणों का पता चलता है और इसके इलाज पर विचार किया जाता है, तब तक मरीज को बचाने में अक्सर बहुत देर हो चुकी होती है जो तेजी से डेवलप होकर मौत की वजह बन जाता है. दस्तावेज में आगे कहा गया है, 'ज्‍यादातर मरीज नर्व सिस्‍टम की समस्या के संकेत या लक्षणों के साथ इलाज के लिए आते हैं.' 

इसके लक्षण एक से नौ दिनों के बीच दिखाई दे सकते हैं. शुरुआती कुछ घंटों से लेकर 1 से दिनों के अंदर इनफेक्‍शन फैल सकता है. इसमें कहा गया है, 'न्‍यूरो ऑल्फैक्‍टरी एन.फाउलेरी को मस्तिष्क तक तेजी से से पहुंचने में मदद करता है. इसकी वजह से इम्‍युनिटी कमजोर हो जाती है और बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है.' केरल सरकार ने लोगों से कहा है कि अगर उन्हें रुके हुए पानी के संपर्क में आने के बाद इनफेक्‍शन के लक्षण नजर आएं तो वो तुरंत डॉक्‍टर के पास जाएं. 

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मामलों में 100 फीसदी इजाफा 

केरल में पीएएम का पहला मामला साल 2016 में सामने आया था और 2023 तक, राज्य में सिर्फ आठ ही मामले सामने आए थे. लेकिन पिछले साल इसमें तेजी से इजाफा हुआ था. पिछले साल राज्‍य में 36 मामले सामने आए और 9 मौतें दर्ज हुईं. इस साल, 69 मामले और 19 मौतें पहले ही दर्ज हो चुकी हैं यानी इसमें करीब 100 फीसदी का इजाफा हुआ था.

राज्य में नए संक्रमणों को रोकने की पूरी कोशिशें जारी हैं. लेकिन जनता को सरकार की तरफ से तालाबों और झीलों जैसे नॉन-ट्रीटेड या स्थिर मीठे पानी के स्रोतों में तैरने या नहाने से बचने की सलाह दी गई है. वहीं तैराकों को मीठे पानी में दाखिल होते समय नाक पर क्लिप लगाने की सलाह दी गई है और कुओं और पानी की टंकियों की उचित सफाई और क्लोरीनीकरण का सुझाव दिया गया है. केरल का स्वास्थ्य विभाग, राष्‍ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के सहयोग से, संदूषण के संभावित स्रोतों की पहचान के लिए पर्यावरण के नमूने एकत्र कर रहा है. 

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