आंबेडकर का इस्तीफा पत्र गायब, रिजिजू के आरोपों पर कांग्रेस भड़की, जानिए केसी त्यागी ने क्या इशारा किया

BR Ambedkar's Resignation Letter Disappears: ये मामला अब तूल पकड़ता दिख रहा है. जानिए, इस मामले में कौन क्या कहा रहा...

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भीम राव आंबेडकर को लेकर राजनीति ठंड में भी गर्म है.

कानून मंत्री के तौर पर भीमराव आंबेडकर ने अक्टूबर 1951 में इस्तीफा दिया था, लेकिन उनके इस्तीफा की चिट्ठी ऑफिशियल रिकॉर्ड से गायब हो चुकी है. सरकार और कांग्रेस ने एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है, जबकि जनता दल यूनाइटेड ने दावा किया है आंबेडकर के इस्तीफा की चिट्ठी कई राज खोल सकती है और उसे फिर से खोजा जाना चाहिए.

बाबा साहब ने कानून मंत्री के तौर पर जो इस्तीफ़ा दिया था, वो कहां है? वो आधिकारिक रिकॉर्ड में नहीं है.  संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार रात को ये सवाल उठाते हुए कांग्रेस को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया. किरेन रिजिजू ने आरोप लगाया है कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर का त्यागपत्र रहस्यमय तरीके से आधिकारिक रिकॉर्ड से गायब है.

आंबेडकर ने कानून मंत्री के तौर पर 1951 में इस्तीफा दिया था. तात्कालीन राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा 11 अक्टूबर, 1951 को स्वीकार कर लिया था. रिजिजू ने कांग्रेस से पूछा है कि वो भारत की जनता से क्या छुपा रही है? रिजिजू ने दावा किया है कि आंबेडकर का त्याग पत्र सामाजिक सुधारों के प्रति कांग्रेस की उदासीनता के खिलाफ एक बोल्ड स्टेटमेंट था.

कांग्रेस ने संसदीय कार्य मंत्री के इन आरोपों को खारिज कर दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद तारिक अनवर ने एनडीटीवी से कहा, 'यह इतिहास का सच है कि जवाहरलाल नेहरू ने आंबेडकर को अपने सरकार में शामिल किया था और कांस्टीट्यूएंट असेंबली का सदस्य भी बनाया था.

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तारिक अनवर ने एनडीटीवी से कहा, "हो सकता है पिछले 11 साल में उसको गायब कर दिया गया हो, क्योंकि इससे पहले कभी यह सवाल उठा ही नहीं कि आंबेडकर का रेजिग्नेशन लेटर रिकॉर्ड में उपलब्ध अब नहीं है. इसमें कोई साजिश हुई होगी. आंबेडकर का रेजिग्नेशन लेटर कहीं जानबूझकर गायब तो नहीं कर दिया गया, जिससे कि यह आरोप लगाया जा सके? यह इतिहास का सच है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही आंबेडकर को अपने सरकार में शामिल किया था. उन्हें कांस्टीट्यूएंट असेंबली का सदस्य जवाहरलाल नेहरू ने ही बनाया था. यह तो इतिहास का सच है. बीजेपी के आरोप में कोई सच्चाई नहीं है".

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इस आरोप प्रत्यारोप के बीच जनता दल यूनाइटेड ने कहा है कि आंबेडकर के इस्तीफा की चिट्ठी को एक बार फिर खोजा जाना चाहिए, क्योंकि उनकी चिट्ठी यह राज खोल सकती है कि कानून मंत्री के तौर पर 1951 में अंबेडकर ने नेहरू सरकार से क्यों इस्तीफा दिया था?

जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एनडीटीवी से कहा, "यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल है. कानून मंत्री के तौर पर आंबेडकर के इस्तीफा की चिट्ठी कई तरह के राज खोल सकती है. आंबेडकर के रेजिग्नेशन लेटर से यह पता चलेगा कि उन्होंने क्यों नेहरू सरकार से इस्तीफा दिया था? आंबेडकर के नेहरू से कई वैचारिक मतभेद थे. किरने रिजिजू ने जो सवाल उठाए हैं, उसका जवाब खोज जाना चाहिए. ऑफिशियल रिकॉर्ड को खंगाला जाना चाहिए, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी दुनिया के सामने आ सके. नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी के अध्यक्ष रहे हरदेव शर्मा ने एक बार समाजवादी पार्टी के नेता मधु लिमये को बताया था कि सोनिया गांधी ने बहुत सारे दस्तावेज और चीट्ठियां नेहरू मेमोरी लाइब्रेरी से निकलवा ली हैं. बहुत दिनों तक यह राज बना रहा. मुझे खुशी है कि अब यह बात सार्वजनिक हो गई है". अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत सरकार इस बारे में आगे क्या फैसला करती है.

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