बोस्टन टी पार्टी: एक चाय जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दी

अमेरिकी उपनिवेशों में यह भावना तेज़ी से फैलने लगी—“ नो टैक्सेशन विदआउट रिप्रेजेंटेशन”, यानी बिना प्रतिनिधित्व के कर स्वीकार नहीं. बोस्टन इस असंतोष का केंद्र बन चुका था. जब ब्रिटिश जहाज ‘डार्टमाउथ’, ‘एलेनोर’ और ‘बीवर’ बोस्टन बंदरगाह पर चाय से लदे पहुंचे, तो स्थानीय लोगों ने चाय उतारने से इनकार कर दिया.

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  • बोस्टन टी पार्टी सन सत्रह सौ तिहत्तर की महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने ब्रिटिश उपनिवेशी शासन को चुनौती दी.
  • ब्रिटिश सरकार ने चाय पर कर लगाया, जिससे उपनिवेशवासियों में बिना प्रतिनिधित्व कर लगाने का गहरा विरोध हुआ.
  • बोस्टन में स्थानीय लोगों ने चाय से लदे जहाजों पर चढ़कर तीन सौ बयालीस पेटियां समुद्र में फेंकी.
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नई दिल्ली:

अमेरिकी इतिहास की अहम तारीखों में दर्ज है 16 दिसंबर 1773! ऐसी तिथि जब एक प्रतीकात्मक घटना ने पूरे उपनिवेशी शासन को चुनौती दे दी. यह घटना थी 'बोस्टन टी पार्टी', जिसने ब्रिटिश साम्राज्य और उसके अमेरिकी उपनिवेशों के रिश्तों में ऐसी दरार डाली, जो अंततः अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में बदल गई.

18वीं सदी के मध्य तक ब्रिटेन अमेरिका के 13 उपनिवेशों पर शासन कर रहा था. फ्रांस के साथ लंबे युद्धों के बाद ब्रिटेन कर्ज़ में डूब चुका था और उसकी नज़र अपने उपनिवेशों पर पड़ी. कर वसूली के नए-नए कानून बनाए गए—स्टैम्प एक्ट, टाउनशेंड एक्ट और अंत में टी एक्ट (1773). इस कानून के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अमेरिका में चाय बेचने का एकाधिकार दिया गया. ब्रिटिश सरकार का तर्क था कि चाय सस्ती होगी, लेकिन उपनिवेशवासियों को असली आपत्ति कीमत से नहीं, बल्कि उस कर से थी, जिसे उनकी सहमति के बिना थोपा गया था.

अमेरिकी उपनिवेशों में यह भावना तेज़ी से फैलने लगी—“ नो टैक्सेशन विदआउट रिप्रेजेंटेशन”, यानी बिना प्रतिनिधित्व के कर स्वीकार नहीं. बोस्टन इस असंतोष का केंद्र बन चुका था. जब ब्रिटिश जहाज ‘डार्टमाउथ', ‘एलेनोर' और ‘बीवर' बोस्टन बंदरगाह पर चाय से लदे पहुंचे, तो स्थानीय लोगों ने चाय उतारने से इनकार कर दिया.

16 दिसंबर की रात कुछ उपनिवेशवासी—जिनमें से कई खुद को एक जनजाति के भेष में छिपाए हुए थे—बोस्टन हार्बर पहुंचे. उन्होंने जहाजों पर चढ़कर 342 चाय की पेटियां समुद्र में फेंक दीं. यह कोई अचानक हुई भीड़ की हिंसा नहीं थी, बल्कि पूरी तरह संगठित, शांत और प्रतीकात्मक विरोध था. किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया गया, सिर्फ चाय को निशाना बनाया गया—ब्रिटिश सत्ता के प्रतीक को.

इस घटना से ब्रिटिश सरकार भड़क उठी. प्रतिक्रिया में कठोर “कोअर्सिव एक्ट्स” (जिन्हें अमेरिका में “इंटॉलरएबल एक्ट्स” कहा गया) लागू किए गए. बोस्टन बंदरगाह बंद कर दिया गया, मैसाचुसेट्स की स्वायत्तता सीमित कर दी गई और ब्रिटिश सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा दी गई. लेकिन इन दमनकारी कदमों ने उपनिवेशों को डराने के बजाय और एकजुट कर दिया.

बोस्टन टी पार्टी के बाद पहली बार 13 उपनिवेश एक साझा लक्ष्य की ओर बढ़ते दिखे. 1774 में 'फर्स्ट कॉन्टिनेंटल कांग्रेस' बुलाई गई और कुछ ही वर्षों में यह टकराव पूर्ण युद्ध में बदल गया. 1775 में अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ और 1776 में स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गई.

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इतिहासकार मानते हैं कि बोस्टन टी पार्टी केवल चाय फेंकने की घटना नहीं थी, बल्कि यह नागरिक अवज्ञा, राजनीतिक चेतना और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ़ खड़े होने का साहसिक उदाहरण थी. यही कारण है कि आज भी इसे लोकतांत्रिक आंदोलनों में प्रतीकात्मक विरोध के एक शक्तिशाली उदाहरण के रूप में देखा जाता है.
 

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