भारतीय जनता पार्टी (BJP) जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भीतर आंतरिक दरार का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. वह राज्य में अत्यंत पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल करने के लिए काम कर रही है. सूत्रों के अनुसार बीजेपी अब जेडीयू के पिछड़े वोट बैंक को अपने समर्थन में लाने की रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी ने पार्टी के बिहार से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल, मंगल पांडे, राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर और नवीन नितिन की एक कमेटी बनाई है.
इस कमेटी का प्राथमिक उद्देश्य जेडीयू और अन्य दलों के पिछड़े समुदायों के नेताओं से संपर्क साधना है और उन्हें बीजेपी के पाले में लाना है. बीजेपी पिछड़े वर्ग के नेताओं को अपने खेमे में शामिल करने के लिए कड़े प्रयास कर रही है. यह कदम ऐसे राज्य में महत्वपूर्ण माना जा रहा है जहां 55 फीसदी से अधिक आबादी अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों की है.
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अत्यंत पिछड़े और महादलित समुदायों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. अब बीजेपी इस प्रभाव को संतुलित करने के लिए सक्रियता से जुटी है. चंद्रवंशी समुदाय से आने वाले पूर्व मंत्री भीम सिंह पहले ही सुहेली मेहता और प्रमोद चंद्रवंशी के साथ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
बीजेपी का बिहार को लेकर दृष्टिकोण उसकी ओर से उत्तर प्रदेश में अपनाई जा रही रणनीति को प्रतिबिंबित करता है, जहां पार्टी का लक्ष्य अत्यंत पिछड़े वर्गों के भीतर विभिन्न उप-जातियों के नेताओं को एकजुट करना है. बिहार में चंद्रवंशी समुदाय की आबादी लगभग सात फीसदी है और बीजेपी इस जनसांख्यिकीय का लाभ उठाने के लिए उत्सुक है.
इस मुद्दे को लेकर बीजेपी की प्रतिबद्धता न केवल उसके राजनीतिक दांव-पेचों में बल्कि संगठनात्मक निर्णयों में भी स्पष्ट है. बिहार के बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी की टीम में अत्यंत पिछड़े वर्ग के सदस्य शामिल हैं. यह समावेशिता को लेकर पार्टी के पक्ष को मजबूत करता है.
बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण के जारी होने से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. पार्टियां अत्यंत पिछड़े वर्गों के भीतर उप-जातियों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. ईबीसी के लिए आरक्षण 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने के नीतीश कुमार के फैसले ने आग में घी डालने का काम किया है. हालांकि बीजेपी अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए 30 फीसदी आरक्षण का वादा करते हुए इसे और बढ़ाने की वकालत कर रही है.
जेडीयू ने शुक्रवार को 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार को फिर से पार्टी अध्यक्ष चुना. यह बदलाव चुनाव से कुछ महीने पहले हुआ है और इस घटनाक्रम को लेकर नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षाओं को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं. विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में जेडीयू प्रमुख को पीएम पद के लिए संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है.