सुशील कुमार मोदी: लालू की 'भ्रष्ट लीला' लिखने वाला लालू का वो सेक्रेटरी

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का सोमवार रात दिल्ली एम्स में निधन हो गया. वो प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे. इसकी जानकारी उन्होंने कुछ समय पहले ट्वीट करके दी थी. सुशील मोदी का राजनीति सफर करीब पांच दशक का था. आइए जानते हैं उनके जीवन के अनछुए पहलुओं के बारे में.

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नई दिल्ली:

सियासत के शोर में वे बुद्ध से दिखाई देते थे. धीर, गंभीर और व्यक्तित्व में गहराई. समय से आगे. टैबलेट पर नजरें गड़ाए. नेताओं में अक्सर ऐसी गहराई की कम ही देखने को मिलती है. आप उन्हें चलती-फिरती लाइब्रेरी कह सकते थे. तथ्यों को कैसे सिलसिलेवार रखा जा सकता है, सुशील मोदी से बेहतर मिसाल कोई नहीं थी. जेपी आंदोलन ने 70 के दशक में नेताओं की जो एक पौध तैयार की, बिहार में वह उसका सबसे सुशील चेहरा थे.तमाम दलगत मतभेदों के बाद भी विपक्षी खेमे में लोकप्रिय.उनके दोस्त हर जगह थे. मतभेद के बाद भी जगन्नाथ मिश्र के वे करीबी रहे. जो उनकी पढ़ने-सीखने की आदत के मुरीद थे. लालू विरोधी खेमे में थे, लेकिन उनका तंज भी सुशील तक नरम होकर ही पहुंचता रहा.पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव पद से होते गुए वे देश के चारों सदनों तक पहुंचे. वे बिहार विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे. बिहार में लालू यादव और नागमणि के नाम ही यह उपलब्धि दर्ज थी.

लालू उन्हें अपना सेक्रटरी बुलाते रहे

बिहार के सियासी गलियारों में लालू के सेक्रेटरी वाले मजाक का एक किस्सा उनके बारे में बड़ा मशहूर है. लालू अक्सर सुशील मोदी को अपना 'सेक्रटरी' कहते. दरअसल यह दोनों का 1973 का छात्र जीवन का किस्सा था. बिहार से जेपी आंदोलन की धमक तब पूरे देश में सुनी जा रही थी. उन दिनों लालू, नीतीश, रविशंकर प्रसाद और सुशील मोदी भी इस आंदोलन के जरिए सियासत के संस्कार सीख रहे थे. उस साल पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव हुए. लालू अध्यक्ष, सुशील मोदी जनरल सेक्रेटरी चुने गए.रविशंकर प्रसाद ज्वाइंट सेक्रेटरी चुने गए थे.अध्यक्ष और सेक्रेटरी का यह रिश्ता दोनों ने धुर-विरोधी दलों में रहने के बावजूद निभाया. लालू उन्हें तंज के साथ अपना सेक्रेटरी बताते रहे.

कॉलेज में सियासी संन्यास लेकर वे यूनिवर्सिटी में सेकंड आए 

पटना में मोती लाल मोदी और रत्ना देवी के घर पैदा हुई सुशील कुमार मोदी की पढाई-लिखाई पटना में हुई. मोदी ने पटना साइंस कॉलेज से बीएससी ऑनर्स की पढाई की थी.सुशील मोदी को लेकर किस्से कई हैं. सुशील मोदी सिसायत के ऊपर हमेशा ज्ञान को तरजीह देते रहे. उनके कॉलेज के दिनों का एक और किस्सा काफी मशहूर है. यह काफी कुछ उनकी शख्सियत का इशारा देता है. 1973 में पटना यूनिवर्सिटी में वह महासचिव चुने जा चुके थे. एग्जाम शुरू हुआ, तो साथियों को लगा कि सुशील मोदी फेल हो जाएंगे, क्योंकि बॉटनी मुश्किल सब्जेट था. वह मुश्किल से ही कोई क्लास अटैंड कर पाए थे.  लेकिन एग्जाम से पहले जैसे सुशील कमरे में बंद हो गए.  सियासत के इस प्रेशर को उन्होंने अपने पढ़ाई पर नहीं आने दिया.  छात्र राजनीति से कुछ दिनों का संन्यास ले लिया. मेहनत रंग लाई और वह पूरी यूनिवर्सिटी में सेकंड आए.आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएशन में दाखिला लिया. लेकिन वो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर  जेपी आंदोलन में कूद पड़े. आपातकाल के दौरान सुशील मोदी 19 महीने जेल में रहे. 

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सुशील कुमार मोदी छात्र राजनीति से संसदीय राजनीति में आए थे.

छात्र राजनीति से संसदीय राजनीति

सुशील मोदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए थे.उनके राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो उन्होंने 1990 में उन्होंने पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीते थे.वो इसी सीट से 1995 और 2000 का भी चुनाव भी जीते.भाजपा ने 2004 के चुनाव में उन्हें भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया. वो इस चुनाव में एक लाख 17 हजार 753 वोटों से विजयी रहे.लेकिन जब 2005 में बिहार में भाजपा और जदयू की गठबंधन सरकार बनी तो उन्होंने संसद पद से इस्तीफा देकर विधान परिषद के जरिए विधानसभा पहुंचे.

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सुशील मोदी 2005 से 2013 और फिर 2017 से 2020 तक बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे.लेकिन 2020 में जब बिहार में एक बार फिर भाजपा-जदयू की सरकार बनी तो उपमुख्यमंत्री का पद किसी और को दे दिया गया. लेकिन वो इससे निराश नहीं हुए. पार्टी ने उनका ख्याल रखा और उन्हें राज्य सभा भेजा. उनका कार्यकाल इस साल फरवरी में ही खत्म हुआ. 

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सुशील मोदी ने अपने विदाई भाषण में कहा था,''देश में बीजेपी के बहुत कम ऐसे कार्यकर्ता होंगे, जिनको पार्टी ने इतना मौका दिया. मुझे देश के चारों सदनों में रहने का मौका मिला है.मैं तीन बार विधायक, एक बार लोकसभा, छह साल तक विपक्ष का नेता बिहार विधानसभा में, छह साल तक विधान परिषद में विपक्ष का नेता रहने का मौका मिला है. और बिहार के अंदर करीब 12 साल तक नीतीश कुमार के साथ भी काम करने का मौका मिला है."

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उन्होंने कहा था, "मुझे पार्टी के अंदर प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर भी काम करने का मौका मिला है.राजनीति में कोई आदमी जिंदगी भर काम नहीं कर सकता है, लेकिन सामाजिक तौर पर आजीवन काम कर सकता है.मैं संकल्प लेता हूं कि जीवन के अंतिम क्षण तक मैं सामाजिक कार्य करता रहूंगा.''

शादी और राजनीति का सफर

सुशील मोदी की शादी का किस्सा भी अजब है. एक बार वो ट्रेन से मुंबई की यात्रा पर थे. इसी यात्रा में उनकी मुलाकात जेसी से हुई.दोनों का प्रेम ट्रेन में ही परवान चढ़ा. बाद में 13 अप्रैल 1986 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए.यह शादी एक लो प्रोफाइल आयोजन था. सुशील मोदी और जेसी को आशीर्वाद देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी और कर्पूरी ठाकुर आए थे. इस दौरान ही वाजपेयी ने सुशील मोदी को सक्रिय राजनीति में आने का न्योता दिया. इसके बाद सुशील मोदी सक्रिय राजनीति में शामिल हुए तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

नीतीश कुमार से रिश्ता

सुशील मोदी भाजपा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति थे.साल 2020 में, जब भाजपा ने सुशील मोदी को राज्यसभा भेजा तो नीतीश कुमार ने इस बात को स्वीकार भी किया था. नीतीश ने कहा था, "हमने कई सालों तक एक साथ काम किया है, हर कोई जानता है कि मैं क्या चाहता था (मोदी को अपनी टीम में रखने के बारे में). हालांकि, पार्टियां अपने फैसले खुद लेती हैं. वे उन्हें बिहार के बजाय केंद्र में स्थानांतरित कर रहे हैं. हम उनके लिए खुश हैं और उन्हें शुभकामनाएं दें.''वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सुशील मोदी के नीतीश प्रेम की वजह से ही भाजपा बिहार में जदयू की बी टीम बनकर रह गई.जिससे बाहर आने के लिए भाजपा लगातार कोशिशें कर रही है. 

बिहार की राजनीति के प्रमुख स्तंभ लालू प्रसाद यादव और सुशील मोदी का राजनीतिक करियर एक साथ शुरू हुआ था. दोनो के व्यक्तिगत संबंध तो सामान्य रहे लेकिन राजनीतिक संबंध कभी सहज नहीं रहे.उन्होंने 1996 में चारा घोटाले को लेकर पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी.

जीवन भर किया लालू यादव का विरोध

सुशील मोदी ने 'लालू लीला' नाम से एक किताब भी लिखी है. इसमें लालू प्रसाद यादव के परिवार से संबंधित कथित घोटालों और अवैध संपत्तियों का सिलसिलेवार ब्योरा है.इसके अलावा भी उन्होंने कई किताबें लिखीं. इनमें 'बीच समर में' और 'क्या बिहार भी बनेगा आसाम',  'उर्दू द्वितीय राजभाषा का विरोध क्यों', 'आरक्षण: विभेदमूलक न्याय, समस्या या समाधान' और 'चारा चोर: खजाना चोर'जैसे बुकलेट शामिल हैं.'बीच समर में' उनकी जेल में बिताए समय, विधानसभा में दिए भाषणों और छपे लेखों का संग्रह है.

नीतीश कुमार के भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद 2015 में बनी जेडीयू-आरजेडी की सरकार को सुशील मोदी ने निशाने पर रखा. उन्होंने लालू परिवार की बेनामी संपत्तियों और नौकरी के बदले जमीन के आरोप लगाते हुए 44 प्रेस कांफ्रेंस कीं.इसका परिणाम यह हुआ कि नीतीश कुमार की सरकार 26 जुलाई 2017 को गिर गई.राज्य में अगली बनी सरकार में सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री बनाए गए.

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