88 बड़े नेताओं से रायशुमारी... बिहार चुनाव से पहले नए पार्टी अध्यक्ष को लेकर BJP में महामंथन

Next BJP President: अभी जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष हैं. जनवरी, 2020 में चुने गए नड्डा का तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से उन्हें विस्तार मिलता रहा है. पहले उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों के कारण और फिर संगठनात्मक कवायद के कारण विस्तार दिया गया.

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बिहार चुनाव से पहले BJP को मिलेगा नया अध्यक्ष.
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  • बिहार विधानसभा चुनाव से पहले BJP को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलेगा और वह चुनाव उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद होगा.
  • BJP ने 88 वरिष्ठ नेताओं से नए अध्यक्ष के सुझाव लिए हैं जिनमें पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं..
  • BJP प्रदेश व जिला अध्यक्षों के चुनाव में व्यापक रायशुमारी करती है ताकि संगठन में सर्वसम्मति और मजबूती बनी रहे.
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नई दिल्ली:

BJP President Election: बिहार में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा का चुनाव होना है. सभी राजनीतिक दलें और प्रशासन इस चुनाव की तैयारी में जुटी हैं. इस बीच बिहार और केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी अपने अध्यक्ष चुनाव की तैयारियों में भी जुटी है. अब बीजेपी के विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले BJP को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद पार्टी इस काम में जुटेगी. सूत्रों के अनुसार इनमें बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष, वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और आरएसएस बीजेपी से जुड़े और संवैधानिक पदों पर रह चुके नेताओं से बातचीत की गई है. ऐसे 88 वरिष्ठ नेताओं से व्यक्तिगत मुलाकात कर बीजेपी के नए अध्यक्ष के बारे में उनसे सुझाव लिया गया है.

नए अध्यक्ष की अगुवाई में बिहार चुनाव में उतरेगी बीजेपी!

कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी नए अध्यक्ष की अगुवाई में उतर सकती है. अभी जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष हैं. जनवरी, 2020 में चुने गए नड्डा का तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से उन्हें विस्तार मिलता रहा है. पहले उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों के कारण और फिर संगठनात्मक कवायद के कारण विस्तार दिया गया.

बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में क्यों हुई देरी?

बीजेपी के नए अध्यक्ष के चयन में कई कारणों से देरी हुई है. इसमें एक बड़ा कारण यह भी है व्यापक विचार-विमर्श किया गया है. नए बीजेपी अध्यक्ष के नाम के सुझाव के लिए आरएसएस और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने करीब सौ नेताओं से संपर्क साधा है. सूत्रों के अनुसार इनमें बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष, वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और आरएसएस बीजेपी से जुड़े और संवैधानिक पदों पर रह चुके नेताओं से बातचीत की गई है.

सूत्रों ने बताया कि ऐसे 88 वरिष्ठ नेताओं से व्यक्तिगत मुलाकात कर बीजेपी के नए अध्यक्ष के बारे में उनसे सुझाव लिया गया है. जहां कई वरिष्ठ नेताओं ने अपनी ओर से कुछ नाम भी सुझाए. वहीं कुछ ने कहा कि जो भी नाम तय हो, उनकी ओर से सहमति रहेगी.

संसद सत्र और उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद आएगी तेजी

सूत्रों ने कहा कि संसद का मानसून सत्र समाप्त होने के बाद अब नए अध्यक्ष के चुनाव में तेजी आएगी. 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति का चुनाव होना है और अभी पूरी ऊर्जा उसी में लगी है क्योंकि यह तय किया गया है कि एनडीए उम्मीदवार अधिकतम वोटों से जीते. उसके बाद यूपी, गुजरात, कर्नाटक जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव हो सकता है. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा.

राष्ट्रीय अध्यक्ष से पहले राज्यों के अध्यक्षों का चुनाव जरूरी

भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले इसके 36 संगठनात्मक राज्यों में से कम से कम 19 में अध्यक्षों का चुनाव होना आवश्यक है. इनमें सभी 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं. बीजेपी ने जुलाई तक 36 में से 28 संगठनात्मक राज्यों में चुनाव पूरा कर लिया. अब केवल आठ राज्यों में चुनाव बाकी है. ये हैं उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, पंजाब और मणिपुर. हालांकि पंजाब में बीजेपी ने कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है.

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ऊपर से नीचे तक अध्यक्षों के चुनाव में बड़ी रायशुमारी

बीजेपी ने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए जिस तरह की रायशुमारी की है, ठीक वैसी ही प्रदेश अध्यक्षों और जिला अध्यक्षों के लिए भी की गई है. पार्टी की कोशिश यह है कि सर्वसम्मति से चुनाव हो ताकि संगठन मजबूती से काम करता रहे. इसी तरह मंडल अध्यक्षों के चुनाव में बीजेपी ने नए खून को मौका देने का फैसला किया था. यह प्रयास किया गया है कि पूरे देश में हुए मंडल अध्यक्ष चुनाव में नए मंडल अध्यक्ष की उम्र चालीस वर्ष से कम हो.

मंडल अध्यक्षों के रूप में ज्यादातर युवाओं को मौका

पार्टी नेताओं के अनुसार मोटे तौर पर इस नियम का पालन किया गया है. इसीलिए देश भर के करीब 15 हजार मंडलों में से अधिकांश में युवाओं को मौका दिया गया है. इसी तरह जिला अध्यक्षों और प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव में यह ध्यान रखा गया है कि वह कम से कम दस साल से बीजेपी में सक्रिय सदस्य रहा हो.

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ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने से बीजेपी के कार्यकर्ताओं में असंतोष होता है. हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी सामने आए हैं.

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