Pegasus स्पाइवेयर के इस्तेमाल पर सामने आई रिपोर्ट के बाद पैदा हुए विवाद के बीच पूर्व केंद्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल किया है कि जब 45 देश इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर सिर्फ भारत को ही क्यों निशाना बनाया गया. द वायर की रिपोर्ट में बताया गया है कि संभावित टारगेट की लिस्ट में जो नंबर पाए गए हैं, वे भारत, अज़रबैजान, बहरीन, हंगरी, कज़ाकस्तान, मेक्सिको, मोरोक्को, रवांडा, सऊदी अरब और यूएई के हैं.
साल 2019 में जब पहली बार Pegasus स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की खबरें आई थीं, तब आईटी मंत्रालय रवि शंकर प्रसाद संभाल रहे थे और उन्होंने सरकार के पक्ष में सफाई दी थी. आज उन्होंने कहा, 'Pegasus स्पाइवेयर की निर्माता कंपनी एनएसओ ने स्पष्ट कहा है कि इनके क्लाइंट ज्यादातर पश्चिमी देश हैं. तो इस मामले में भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? इसके पीछे क्या कहानी है? कहानी में क्या ट्विस्ट है?'
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रिपोर्ट के समय पर सवाल उठाते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, क्या मानसून सत्र से पहले 'एक नया माहौल बनाने' के लिए कुछ लोग जानबूझकर खबर ब्रेक करने की कोशिश कर रहे थे.
"क्या हम इस बात से इनकार कर सकते हैं कि Amnesty जैसी संस्थाओं का भारत विरोधी एजेंडा है?" उन्होंने उस अंतरराष्ट्रीय संगठन का जिक्र करते हुए कहा, जिसने लिस्ट जारी की थीं, जिन पर भारतीय और विदेशी मीडिया ने विस्तृत जांच की थी.
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एक बार फिर इस मामले में सरकार की भूमिका का खंडन करते हुए प्रसाद ने कहा, 'इस पूरे पेगासस प्रकरण से भारत सरकार या भाजपा को जोड़ने के मामले में अंशमात्र भी सबूत नहीं है.' सरकार की भूमिका का सवाल तब पैदा हुआ, जब एनएसओ ने शुरुआत से कहा कि वे अपना सॉफ्टवेयर केवल 'जांची-परखी सरकारों' और उनकी एजेंसियों को देती है.
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साल 2019 में व्हॉट्सऐप ने आरोप लगाया था कि उनके कई यूजर्स के अकाउंट के साथ Pegasus का इस्तेमाल करते हुए छेड़छाड़ की गई है. इसका प्रसाद ने यह कहते हुए खंडन कर दिया था कि यह 'सरकार की छवि खराब' करने की कोशिश है. उन्होंने कहा था, 'सरकार अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें निजता का अधिकार भी शामिल है.'
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