पूर्व विधायक आनंद मोहन की रिहाई को बिहार सरकार ने ठहराया सही, SC में कही ये बात

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सजा एक समान है. उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी को सिर्फ इसलिए छूट से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि मारा गया पीड़ित एक लोक सेवक था.

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आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा

गोपालगंज के जिलाधिकारी रहे जी कृष्णैया की हत्या का मामले में पूर्व विधायक आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को बिहार सरकार ने सही ठहराया है. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सजा एक समान है. उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी को सिर्फ इसलिए छूट से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि मारा गया पीड़ित एक लोक सेवक था.  मोहन को 1994 में  गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट की हत्या के लिए उकसाने के आरोप में उम्रकैद की सजा हुई थी,  लेकिन नियमों में 10 अप्रैल को संशोधन किया गया और गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन 7 अप्रैल को जेल से बाहर आ गए. 

बिहार सरकार के हलफनामे में कहा गया है, "पीड़ित की स्थिति छूट देने या इनकार करने का कारक नहीं हो सकती.  (मोहन की सजा माफी पर नीति के अनुसार और निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विचार किया गया था.  राज्य की छूट नीति में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमित गुंजाइश है. विभिन्न प्रासंगिक कारकों पर ध्यान देने के बाद लोक सेवकों की हत्या के दोषी आजीवन दोषियों की समयपूर्व रिहाई के खिलाफ प्रतिबंध को हटाने के लिए 2012 के जेल नियमों को 10 अप्रैल को बदल दिया गया था. दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे अन्य राज्यों द्वारा बनाए गए समान नियमों में ऐसा कोई अंतर मौजूद नहीं है. आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सजा एक समान है. आम जनता की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र माना जाता है और दूसरी ओर, किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए विचार किए जाने के लिए पात्र नहीं माना जाता है इसीलिए ये पात्रता बदली गई. 

हलफनामे के अनुसार, यह पाया गया कि एक लोकसेवक की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की समयपूर्व रिहाई पर विचार करने की अयोग्यता भारतीय दंड संहिता के तहत सामान्य रूप से हत्या के लिए निर्धारित सजा के अनुरूप नहीं थी. प्रासंगिक रिपोर्ट अनुकूल होने के बाद मोहन को रिहा कर दिया गया. नीतीश  सरकार ने कहा कि उन्होंने अपनी कैद के दौरान तीन किताबें लिखीं.  जेल में सौंपे गए कार्यों में भी भाग लिया.

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 8 मई को बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से रिहाई संबंधी सिफारिश का पूरा रिकॉर्ड मांगा था. कोर्ट ने कहा कि 8 अगस्त को सुनवाई होगी. कोर्ट ने कहा कि अब आगे सुनवाई नहीं टलेगी. कोर्ट ने बिहार सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा  था. कृष्णैया की पत्नी उमादेवी ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर आनंद मोहन की रिहाई और कानून बदले जाने को चुनौती दी है, पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.

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