बिहार चुनाव: कांग्रेस और आरजेडी में जानिए आखिरी वक्त किन पांच सीटों पर फंस गया मामला

महागठबंधन के दो बड़े दलों के बीच बात ना बनने के कारण सीटों के बंटवारे की घोषणा में देरी हो रही है. महागठबंधन के नेता केवल इस बात की प्रार्थना कर रहे हैं कि देर आयद दुरुस्त आयद हो और सब कुछ ठीक रहे.

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  • महागठबंधन में सहरसा, कहलगांव, बायसी, बहादुरगंज और रानीगंज सीटों को लेकर कांग्रेस और आरजेडी के बीच विवाद है.
  • कांग्रेस कहलगांव, बायसी और बहादुरगंज सीटें लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर मांग रही है.
  • कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बनने से महागठबंधन की घोषणा में देरी हो रही है.
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महागठबंधन में सीटों के समझौते को लेकर लगातार बैठकें हो रही हैं. देर रात तक नेता लोग माथापच्ची में लगे हैं. फिर भी कुछ सीटों पर मामला फंसा हुआ है. खासकर बायसी, बहादुरगंज, रानीगंज, कहलगांव और सहरसा. सबसे पहले बात करते हैं सहरसा की, जहां पहले खबर आई कि यह सीट कांग्रेस लड़ेगी. ये भी कहा गया कि आईआईपी (इंडिया इनक्लुसिव पार्टी) के आईपी गुप्ता यहां से उम्मीदवार होंगे. कांग्रेस अपने कोटे से आईआईपी को दो सीट दे रही है, मगर अब कहा जा रहा है कि आरजेडी ने इस सीट पर दावा ठोक दिया है. लिहाजा ये सीट फंस गई है.

कांग्रेस क्यों कर रही दावा

सहरसा में पिछली बार बीजेपी के आलोक रंजन ने आरजेडी के लवली आनंद को 20 हजार मतों से हराया था. उसी तरह कहलगांव की सीट पर कांग्रेस का दावा है, क्योंकि यह सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस की है और लगातार सदानंद सिंह ये सीट जीतते रहे हैं. पिछली बार यहां से बीजेपी जीती थी. अब आरजेडी इस सीट पर दावा कर रही है, मगर कांग्रेस इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. पिछली बार भी ये सीट कांग्रेस ने ही लड़ी थी. सीमांचल की बायसी और बहादुरगंज भी कांग्रेस लड़ना चाहती है, क्योंकि कांग्रेस का कहना है कि सीमांचल में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. यदि पप्पू यादव को मिला दिया जाए तो उसके पास सीमांचल में तीन सांसद हैं. किशनगंज,कटिहार और पूर्णिया. 

पिछले चुनाव में कौन जीता था

बायसी और बहादुरपुर पिछली बार ओवैसी की पार्टी ने जीता था, बाद में यहां के विधायक आरजेडी में शामिल हो गए. कांग्रेस का कहना है कि इन विधायकों के खिलाफ उनके विधानसभा क्षेत्र में विरोध है और लोकसभा के प्रदर्शन के आधार पर ये दोनों सीटें कांग्रेस को मिलनी चाहिए. रानीगंज की सीट पर आरजेडी इस लिए दावा कर रही है कि पिछली बार आरजेडी ये सीट सवा दो हजार से हार गई थी. सबसे मजेदार बात है कि ये पांचों सीट, जिसमें पिछली बार कांग्रेस ने कहलगांव और बहादुरपुर लड़ा था और आरजेडी ने सहरसा, बायसी और रानीगंज पर चुनाव लड़ा था, दोनों पार्टी हार चुकी हैं. इस बार इन पांचों हारी हुई सीटों की वजह से महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी का मामला फंस गया है. 

दोनों दलों में चल रही तनातनी

दोनों पार्टियां इन सीटों पर पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. दोनों दलों के नेता बार-बार बैठकें कर रहे हैं. मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं. वैसे ही तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा ना घोषित करना भी इन दोनों दलों के बीच आपसी मतभेद को दर्शाता है. कांग्रेस के पर्यवेक्षक और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसे रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं. इन्हीं वजहों से महागठबंधन के दो बड़े दलों के बीच बात ना बनने के कारण सीटों के बंटवारे की घोषणा में देरी हो रही है. महागठबंधन के नेता केवल इस बात की प्रार्थना कर रहे हैं कि देर आयद दुरुस्त आयद हो और सब कुछ ठीक रहे.

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