- बिहार चुनाव 2025 में तीन महीने से अधिक समय बचा है, लेकिन राजनीतिक गतिविधियां दोनों प्रमुख गठबंधनों में तेज हो रही हैं.
- एनडीए के दो दलित प्रतिनिधि सहयोगी, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टियों के बीच सीट बंटवारे और कानून व्यवस्था को लेकर विवाद जारी है.
- विवाद के बीच एक काल्पनिक पात्र चिंटू की चर्चा शुरू हुई, जो दोनों पक्षों के नेताओं के बीच वार-पलटवार का केंद्र बन गया है.
Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में तीन महीने से ज्यादा का समय बचा है , लेकिन ऐसा नहीं है कि सियासत में कोई कमी हो. बल्कि हर बीतते दिन के साथ उसमें इजाफा भी हो रहा है और मसाला भी मिल रहा है. दोनों प्रमुख गठबंधनों के भीतर ही खींचतान चल रही है. ताजा उदाहरण एनडीए के दो सहयोगी, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी का है.
'चिंटू' की एंट्री
दोनों पार्टियों के बीच पिछले कुछ समय से कई मुद्दों को लेकर जबरदस्त खींचतान चल रही है. दोनों पार्टियां दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं. मामला चाहे सीटों के बंटवारे का हो, या बिहार में कानून व्यवस्था का, ये दोनों पार्टी एक दूसरे पर वार पलटवार का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. अब दोनों के बीच एक काल्पनिक चरित्र की एंट्री हुई है जिसका नाम रखा गया है 'चिंटू'.
कैसे हुई एंट्री
इसकी शुरुआत तब हुई जब चिराग पासवान ने बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए 12 जुलाई को X पर एक पोस्ट लिखा. उसके कुछ करीब दो घंटे बाद ही जीतन राम मांझी ने चिराग का बिना नाम लिए पलटवार किया और X पर लिखा कि, गठबंधन धर्म का पालन करना चाहिए. बस फिर क्या था, दोनों पार्टियों के बाकी नेता भी मैदान में उतर आए.
चिराग के बहनोई और जमुई सांसद अरुण भारती ने 13 जुलाई को एक पोस्ट किया, जिसमें पहली बार एक काल्पनिक पात्र 'चिंटू' का जिक्र आया. भारती ने लिखा कि हिंदी फिल्मों में हीरो या विलेन के साथ एक चिंटू होता था जो चाय से ज्यादा केतली गर्म वाली कहावत चरितार्थ करता था. बस , फिर क्या मांझी की पार्टी के एक प्रवक्ता ने पलटवार करते हुए एक बंदर की तस्वीर लगा दी और लिखा, हमारे एक सहयोगी ने चिंटू पाल रखा है. इसके बाद तो इस 'चिंटू' को केंद्र में रखकर दोनों पार्टियों के नेता वार पलटवार करने लग गए.
दलितों का प्रतिनिधित्व
एनडीए गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे पर औपचारिक बातचीत अगले महीने शुरू होने की संभावना है. जाहिर है कि गठबंधन की सभी पार्टियां अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग करेंगी. ऐसे में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी, दोनों ही खुद को दलितों का असली प्रतिनिधि के तौर पर पेश करना चाहती हैं. इसलिए गाहे बगाहे एक दूसरे पर वार पलटवार करते रहते हैं.