बिहार : CM नीतीश कुमार ने RCP सिंह को राज्यसभा का टिकट ना देकर साबित किया कि 'बॉस' वही हैं

जदयू सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अब तक उनकी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में रहे केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह को राज्यसभा (Rajyasabha) का टिकट ना देकर तीसरी बार उनके संसद के ऊपरी सदन जाने का सपना पूरा नहीं होने दिया.

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पटना:

जदयू सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अब तक उनकी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में रहे केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह को राज्यसभा (Rajyasabha) का टिकट ना देकर तीसरी बार उनके संसद के ऊपरी सदन जाने का सपना पूरा नहीं होने दिया. नीतीश ने जिस खीरु महतो को राज्यसभा का टिकट दिया हैं, वो झारखंड से हैं. पिछले कई दिनों के घटनाक्रम से साफ था कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह (RCP Singh) से खुश नहीं चल रहे. ऐसे में वो अपनी नाराजगी को उनको टिकट ना देकर सार्वजनिक करना चाहते थे और उन्होंने आख़िर वही किया.

हालांकि, नीतीश कुमार की अनुशंसा के बाद केंद्र में मंत्री आरसीपी को टिकट ना मिलने कि पुष्टि गुरुवार शाम नीतीश कुमार के साथ करीब चालीस मिनट की बैठक के दौरान हो गयी थी, बैठक के दौरान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने भी अंतिम के कुछ पल नीतीश के इशारे पर उपस्थिति दर्ज करायी थी. उसके बाद नीतीश कुमार, ललन सिंह को साथ लेकर शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी के यहां बेटे की शादी में गये थे और आरसीपी पहले घर गये और जब नीतीश और ललन शादी से निकले तो उसके बाद वो वहां पहुंच कर वरवधू को आशीर्वाद दिया था. इसके एक दिन पहले विजय कुमार चौधरी ने अपने घर पर चुनिंदा लोगों को डिनर पर बुलाया था. 

इस डिनर में नीतीश की भावना और उनके अंदर आरसीपी  के प्रति गुस्से के मद्देनजर आरसीपी को निमंत्रित करना उचित नहीं समझा था. जबकि, आरसीपी दिल्ली में कैबिनेट की बैठक में भाग लेने के बाद पटना वापस आ गये थे. आरसीपी सिंह अपने मिलने वाले सभी लोगों को ये दिलासा ज़रूर देते थे कि उन्हें टिकट मिलने में कोई खास दिक्कत नहीं हैं लेकिन उनके कट्टर समर्थक वहां संजय गांधी और ललन सर्राफ़ को ना देखकर अंदाज़ा लगा लेते थे कि फ़िलहाल नीतीश का ग़ुस्सा आरसीपी के प्रति कम नहीं हुआ है. सर्राफ़ और संजय गांधी नीतीश के मन मिज़ाज को भांप कर ही जनता दल में किसी को सलाम और प्रणाम या उसके फ़ोन का जवाब देते हैं और ये अगर किसी से दूरी बना रहे हो तो वो नीतीश का आपके प्रति नाराज़गी पर एक तरह से मुहर लगना है. 

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जहां तक नीतीश की नाराज़गी की वजह की बात है तो सबसे पहला उनका भाजपा खासकर केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव से कुछ अधिक नज़दीकी है. नीतीश निजी बातचीत में बिहार में एनडीए के अंदर सारी उठापटक के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते है. खासकर नीतीश को अपनी राजनीतिक स्थिति और दुर्दशा के लिए यादव सबसे अधिक दोषी पाते हैं. उनके अनुसार बिहार भाजपा के अंदर से जो भी उनके खिलाफ बगावती या आलोचना के सुर सुनने को मिलते हैं, उसके पीछे विचार भूपेन्द्र यादव के ही होते हैं. इसलिए भूपेन्द्र के दोस्त जैसे आरसीपी एक तरह से नीतीश के अनुसार उनके शुभचिंतक नहीं हो सकते. दूसरा यूपी चुनाव के समय एक भी सीट पर सहमति ना बन पाना नीतीश को आज तक पच नहीं पाया कि आरसीपी ने उनके अनुसार तालमेल को गंभीरता से नहीं लिया. तीसरा हाल के समय में नीतीश को आरसीपी पर समांतर व्यवस्था चलाने का शक हो गया जैसे वे नीतीश कुमार द्वारा आयोजित इफ़्तार में तो शामिल नहीं होने आये लेकिन अपने गांव मुस्तफापुर में ईद मिलन वो भी त्योहार के कई दिन बाद आयोजित किया. ये सब नीतीश कुमार को नागवार गुज़रा और वे आरसीपी को सबक़ सिखाना चाहते थे और राज्य सभा का टिकट ना देकर बदला ले ही लिया.

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नीतीश का अपने बनाये या जिन लोगों की राजनीति में उनकी भूमिका अहम रही हैं उनको एक समय के बाद काटने की पुरानी आदत रही है. लेकिन उनको आरसीपी के प्रति अधिक चिंता करने की इसलिए भी ज़रूरत नहीं है क्योंकि आरसीपी को उनके गृह ज़िला नालंदा के जदयू के पुराने विधायक जैसे श्रवण कुमार हो या सांसद कौशलेंद्र कुमार पसंद नहीं करते. इसके अलावा नीतीश कुमार ने विधायकों की राय शुमारी कर इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर अपने आप को अधिकृत करवा लिया था.

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लेकिन नीतीश कुमार के इस फ़ैसले का निश्चित रूप से भाजपा के साथ संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. हालांकि, नीतीश कुमार इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि अगले लोकसभा चुनाव तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो उनकी ज़रूरत है इसलिए कोई उनको कुछ राजनीतिक नुक़सान नहीं पहुंचा सकता.

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