तेजस्वी यादव को चुनौती देना तेजप्रताप यादव के लिए महंगा सौदा क्यों?

जानकारों का मानना है कि तेजप्रताप यादव की बातें मानने के लिए अब ना तो लालू और ना ही तेजस्वी तैयार हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके इमोशनल ब्लैकमेलिंग से पार्टी इसलिए कमजोर होती हैं क्योंकि वो विपक्ष से अधिक अपने पार्टी के नेताओं को ही निशाने पर रखते हैं.

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RJD के विधायकों की मानें तो तेजप्रताप में लालू यादव का बेटा होने के अलावा कोई भी एक गुण नहीं है
पटना:

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) के घर में इन दिनों उनके दोनों बेटों जिसमें उनके राजनीतिक उतराधिकारी तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी है. हालाँकि, ये बात किसी से छिपी नहीं कि जहां तक नेतृत्व का सवाल है, इस मुद्दे को लालू यादव ने तेजस्वी यादव के पक्ष में पांच वर्ष पूर्व ही तय कर दिया था.

लालू यादव के इस फ़ैसले को सबने यहाँ तक कि उनके विरोधियों ने भी मान लिया, ख़ासकर पिछले विधान सभा चुनाव में जितना बेहतर प्रदर्शन तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन का रहा, उसके बाद तो ये चर्चा का विषय भी नहीं रहा लेकिन इस सच को पार्टी नेताओं की मानें तो तेजप्रताप यादव पचा नहीं पा रहे. वो भले अपने आप को कृष्ण और तेजस्वी को अपना अर्जुन बताते हों लेकिन उनके मन में ये टीस हमेशा रहती है कि पार्टी में उनको भाव नहीं मिलता.

राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों की मानें तो तेजप्रताप में लालू यादव का बेटा होने के अलावा कोई भी एक गुण नहीं है और ख़ासकर उनका सार्वजनिक जीवन में जैसा व्यवहार होता है कि कभी वो कृष्णा भक्त बन जाते हैं तो कभी शिव भक्त, उससे समाज में उनकी काफ़ी हास्यास्पद छवि बनी है. रही सही कसर उनका अपनी पत्नी से चला विवाद है. इसके बाद पार्टी में कोई नेता उनके साथ एक सेल्फ़ी भी नहीं लेना चाहता.

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ताज़ा प्रकरण में जब अपने करीबी आकाश यादव को हटाने के बाद तेजप्रताप यादव ने पार्टी के राज्य इकाई के अध्यक्ष जगदानंद सिंह को निशाना बनाया तो शायद वो इस सच से अनभिज्ञ थे कि पार्टी के इस कदम में उनके पिता लालू यादव की सहमति है और तेजस्वी यादव के निर्देशन में ये फ़ैसला लिया गया है. पिछले वर्ष लालू यादव ने अपने करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह के प्रति तेजप्रताप यादव द्वारा व्यंग्य प्रकरण के बाद इस बार जगदानंद सिंह के ख़िलाफ़ अपने बड़े बेटे के उसी तरह के अपमानजनक व्यवहार के बाद इस निर्णय पर पहुंचने में देर नहीं लगायी कि अगर तेजप्रताप को साफ-साफ संदेश नहीं दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब अपनी बात मनवाने के लिए तेजप्रताप इसे ही नियम बना ले. इसलिए उन्होंने जगदानंद सिंह को वापस पार्टी कार्यालय में बैठेने के लिए मनाया.

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इस प्रकरण में बची-खुची कसर तेजस्वी यादव ने शुक्रवार की शाम ये बयान देकर पूरी कर दी कि आप बड़े भाई हैं लेकिन माता-पिता ने अनुशासन और अपने से बड़ों को सम्मान और इज़्ज़त देने का भी पाठ सिखाया है, उसे नहीं भूलना चाहिए. तेजस्वी के इस बयान का साफ अर्थ यही निकाला गया कि फ़िलहाल तेजप्रताप अपनी हरकतों और बयानों से कोई बात नहीं मनवा सकते हैं और पार्टी में वही होगा, जो लालू यादव की सहमति से तेजस्वी यादव चाहेंगे.

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जानकारों का मानना है कि तेजप्रताप यादव की बातें मानने के लिए अब ना तो लालू और ना ही तेजस्वी तैयार हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके इमोशनल ब्लैकमेलिंग से पार्टी इसलिए कमजोर होती हैं क्योंकि वो विपक्ष से अधिक अपने पार्टी के नेताओं को ही निशाने पर रखते हैं. दूसरा तेजप्रताप जैसा समानांतर अपनी व्यवस्था क़ायम रखना चाहते हैं वो अब उन्हें देने के लिए ना भाई और ना पिता तैयार हैं. इसलिए पार्टी नेताओं के अनुसार तेजप्रताप यादव के पास फ़िलहाल अपने नाटकीय रवैए को छोड़कर सामान्य विधायक के तौर पर रहने में भलाई है.

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