बजट की बड़ी घोषणा बनी अधूरा वादा, 20 महीने बाद भी एचपीवी वैक्सीन कार्यक्रम नहीं हुआ शुरू, पढ़ें वजह

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में दुनिया के कुल सर्वाइकल कैंसर मौतों का करीब 23% हिस्सा दर्ज होता है जो इस वैक्सीन कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है.

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एचपीवी वैक्सीनेशन को लेकर बड़ी अपडेट

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024 में किशोरियों को गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल) कैंसर से बचाने के लिए एचपीवी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने की जो घोषणा की थी, वह अब घोषणा ही है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा है कि संसद में किए गए इस “महत्वाकांक्षी वादे” पर अब तक एक भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है. नीमच (मध्य प्रदेश) के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ की आरटीआई में जो तथ्य सामने आए हैं, वे सरकार की घोषणाओं और वास्तविकता के बीच की दूरी दिखाते हैं. मंत्रालय ने 23 अक्टूबर 2025 को लिखित जवाब दिया है जिसके हिसाब से इस योजना से संबंधित कोई फाइल मूवमेंट, बैठक, मेमोरेंडम या कार्यान्वयन दस्तावेज़ नहीं दिये गये हैं. न तो किसी वैक्सीन निर्माता कंपनी के साथ समझौता हुआ है, न कोई बजटीय प्रावधान या व्यय दर्ज किया गया है.

मंत्रालय ने दिया है लिखित जवाब 

मंत्रालय ने अपने लिखित जवाब में स्पष्ट किया कि सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) के तहत इस समय 12 टीका-रोधी बीमारियों (VPDs) के खिलाफ 11 टीके दिये जाते हैं. एचपीवी वैक्सीन अभी सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है. हालांकि, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने गर्भाशय ग्रीवा कैंसर वैक्सीन कार्यक्रम के लिए चिकित्सकीय और पैरामेडिकल स्टाफ के क्षमता निर्माण की प्रक्रिया शुरू की है. 

सर्वाइकल कैंसर से बचाने की कोशिश फेल!

इसका सीधा मतलब है कि बजट 2024 में भले ही इसकी घोषणा संसद में हुई हो, लेकिन न तो यह वैक्सीन यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल हुई है, न ही इसका कोई औपचारिक क्रियान्वयन शुरू हुआ है. 1 फरवरी 2024 को बजट भाषण में जब वित्त मंत्री ने 9 से 11 वर्ष की आयु की लड़कियों को सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए टीकाकरण के लिए “प्रोत्साहित” करने की बात कही थी, तब इसे महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम बताया गया था. उम्मीद थी कि इससे हर साल हजारों जिंदगियां बचाई जा सकेंगी. लेकिन 20 महीने बाद, मंत्रालय के आरटीआई जवाब ने सच्चाई उजागर कर दी, जिस पहल से देश की एक पूरी पीढ़ी को इस घातक कैंसर से सुरक्षा मिल सकती थी, वह ब्यूरोक्रेसी की फाइलों में फंसी पड़ी है.

आरटीआई कार्यकर्ता ने उठाए सवाल

आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ सवाल उठाते हैं कि क्या सरकार ने बिना तैयारी के चुनाव से पहले यह घोषणा कर दी थी? यह बेहद निराशाजनक और चिंताजनक है. यह सरकार की अपने ही बजटीय वादों के प्रति कमजोर प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जब हर दिन सैकड़ों नए सर्वाइकल कैंसर के केस सामने आ रहे हैं और करीब 200 महिलाएं रोज़ इस बीमारी से मर रही हैं, तो आखिर कार्रवाई कब होगी?

भारत में सर्वाइकल कैंसर मौतों का आंकड़ा बड़ा 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में दुनिया के कुल सर्वाइकल कैंसर मौतों का करीब 23% हिस्सा दर्ज होता है जो इस वैक्सीन कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है. जन स्वास्थ्य अभियान (JSAI) के राष्ट्रीय संयोजक अमूल्य निधि ने कहा कि सरकार की घोषणा के बावजूद अब तक एचपीवी वैक्सीन को यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल नहीं किया गया है. यह वैक्सीन गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से बचाव में बेहद प्रभावी है एक ऐसी बीमारी जो हर साल हजारों महिलाओं की जान लेती है. एनटीएजीआई ने 2022 में ही इसके शामिल किए जाने की सिफारिश की थी. देरी अब जानलेवा साबित हो रही है.

सरकार को लेना होगा बड़ा एक्शन 

उन्होंने कहा कि भारत में स्वदेशी ‘सर्वावैक' (Cervavac) वैक्सीन को नियामकीय मंजूरी मिल चुकी है और अब सरकार को पारदर्शिता, सुरक्षा और समान पहुंच सुनिश्चित करते हुए तत्काल कदम उठाने चाहिए. हर साल की देरी लाखों लड़कियों को इस जीवनरक्षक सुरक्षा से वंचित कर रही है. अगर भारत को 2030 तक सर्वाइकल कैंसर समाप्ति का लक्ष्य पाना है, तो अब वादों से आगे बढ़कर कार्रवाई करनी होगी.”

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स्वास्थ्य मंत्रालय का जवाब 

एचपीवी वैक्सीन का इतिहास भारत में विवादों से भरा रहा है. 2009 में आंध्र प्रदेश और गुजरात में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ चलाए गए डेमो प्रोजेक्ट को अनैतिकता और सहमति से जुड़ी खामियों के कारण रोक दिया गया था. इस पर संसद में भी सवाल उठे थे. स्वास्थ्य मंत्रालय ने फिलहाल केवल “क्षमता निर्माण” की बात कही है, लेकिन न कोई टाइमलाइन घोषित हुई है, न क्रियान्वयन की रूपरेखा. संसद से किए गए वादे, अखबारों में बने सुर्खियां, लेकिन ज़मीन पर शून्य कार्रवाई हुई. 20 महीने बाद भी जब भारत में रोज़ सैकड़ों महिलाएं इस रोकथामी बीमारी से जान गंवा रही हैं, तब सवाल उठता है,
क्या बजट 2024 में किया गया एचपीवी वैक्सीन का वादा सिर्फ एक चुनावी नारा था, या आधी आबादी से किया गया एक और भूला हुआ वादा?

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