भुवना वासुदेवन पुडुचेरी के ब्रिजेस लर्निंग विद्यालय की विशेष शिक्षिका हैं, वो जैसे ही अपनी कक्षा में कदम रखती हैं, वहां मौजूद डिस्लेक्सिया और ऑटिज्म जैसी बीमारियों से जूझ रहे बच्चों का चेहरा खुशी से खिल जाता है. कुछ बच्चे ताली बजाते हैं, कुछ गले लगाते हैं और कुछ उनका "गुड मॉर्निंग मैडम" से स्वागत करते हैं. यह काम काफी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि विशेष जरूरतों वाले ये बच्चे सीखने में अपेक्षतया ज्यादा वक्त लेते हैं. इसके लिए धैर्य और निरंतरता की जरूरत होती है. लेकिन, भुवना वासुदेवन जुनूनी हैं. वो अलग-अलग बच्चों को सिखाने के लिए 'Chalk and Talk' सहित कई अलग-अलग तरीकों का सहारा लेती हैं.
90 के दशक में उन्होंने कॉरपोरेट और केंद्रीय विद्यालय की नौकरी छोड़कर उन्होंने अपना खुद का ब्रिजेस लर्निंग विद्यालय खोला ताकि, स्पेशल नीड वाले बच्चों की जिंदगी में फर्क ला सकें. यहां तक कि उन्होंने एक बच्चे को पढ़ाया था, और उसे इतना फायदा हुआ था कि उस बच्चे के माता-पिता ने भुवना को स्कूल बनाने के लिए अपनी जगह दे दी. भुवना, 1985 के बाद से लगभग तीन दशकों से विशेष जरूरतों वाले लगभग 6,000 बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं.
वो कहती हैं, "मैं कभी अभिभावकों से शिकायत नहीं करती थी कि उनका बच्चा अच्छा नहीं कर पा रहा या फिर पढ़ाई नहीं कर रहा है. हमें पता है कि बच्चे को समस्या है और उसे अगले स्तर तक ले जाने के लिए हमें ही समाधान ढूंढना होगा. एक शिक्षक की यही भूमिका होती है."
12वीं कक्षा में हम एक ऑटिस्टिक बच्चे काशी प्रसाद से मिले, जो भुवना की कक्षा में काफी सक्रिय नजर आया. उसकी मां एस. विजयलक्ष्मी ने दुख के साथ बताया कि कैसे इसके पहले वाले स्कूल में कैसे उसे बाहर कर दिया गया था क्योंकि वो सामान्य अपेक्षा पर खरा नहीं उतर पाया था. अब भुवना की देखरेख में पिछले सात सालों से पढ़ाई कर रहा काशी कॉलेज जाने को तैयार है. काशी ने हायर सेकेंड्री में बिजनेस मैथमैटिक्स विषय लिया. वो मुकेश अंबानी की तरह बिजनेस टाइकून बनना चाहता है.
रिलायंस के बॉस जैसा बनने के लिए वो क्या प्लानिंग कर रहे हैं, सवाल पूछने पर काशी ने कहा, "मैं चरणबद्ध तरीके से काम करूंगा, प्लानिंग, ऑर्गनाइजिंग, डायरेक्टिंग, कंट्रोलिंग, मोटिवेटिंग, स्टाफिंग और कोऑर्डिनेटिंग." पिछले कुछ सालों में काशी की प्रगति पर उसकी मां कहती हैं, "जब वो बाहर जाते हैं तो वो सामान्य बच्चों जैसे ही दिखते हैं. सामान्य बच्चों से तुलना करें तो हम उनमें अच्छे बदलाव देखते हैं."
इतिहास में कभी फ्रेंच कॉलोनी रहे शांत पॉश रिहायशी इलाके में रहने वाले 22 साल के एआई मुबीन के अभिभावकों को कभी उम्मीद नहीं थी कि ADHD (attention deficit hyperactivity disorder) से जूझ रहा उनका बेटा 10वीं भी पास कर पाएगा. पहले वो जहां पढ़ता था, वहां वो न पढ़ना सीख पाया, न लिखना. लेकिन भुवना की 9 सालों की पढ़ाई ने सबकुछ बदल दिया. अब वो ऑल इंडिया एंट्रेस टेस्ट पास करके एक केंद्रीय विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहा है. वो काम के लिए विदेश जाना चाहता है. किस बात से बदलाव आया, सवाल पूछने पर मुबीन ने कहा कि "हर किसी को वो अलग तरीके से सिखाती हैं, इसलिए आज जो मैं हूं वो बन पाया."
भुवना के मॉडल को कुछ शब्दों में समेटते हुए मुबीन की मां नूरुल अराफात कहती हैं, "वो स्पेशल नीड वाले बच्चों को बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं. वो इनका बहुत अच्छा खयाल रखते हैं और इन्हें ऊपर उठाने का काम करते हैं."
यहां से थोड़ी दूर पर ही एक और परिवार है, जिसकी जिंदगी बेहतर हुई है. विग्नेश्वरन का परिवार बहुत सुखी है. एक दशक पहले वो डिस्लेक्सिया से बुरी तरह से जूझते थे, आत्म सम्मान नहीं था, लेकिन भुवना के स्कूल ने उनके लिए सबकुछ बदल दिया, ब्रिजेस से 10वीं खत्म करने के बाद उन्होंने डिप्लोमा हासिल किया. कुछ दिनों तक काम किया, नवोन्मेषी बने और अब वो अपना बी.टेक पूरा कर रहे हैं. उन्होंने अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के तहत रेस्टोरेंट्स के लिए बर्तन धुलने के लिए एक कॉन्टैक्टलेस मशीन भी बनाई है.
भुवना वासुदेवन उनके लिए क्या मायने रखती हैं, इसपर विग्नेश्वरन इमोशनल हो जाते हैं और कहते हैं, "मेरी भुवना मैम मेरी मां जैसी ही हैं. उन्होंने मुझमें आत्मविश्वास भरा. मेरा लॉन्ग टर्म प्लान उद्यमी बनने का है, चुनौतियों के हल ढूंढने का है."
पुडुचेरी सरकार के लिए बतौर इंजीनियर कार्यरत उनके पिता बी सुब्बारयन हाथ जोड़कर कहते हैं, "जब मैं तुलना करता हूं कि वो कक्षा 8वीं में कैसा था, और अब कैसा है तो मुझे भरोसा नहीं होता है. वो अब कंप्यूटर सॉफ्टवेयर वगैरह देखता है. यह सबकुछ भुवना मैम की वजह से हुआ है. हम भुवना मैडम को धन्यवाद देते हैं."
डॉक्टर भुवना के बहुत से छात्र कमजोर आय वर्ग से आते हैं, और वो उनसे कोई फीस नहीं लेती हैं. वो अपनी कक्षा का डिजीटलीकरण करने की योजना बना रही हैं, ताकि इन बच्चों का तकनीक से और बेहतर तरीके से परिचय हो सके. वो कहती हैं कि "हमें इसके लिए 15 लाख रुपयों की जरूरत है. यह इन बच्चों के लिए वरदान साबित होगा क्योंकि हम उनको मल्टी-डिमेंशनल और ऑडियो विजुअल तरीके से ज्यादा प्रभावी शिक्षा दे सकेंगे. कंप्यूटर होंगे तो हम बच्चों को डेटा एंट्री, होटल मैनेजमेंट संबंधी वोकेशनल मौकों के लिए तैयार कर पाएंगे."
जो उनकी मदद करना चाहते हैं वो उनके अकाउंट में फंड ट्रांसफर कर सकते हैं, डिटेल्स ये हैं-
Pondicherry Dyslexia Association
A/c no: 087109000198457
IFSC : CIUB0000087
City Union Bank, Pondicherry
बता दें कि इसपर कोई वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 15 से 17 प्रतिशत बच्चों को शिक्षा में विशेष ध्यान की जरूरत होती है. इनमें से बहुत से कमजोर आय वर्ग से आते हैं. ऊपर से, योग्य और समर्पित शिक्षकों की भी कमी होती है. इन चुनौतियों के बीच में डॉक्टर भुवना वासुदेवन इन बच्चों के भविष्य के लिए आशा की ज्योति बनी हुई हैं.