- गृह मंत्री अमित शाह दो दिवसीय छत्तीसगढ़ दौरे में बस्तर दशहरा उत्सव और मुरीया दरबार परंपरा में शामिल होंगे
- बस्तर की मुरिया दरबार परंपरा सदियों पुरानी है जिसमें आदिवासी अपनी समस्याएं राजा या प्रशासन तक पहुंचाते हाम
- बस्तर दशहरा में रावण वध की परंपरा नहीं है बल्कि देवी दंतेश्वरी की पूजा और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है
Amit Shah in Chhattisgarh: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शुक्रवार को दो दिन के छत्तीसगढ़ दौरे पर रवाना होंगे. शाह नक्सलप्रभावित बस्तर जिले का दौरा भी करेंगे, जहां 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है. शाह यहां सिरहासार में बस्तर दशहरा उत्सव की 600 साल पुरानी मुरीया दरबार परंपरा में भी शरीक होंगे. वो यहां प्राचीन दंतेश्वरी मंदिर भी जाएंगे. बस्तर में मुरीया दरबार की परंपरा 600 साल से भी ज्यादा पुरानी बताई जाती है. पहले राजा दरबार लगाकर अपनी प्रजा की समस्याएं सुना करते थे और यहां जनता को राहत के लिए बड़े ऐलान भी करते थे. अंग्रेजों के शासनकाल में इसमें बदलाव आया और सरकार और प्रशासनिक अफसर इसमें जनसुनवाई करने लगा. 1876 को डिप्टी कमिश्नर एम जार्ज ने आदिवासी मांझी समुदाय के बीच जाकर समस्याएं सुनीं.
बस्तर रियासत के राजा का मुरिया दरबार
कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले बस्तर रियासत के राजा ने यहां परगना कायम कर मूल आदिवासियों के बीच से एक मांझी (मुखिया) नियुक्त किया था. ये मुखिया अपने इलाके की हर समस्या को राजा तक पहुंचाते थे. साथ ही राजा के आदेश को जनता के बीच पहुंचाने का काम भी करते थे. मूरिया दरबार में राजा को 80 परगना के मांझी अपने क्षेत्र की समस्याओं की जानकारी देते हैं. मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी मांझी की बातें सुना करते थे. फिर ब्रिटिश काल में राजा के साथ प्रशासनिक अधिकारी ये जिम्मेदारी निभाने लगे. आजादी के बाद मुरिया दरबार का तौरतरीका बदल गया. 1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद राजा के साथ नेता और प्रशासनिक अधिकारी इसमें शामिल होने लगे.
सदियों से कायम परंपरा
बस्तर के महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव 1965 में मृत्यु तक दरबार की अध्यक्षता करते रहे. भंजदेव के निधन के बाद राज परिवार के सदस्यों ने मुरिया दरबार में जाना छोड़ दिया. फिर 50 सालों बाद फिर से राज परिवार के लोग इससे जुड़े. राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव 2015 से इस दरबार में शामिल हो रहे हैं. बस्तर के मुरिया दरबार में बस्तर डिवीजन के सांसद, विधायक और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहते हैं. ये नेता और अधिकारी ग्रामीणों से आवेदन लेते हैं. मांझी, चालकी और अन्य सदस्य अपनी समस्याएं रखते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी मुरिया दरबार में शामिल होते रहे हैं.
बस्तर दशहरा का इतिहास
छत्तीसगढ़ के बस्तर का दशहरा में 600 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा है. यहां रावण का न तो पुतला बनाया जाता है और न ही दहन होता है. दशहरे पर रैनी नाम की भव्य देवी मां की शोभायात्रा निकाली जाती है. इसमें एरंडवाल गांव के पैगड़ समाज के लोग दंतेश्वरी छत्र से फूल फेंकने की परंपरा निभाते हैं.
दंतेश्वरी मंदिर और परंपराएं
मान्यता है कि बस्तर दशहरा 14वीं सदी में 600 साल पहले चालुक्य वंश के शासक राजा पुरुषोत्तम देव के शासन में प्रारंभ हुआ था. ये देवी दंतेश्वरी से जुड़ा त्योहार है. रावण वध की बजाय देवी पूजा में हजारों की भीड़ जुटती है. बस्तर दशहरे की एक अनूठी परंपरा निशा जात्रा के दौरान आधी रात को भैंसों की बलि दी जाती है, काछिन गादी परंपरा में बस्तर की देवी काछिन देवी से अनुमति लेने का विधान है. स्थानीय समुदाय इन्हें इष्ट देवी मानते हैं.जबकि रथ यात्रा में स्थानीय देवी-देवताओं को साथ लेकर देवी दंतेश्वरी की रथ यात्रा निकाली जाती है.
गृह मंत्री का छत्तीसगढ़ दौरा
3 अक्टूबर
अमित शाह शुक्रवार रात रायपुर पहुंचेंगे.
रायपुर में होटल में विश्राम करेंगे.
4 अक्टूबर
11 बजे रायपुर से जगदलपुर रवाना होंगे
12.10 बजे जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर में दर्शन और पूजा अर्चना का कार्यक्रम
12.30 बजे शाह सिरहासार भवन में आयोजित समारोह में शामिल होंगे
1.30 बस्तर दशहरा कार्यक्रम में शामिल होंगे
3.15 बजे तक जगदलपुर में ही गृह मंत्री रहेंगे
नक्सलियों को सरेंडर का अल्टीमेटम
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में 100 से ज्यादा नक्सलियों ने गुरुवार को आत्मसमर्पण किया था. इनमें 50 नक्सलियों पर 1 करोड़ रुपये से ज्यादा का इनाम भी था. बीजापुर में पिछले 9 महीनों में 420 से ज्यादा नक्सली पकड़े गए हैं. जबकि 400 से ज्यादा ने समर्पण किया है. जबकि 137 नक्सली मुठभेड़ में ढेर हुए हैं. केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया करने का ऐलान किया है.