बांग्‍लादेश में दंगाइयों ने मिटा दिये निशान, आखिर इस तस्‍वीर से क्‍यों घबराता है पाकिस्‍तान

Bangladesh Violence: बांग्लादेश की मुक्ति के अवसर पर बनाई गई एक मूर्ति को "भारत विरोधी उपद्रवियों" ने नष्ट कर दिया है, जिसमें 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के क्षण को दर्शाया गया है.

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बांग्‍लादेश में पाक सेना पर लगे 'दाग' की निशानी को मिटा रहे दंगाई...
नई दिल्‍ली:

बांग्‍लादेश में कट्टरपंथी उन यादों को मिटाने में जुटे हैं, जो इस देश की आजादी के दिनों के जीते-जागते पल हैं. पाकिस्‍तान से अलग होकर बांग्‍लादेश का जन्‍म हुआ था, जिसमें भारत ने अहम भूमिका निभाई थी. इसके बाद बांग्‍लादेश ने एक '1971 के शहीद स्मारक परिसर' का निर्माण कराया था. कट्टरपंथियों ने बांग्‍लादेश में '1971 के शहीद स्मारक परिसर की मूर्तियों को भी तोड़ दिया है. यहां एक ऐसी मूर्ति भी है, जिसमें तत्‍कालीन पाकिस्‍तान सेना प्रमुख आत्‍मसमर्पण करते नजर आ रहे हैं. ये ऐसी प्रतिमा है, जिसे देखकर पाकिस्‍तान हमेशा घबराता रहा है. इन मूर्तियों को बांग्‍लादेश में कट्टरपंथी नष्‍ट कर रहे हैं.  

इस मूर्ति से घबराता रहा है पाकिस्‍तान

1971 के युद्ध ने न केवल बांग्लादेश को आज़ाद कराया था, बल्कि पाकिस्तान को भी करारा झटका दिया था. पाकिस्‍तान इस युद्ध में  1971 के शहीद स्मारक परिसर में एक मूर्ति में पाकिस्तानी सेना के मेजर-जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी द्वारा भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को 'समर्पण पत्र' पर हस्ताक्षर करते हुए दर्शाया गया है. मेजर-जनरल नियाज़ी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ भारत के पूर्वी कमान के तत्कालीन ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था. पाकिस्‍तान के इतिहास में ये किसी बदनुमा दाग से कम नहीं है. इसलिए पाकिस्‍तान इस मूर्ति को देख घबराता रहा है. इन यादों को बांग्‍लादेश सरकार ने  1971 के शहीद स्मारक परिसर में संजो कर रखा था. लेकिन अब कट्टरपंथियों ने इन मूर्तियों को निशाना बनाया है.  

भारत-पाकिस्‍तान 1971 युद्ध


1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को तीसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध के रूप में भी जाना जाता है. ये भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य टकराव था जो 3 दिसंबर 1971 से पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समर्थन में भारत की हस्तक्षेप के साथ शुरू हुआ. ये 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ. यह युद्ध दक्षिण एशिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमला कर युद्ध का आगाज किया था. भारतीय सेना ने पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को घेर लिया और धीरे-धीरे उसे पीछे धकेलना शुरू कर दिया. पश्चिमी मोर्चे पर भी भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच भिड़ंत हुई. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. 93,000 सैनिकों के साथ भारत के पूर्वी कमान के तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. तब पाकिस्‍तान की ओर से मेजर-जनरल नियाज़ी ने समर्पण पत्र पर साइन किये थे. पाकिस्‍तानी सेना इस पल को शायद ही कभी भूल पाए.  

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कौन कर रहा पाकिस्‍तान के सरेंडर के निशान मिटाने की कोशिश

बांग्‍लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन के पीछे 'जमात-ए-इस्‍लामी' पार्टी का सबसे बड़ा हाथ है. ये अंतरिम सरकार में उसकी हिस्‍सेदारी के बाद साबित भी हो गया है. जमात-ए-इस्‍लामी का संबंध पाकिस्‍तान से भी रहे हैं. जमात-ए-इस्‍लामी ने बांग्‍लादेश की आजादी के समय भी पाकिस्‍तान सेना का साथ दिया था. अब यही  जमात-ए-इस्‍लामी के कार्यकर्ता हैं, जो पाकिस्‍तान के सरेंडर की निशानी को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ रिपोर्ट का कहना है कि बांग्‍लादेश को अस्थिर करने की कोशिश के पीछे पाकिस्‍तान का भी हाथ है. 

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शेख हसीना का तख्‍तापलट, कट्टरपंथियों के हौसले बुलंद

       
बांग्‍लादेश में शेख हसीना के सत्‍ता से बेदखल होने के बाद कई स्थानों पर भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिरों और हिंदू घरों पर हमले हुए. हिंसा प्रभावित देश में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को सरकार गिरने के बाद से 52 जिलों में हमलों की 205 से अधिक घटनाओं का सामना करना पड़ा है. छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह के कारण पूर्व प्रधान मंत्री शेख हसीना और कई अन्य शीर्ष अधिकारियों को इस्तीफा देना पड़ा था. एक महीने से अधिक समय तक चले घातक विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 450 लोग मारे गए, जिसके कारण 5 अगस्त को हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी.

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