पाकिस्तान के नरसंहार पर आंख मूंदे रहा अमेरिका… बांग्लादेश मुक्ति संग्राम पर बनी यह डॉक्यूमेंट्री आज के लिए सीख

फिल्म निर्माता रमेश शर्मा अपनी डॉक्यूमेंट्री लेकर आए हैं जिसका नाम क्रॉनिकल्स ऑफ द फॉरगॉटन जेनोसाइड द किसिंजर डॉक्ट्रिन है. इस डॉक्यूमेंट्री में AI की मदद से आज से 54 साल पहले की दौर दिखाया गया है, रक्तपात में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाया गया है.

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  • रमेश शर्मा डॉक्यूमेंट्री लेकर आए हैं जिसका नाम 'क्रॉनिकल्स ऑफ द फॉरगॉटन जेनोसाइड द किसिंजर डॉक्ट्रिन' है.
  • इसमें दिखाया गया है कि अमेरिका ने नरसंहार के बावजूद पाकिस्तान का समर्थन किया और हथियारों की आपूर्ति जारी रखी
  • डॉक्यूमेंट्री में अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री किसिंजर की मिलीभगत को उजागर किया गया है
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साल 1971. बांग्लादेश के इतिहास का सबसे अशांत और खूनी दौर. बांग्लादेश में पाकिस्तान नरसंहार कर रहा था, जातीय सफाया कर रहा था. लाखों शरणार्थी जान बचाकर भारत भाग रहे थे… और फिर शुरू हुआ मुक्ति संग्राम, यानी बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई जिसे भारत की सेना ने सफल बनाया. अब फिल्म निर्माता रमेश शर्मा अपनी डॉक्यूमेंट्री लेकर आए हैं जिसका नाम 'क्रॉनिकल्स ऑफ द फॉरगॉटन जेनोसाइड द किसिंजर डॉक्ट्रिन' है. इस डॉक्यूमेंट्री में AI की मदद से आज से 54 साल पहले की दौर दिखाया गया है, बांग्लादेश में हुए रक्तपात में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाया गया है. यहां तक कि यह डॉक्यूमेंट्री 1975 में बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री शेख मुजीबुर रहमान की हत्या का भी पता लगाती है.

बांग्लादेश में तब क्या हुआ था?

बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम के पहले और उसके दरम्यान जो कुछ हुआ उसे 20वीं सदी के सबसे क्रूर नरसंहारों में से एक माना जाता है. आधिकारिक रूप से बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम नौ महीने चला जिसमें लगभग 30 लाख नागरिकों की हत्या कर दी गई थी, सैकड़ों हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था, और 10 करोड़ शरणार्थियों को भारत में खदेड़ दिया गया था. लेकिन उनकी पीड़ा शीत युद्ध की भू-राजनीति के नीचे दब गई थी. अमेरिका को सिर्फ अपने वर्चस्व से मतलब था.

मेजर जनरल टिक्का खान, जिन्हें पूर्वी पाकिस्तान का कसाई भी कहा जाता है, ने स्वतंत्रता आंदोलन के सशस्त्र दमन का आदेश दिया था. पाकिस्तान ने भारत के एयरफिल्ड पर हमला कर दिया जिसके बाद इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.

अमेरिका ने नरसंहार को होने दिया

इन सबके बीच अमेरिका ने पाकिस्तान का पक्ष लिया, जबकि उसे पता था कि पाकिस्तान लोकतंत्र और मानवाधिकारों का गला घोट रहा है. खुद ढाका में अमेरिका के वाणिज्य दूतावास कार्यालय में तैनात एक युवा अमेरिकी राजनयिक- आर्चर ब्लड ने उसे सच्चाई दिखाई थी. व्हाइट हाउस को उन्होंने टेलीग्राम लिखकर पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति की आलोचना की थी.

व्हाइट हाउस के टेल, आधिकारिक दस्तावेज, जीवित बचे लोगों की आपबीती, राजनयिकों और खोजी पत्रकारों की प्रत्यक्ष गवाही के आधार पर, यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म अमेरिका के तब के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की मिलीभगत को उजागर करती है. कैसे उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिबंध की अवहेलना करते हुए पाकिस्तान के याह्या खान के सैन्य शासन को हथियार देना जारी रखा, अपने खुद के राजनयिकों के इनपुट की अनदेखी करते हुए जिन्होंने "चयनात्मक नरसंहार" की चेतावनी दी थी.

अमेरिकी पत्रकार गैरी जे बैस ने अपनी किताब - 'द ब्लड टेलीग्राम निक्सन, किसिंजर, एंड ए फॉरगॉटन जेनोसाइड' में सबसे विस्तृत विवरण लिखा है और बताया है कि कैसे अमेरिकी राजनयिक ने वाशिंगटन को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की प्रत्यक्ष जानकारी अमेरिका के साथ शेयर की, विशेष रूप से नागरिकों के खिलाफ चाफी टैंक और एफ -86 सेबर जेट जैसे अमेरिकी हथियारों का उपयोग करने से जुड़ा. लेकिन इनके बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने स्थिति की गंभीरता को नजरअंदाज करना चुना.

भारत के खिलाफ अमेरिका ने भेजा था न्यूक्लियर जहाज 

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर भारत को सहयोगी के रूप में नहीं देखते थे. अमेरिका ने पूर्व में भारतीय नौसेना को धमकाने और सत्तावादी पाकिस्तानी शासन का समर्थन करने के लिए यूएसएस एंटरप्राइज (न्यूक्लियर हथियार वाला एयरक्राफ्ट कैरियर जहाज) को हिंद महासागर में भेजा था. विमानवाहक पोत HMS ईगल के नेतृत्व में यूके की नौसेना ने भी आगे बढ़ना शुरू कर दिया. भारत अपने पूर्वी तटों की ओर एक समन्वित खतरे का सामना कर रहा था. लेकिन फिर सोवियत रूस से भारत की मदद की. 

आखिर में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाई. 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी और बांग्लादेश का जन्म हुआ. युद्ध मात्र 14 दिन में ही समाप्त हो गया.

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इस डॉक्यूमेंट्री की टाइमिंग अहम है

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आजकल जिस तरह आतंकवाद को पालने पोसने वाले पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढ़ा रहे हैं, इस डॉक्यूमेंट्री का आना 1971 वाले अमेरिका की याद दिलाता है. 1971 में खुद को मानवाधिकार का अगुवा बताने वाले अमेरिका लोकतंत्र के मोर्चे पर पूरी तरह से फेल हुआ था, बांग्लादेश में दमन करने वाले पाकिस्तान की सरकार और वहां की आर्मी का साथ दिया था. आज जब भारत के पहलगाम में पाकिस्तान की जमीन से आतंकी हमला होता है, भारत उसका माकूल जवाब देता है तो ट्रंप उसी पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई देते हैं, उसके आर्मी चीफ को बार-बार मिलते हैं.
 

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