नए साल पर बनारस के घाटों पर होगी रौनक, लेकिन नाविकों की रोजी-रोटी पर पड़ेगा बड़ा असर

बनारस के घाटों पर इस बार विदेशी तो नहीं पर देश के ही पर्यटक नए साल के सूर्य के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं. सात समन्दर पार से आये पक्षियों का कोलाहल और घाट की हलचल इसमें और रौनक भर रही है, लेकिन प्रशासन का कुछ एहतियात इस जश्न में लोगों के अंदर थोड़ी मायूसी ला रहा हैं.

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बनारस:

बनारस के घाटों पर इस बार विदेशी तो नहीं पर देश के ही पर्यटक नए साल के सूर्य के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं. सात समन्दर पार से आये पक्षियों का कोलाहल और घाट की हलचल इसमें और रौनक भर रही है, लेकिन प्रशासन का कुछ एहतियात इस जश्न में लोगों के अंदर थोड़ी मायूसी ला रहा हैं. ख़ासकर घाट से अपनी जीविका चलने वाले लोगों में, क्योंकि अगर शाम 4 बजे के बाद गंगा के उस पार नौका से लोग नहीं जा पायेंगे तो इनकी रोज़ी-रोटी पर बड़ा असर पड़ेगा लेकिन फिर भी नए साल का स्वागत गर्मजोशी से कर रहे हैं.

बनारस के घाटों पर उतरती सुबह की मुलायम धूप, सात समदर पार से आए पक्षियों की अठखेलियां और गंगा की लहरों पर बहती नौका पर सवार लोग इस बार 2020 की तमाम दुश्वारियों को भुलाकर गर्मजोशी से उसका स्वागत करना चाहते हैं. लेकिन इसमें प्रशासन के एक नियम की शाम 4 बजे के बाद गंगा के उस पार नौका से कोई नहीं जायेगा. इस उत्साह को ठंडा कर दिया है खासकर घाट के नाविकों का.

नाविक बाबू साहनी ने कहा, ''जब से कोरोना काल आया है तब से सबसे ज्यादा प्रभावित ही रहे हैं. वैसे भी हम लोगों को कोई कहीं सहायता नहीं मिली थी अब कुछ धीरे-धीरे लोकल लोगों से कमाकर जीविकोपार्जन हो जाता है. अब यह नया साल आ रहा है तो लोकल लोग आते हैं और उस पार जाकर के मौज मस्ती करते हैं लेकिन जिस तरह डीएम साहब ने आदेश दे दिया है वह भी खत्म हो चुका है. हम लोगों का रोजी-रोटी खत्म हो जाएगी. जाड़े का दिन है, शाम 4 बजे अगर नाव बंद हो जाएगी तो क्या लाभ होगा.''

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दरअसल, बनारस के घाटों में लोग गंगा में विचरण के साथ साथ गंगा के उस पार जाकर बालू के रेत पर तरह तरह के इवेंट कर जश्न मनाते हैं , यही वजह है कि जाड़े के छोटे होते दिन में 4 बजे का ये नियम उन्हें ठीक नहीं लग रहा है. दशकों से बनारस में पत्रकारिता करने वाले भी इसकी दुश्वारियां बता रहे हैं.

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वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण बहादुर रावत का कहना है कि साढ़े चार बजे के बाद ही लोग खाली होते हैं और परिवार के साथ जाते है घूमने और आज साल का अंतिम दिन वो ट्वेंटी ट्वेंटी का गलत है. मेरे हिसाब से ये सात बजे तक होता तो और ज़्यादा बेहतर होता.

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साल 2020 में बनारस के घाटों से अपनी जीविका चलने वाले नाविक, तीर्थ पुरोहित, फूल माला बेचने वाले जैसे सैकड़ों लोगों ने बड़ी दुश्वारियां झेली, ये दुश्वारियां आज कुछ कम जरूर हुई हैं, लेकिन ख़त्म नहीं. बावजूद इसके इनके हौसले में कोई कमी नहीं और ये गर्मजोशी से नए साल का स्वागत कर रहे हैं.

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हर हर महादेव और गंगा मइया के जयकारे का भरोसा ऐसा है कि बनारस के रहने वाले लोग बड़ी सी बड़ी मुसीबतों का मुकाबला हंसते-हंसते कर लेते हैं. यही वजह है कि 2020 की तमाम दुश्वारियों को झेल कर नए साल का तमाम पाबन्दियों के बाद भी जोरदारी से स्वागत कर रहे हैं.

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