दिल्ली की सरहदों पर लगभग 1 साल तक किसान आंदोलन चला. इस किसान आंदोलन से दो पॉलिटिकल पार्टी निकलीं. पहली, बलवीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में संयुक्त समाज मोर्चा. इस पार्टी के रजिस्ट्रेशन और चुनाव चिन्ह के बारे में अभी जानकारी नहीं है. दूसरी, गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में संयुक्त संघर्ष पार्टी. इस पार्टी का रजिस्ट्रेशन हो गया है और चुनाव चिन्ह भी मिल गया है. इस बीच अब पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए इन दोनों पार्टियों का गठबंधन हो गया है और समझौते के मुताबिक गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व वाली संयुक्त संघर्ष पार्टी को 10 सीट मिली हैं. इन 10 सीटों में से 9 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. इस घोषणा के बाद एनडीटीवी ने संयुक्त संघर्ष पार्टी के मुखिया गुरनाम सिंह चढ़ूनी से खास बातचीत की.
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गुरनाम सिंह ने बताया कि हमारे हिस्से में 10 सीट आई हैं और कप-प्लेट हमें चुनाव चिन्ह मिला है. 9 सीटें हमने आज घोषित कर दी हैं और एक सीट हम सर्वे कराने के बाद घोषित करेंगे. हमारे चुनाव लड़ने से पता नहीं किसको फायदा होगा, किसको नुकसान होगा. हम किसी के फायदे या नुकसान के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. हम किसान, मजदूर और आम जनता के फायदे के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. जो परंपरागत पार्टियां हैं, उन्होंने आज तक देश को सिर्फ लूटने का काम किया है और नेताओं ने बस अपने घर भरने का काम किया है, ना कि जनता के लिए काम किया है. वोट वालों का राज होना चाहिए नोट वालों का राज नहीं होना चाहिए.
ये आंदोलन किसानों का नहीं, बल्कि पॉलिटिकल पार्टियां इसके पीछे हैं पर चढ़ूनी ने कहा कि कहने को तो कोई कुछ भी कह सकता है. लोगों की जुबान नहीं पकड़ी जा सकती. हमने 2012 में हरियाणा में एक आंदोलन किया था तो उस समय बीजेपी के विधायक हमारे धरने में आकर बैठते थे. विपक्षी तो समर्थन देते ही हैं. 750 लोगों के शहीद होने के बाद उन्होंने बात मानी. 1 साल और 13 दिन बैठाने के बाद उन्होंने बात मानी और बात मानने के बाद भारत के कृषि मंत्री फिर बयान देते हैं कि कुछ लोगों के दबाव में हम एक कदम पीछे हटे हैं, फिर आगे बढ़ेंगे. तो पहली बात तो यह है कि अगर वह आगे बढ़ेंगे तो हम भी आगे बढ़ेंगे, अब हम बॉर्डर पर नहीं बैठेंगे सीधे जाकर संसद को घेरेंगे. इतना बड़ा आंदोलन होने के बाद भी जनता की भावना की कदर नहीं कर रहे हैं तो फिर इसका इलाज यही है कि इनको सत्ता से उखाड़ कर बाहर फेंको.
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फंडिग के सवाल पर उन्होंने कहा कि जिसका नुकसान होगा वह चिल्लाएगा और फंडिंग तो क्या एक रूटीन का मैटर है कि पैसे लेकर टिकट दे दिया या यहां से पैसा आ गया वहां से पैसा आ गया. यह आरोप तो कोई भी लगाता है. जो आरोप लगाने वाले हैं, उनसे अगर हम पूछ लें कि उनकी फंडिंग कहां से आई तो उनके पास क्या जवाब है. असली फंडिंग तो वह लोग ले रहे हैं. चुनाव के बाद तवज्जो मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी तक उन्होंने हमको क्या तवज्जो दे दी? 11 मीटिंग मैं उन्होंने कुछ भी फैसला नहीं लिया. 1 साल 13 दिन उन्होंने बैठाकर रखा, क्या तवज्जो दे दी? उन्होंने हमको कोई तवज्जो नहीं दी. हमने जोर जबरदस्ती से मनवाया है और आगे भी अगर कोई नहीं मानेगा तो हम इसी तरीके से मनवाएंगे.