समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का एक ट्वीट के लिए आभार जताने के दो दिन बाद बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को कांग्रेस पर हमला बोला. उन्होंने इस हमले के लिए 1995 में लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया. उन्होंने कहा है कि जब सपा ने उन पर हमला करवाया था तो कांग्रेस ने चुप्पी साध ली थी. उन्होंने कांग्रेस पर उस समय अपना दायित्व न निभा पाने का आरोप लगाया है. उन्होंने पूछा है जातीय जनगणना की वकालत करने वाली कांग्रेस क्या जनगणना के बाद एससी-एसटी और ओबीसी के साथ न्याय कर पाएगी.
मायावती ने कांग्रेस पर क्या आरोप लगाए हैं
कांग्रेस पर हमला करने के लिए मायावती ने सोमवार को सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट लिखा. उन्होंने लिखा है,'' सपा जिसने 2 जून 1995 में बीएसपी द्वारा समर्थन वापसी पर मुझ पर जानलेवा हमला कराया था, तो इस पर कांग्रेस कभी क्यों नहीं बोलती है? जबकि उस दौरान केंद्र में रही कांग्रेसी सरकार ने भी समय से अपना दायित्व नहीं निभाया था.तभी फिर मान्यवर कांशीराम जी को अपनी बीमारी की गंभीर हालत में भी हॉस्पिटल छोड़कर रात को इनके माननीय गृह मंत्री को भी हड़काना पड़ा था. विपक्ष ने भी संसद को घेरा, तब जाकर यह कांग्रेस सरकार हरकत में आई थी.''
बसपा प्रमुख ने लिखा है, ''क्योंकि उस समय केंद्र की कांग्रेसी सरकार की भी नीयत खराब हो चुकी थी, जो कुछ भी अनहोनी के बाद यहां यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाकर,पर्दे के पीछे से अपनी सरकार चलाना चाहती थी,जिनका यह षडयंत्र बीएसपी ने फेल कर दिया था.''
उन्होंने लिखा है, ''उस समय सपा के आपराधिक तत्वों से बीजेपी सहित समूचे विपक्ष ने मानवता और इंसानियत के नाते मुझे बचाने में जो अपना दायित्व निभाया है तो इसकी कांग्रेस को बीच-बीच में तकलीफ क्यों होती रहती है, लोग सचेत रहें.''
मायावती ने लिखा है,''बीएसपी सालों से जातीय जनगणना के लिए पहले केंद्र में कांग्रेस पर और अब बीजेपी पर भी अपना पूरा दबाव बना रही है,जिसकी पार्टी वर्षों से इसकी पक्षधर रही है और अभी भी है. लेकिन जातीय जनगणना के बाद, क्या कांग्रेस एससी-एसटी और ओबीसी का वाजिब हक दिला पाएगी? जो एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण और क्रीमीलेयर को लेकर अभी भी चुप्पी साधे हुए है,जवाब दें.''
कांग्रेस पर हमला क्यों कर रही हैं मायावती
बसपा प्रमुख पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय हैं. वो सपा-कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी पर हमले कोई भी मौका चूकती नहीं हैं. दरअसल वो कांग्रेस और सपा की कोशिशें से परेशान हैं. सपा प्रमुख ने पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक वोटों को ध्यान में रखकर पीडीए का फार्मूला दिया है. उनकी नजर बसपा और बीजेपी से दूर हो रहे दलित और पिछड़े वर्ग के वोटों पर है.वहीं कांग्रेस की कोशिशें भी इसी दिशा में चल रही हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी हर दूसरे दिन दलितों और पिछड़ों से जुड़े मुद्दे उठाते रहते हैं. वो जातीय जनगणना की भी लगातार वकालत कर रहे हैं.वो लगातार लोकतंत्र और संविधान को खतरे में बता रहे हैं.दरअसल कांग्रेस इसके जरिए अपना खोया हुआ जनाधार वापस लेने की कोशिश कर रही है.इन मुद्दों का असर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में मिली सीटों में नजर आ रहा है. इसलिए राहुल लगातार आरक्षण, संविधान और जातीय जनगणना की वकालत कर रहे हैं.
बसपा ने अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव लड़ने की घोषणा की है. इसी वजह से मायावती काफी सक्रिय हैं. चुनाव-दर-चुनाव वोट घटने से मायावती परेशान हैं. वो उसे समटने और अपने पाले में लाने में जुटी हुई हैं. लोकसभा चुनाव में फिर शून्य हुई बसपा अब सधा हुआ कदम उठा रही है. वह अब न तो बीजेपी के साथ नजर आना चाहती है और न ही इंडिया गठबंधन के साथ. इसलिए मायावती सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय हैं और बीजेपी और इंडिया गठबंधन पर हमले का कोई भी मौका नहीं चूक रही हैं.
कब और कहां हुआ था गेस्ट हाउस कांड
यह बात 2 जून 1995 की है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार चल रही थी. सपा से गठबंधन तोड़ने के लिए बसपा लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बैठक कर रही थी.इस दौरान शाम करीब चार बजे एक भीड़ ने वहां नारेबाजी और बसपा नेताओ के साथ मारपीट शुरू कर दी. भीड़ ने बसपा बसपा विधायकों को अगवा करने की कोशिश की.कहा यह भी जाता है कि मायावती के साथ भी बदतमीजी की गई थी.उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर अपने आप को बचाया था.इस भीड़ ने दलितों के खिलाफ अपमानजनक नारे भी लगाए थे. बसपा का आरोप है कि मारपीट करने वालों में सपा के नेता और विधायक शामिल थे. यह कांड देश में गेस्ट हाउस कांड के रूप में मशहूर हुआ. इसे उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक काला अध्याय माना जाता है.
सपा-बसपा की दोश्ती और दुश्मनी
इसके बाद सपा और बसपा रेल की पटरियों की तरह हो गए. दोनों ने 2019 से पहले तक कोई समझौता नहीं किया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा ने हाथ मिलाया. यह तब हुआ जब सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथ में आई. इसके लिए अखिलेश बसपा प्रमुख मायावती के पास गए थे. इस घटना के करीब ढाई दशक बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के लिए मैनपुरी में वोट मांगा था. ये सभी नेता मैनपुरी में एक रैली में शामिल हुए थे. खास बात यह थी कि रैली में सबसे ऊंची कुर्सी पर मायावती ही बैठी थीं. कहा यह भी जाता है कि अखिलेश यादव के कहने पर मायावती ने 26 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट से गेस्ट हाउस कांड से जुड़ा मामला वापस ले लिया था. सपा बसपा का यह गठबंधन मायावती के लिए ठीक रहा. उनकी लोकसभा में सीटों की संख्या शून्य से 10 तक पहुंच गई. लेकिन सपा की वहीं की वहीं रही. इस लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से अपना गठबंधन तोड़ लिया.
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