किस मुल्क में पैदा हुआ बाबर जिसके नाम पर बाबरी मस्जिद, कैसे 1400 किमी दूर दिल्ली पहुंचा, तैमूर लंग और चंगेज खान से रिश्ता

Babri Masjid: दावा किया जाता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर की हुकूमत के दौरान उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर करवाया था. बंगाल के मुर्शिदाबाद में 6 दिसंबर को 'बाबरी मस्जिद' की नींव रखे जाने के साथ ये मुद्दा फिर गरमा गया है.

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Babri Masjid Babur
नई दिल्ली:

Babri Masjid in Murshidabad: बाबरी मस्जिद को लेकर आज 6 दिसंबर फिर सुर्खियों में है. टीएमसी के निलंबित नेता हुमायूं कबीर ने बंगाल के मुर्शिदाबाद के बेलडांगा गांव में शनिवार को हजारों समर्थकों की भीड़ के बीच वहां बाबरी मस्जिद की नींव रखी. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के 33 साल बाद इस घटना को लेकर सियासी घमासान मचा है. लेकिन क्या आपको पता है कि बाबरी मस्जिद जिस मुगल बादशाह बाबर के नाम पर मीर बाकी ने 1528 ईस्वी में रखी थी, वो किस मुल्क का रहने वाला था. बाबर की 11 बीवियां और 20 संताने थीं. उसी में एक बेटा हुमायूं था, जिसने उसकी जगह मुगल सल्तनत संभाली. उसके राज में अयोध्या समेत कई जगहों पर मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाने का दावा किया जाता है.

बाबर का जन्म उज्बेकिस्तान में हुआ

बाबर आज के उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) का रहने वाला था. बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को अंदिजान (Andijan) शहर में हुआ था. यह मशहूर फरजाना घाटी (Fergana Valley) का इलाका है. उसके पिता उमर शेख मिर्जा फरजाना के शासक थे. बाबर का रिश्ता तैमूर (पिता के वंशज) और चंगेज खान (माता के वंशज) दोनों खानदानों से था.भारत में बाबर को एक विदेशी हमलावर और मुगल साम्राज्य के संस्थापक के तौर पर देखा जाता है. लेकिन उज्बेकिस्तान में बाबर के बारे में नजरिया एकदम अलग है. उसे वहां एक नायक के तौर पर देखा जाता है.

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Babri Masjid Humayun Kabir

मुगल बादशाह की आत्मकथा बाबरनामा

उज्बेकिस्तान के बाशिंदे बाबर को एक योद्धा से ज्यादा एक विद्वान और कवि के तौर पर याद करते हैं. बाबर की आत्मकथा बाबरनामा को उज्बेकिस्तान साहित्य (चगताई तुर्की भाषा) की बेहतरीन किताबों में से एक माना जाता है. उज्बेकिस्तान के स्कूल-कॉलेजों में बाबर की शायरी और साहित्य को पढ़ाया जाता है. तैमूर (Timur) के बाद बाबर को उज्बेकिस्तान के बड़ी ऐतिहासिक शख्सियों में गिना जाता है. हिन्दुस्तान आने के बाद भी बाबर उज्बेकिस्तान को नहीं भूला और वहां अपनी किताब में उसका कई बार जिक्र किया.

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बाबर पार्क और संग्रहालय

उज्बेकिस्तान के अंदिजान में बाबर के नाम पर बड़े पार्क (Babur Park) और स्मारक हैं. उसकी वहां बड़ी-बड़ी मूर्तियां (Statues) और संग्रहालय (Museums) भी है. हर साल 14 फरवरी (बाबर का जन्म) उज्बेकिस्तान में कई कार्यक्रम होते हैं.

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मुर्शिदाबाद में Babri Masjid के लिए ईंट ले जाते मुस्लिम युवक

तैमूर और चंगेज खां का वंशज था बाबर

पिता की मौत से बाबर को कम उम्र में ही राजकाज संभालना पड़ा. फरजाना उसके साथ से निकल गया. बाबर कुछ वक्त दुर्गम इलाकों में धूल फांकता रहा लेकिन उसने सैनिकों को फिर एकजुट किया और 1502 में काबुल जीत लिया. फिर वफादार सिपहसालारों की मदद से पैतृक इलाका फरजाना और समरकंद भी वापस छीन लिया. लेकिन मध्य एशिया में खूंखार कबीलाई शासकों के बीच बाबर साम्राज्य फैला नहीं पाया. उस वक्त दिल्ली में सल्तनत वंश के शासकों की हालत डांवाडोल हो रही थी. लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी, अफगान और राजपूतों के बीच भी एकजुटता नहीं थी. इब्राहिम लोदी से ईर्ष्या रखने वाले उसके सिपहसालार आलम खान ने बाबर को हिन्दुस्तान आने का न्योता दिया और उसने दिल्ली का रुख किया.

पानीपत का युद्ध

बाबर के भारत में कामयाबी में पानीपत युद्ध गेम चेंजर रहा. आलम खान और दौलत खान ने बाबर को पानीपत युद्ध में साथ देने का वादा किया. कुछ राजपूत राजाओं और कुछ अफगानी शासकों ने भी बाबर की हिमायत की. पानीपत का युद्ध 1526 में हुआ और दोगुनी फौज वाला इब्राहिम लोदी बाबर की कुशल रणनीति से दांव खा गया. उसने युद्ध में खुद की जान ले ली.

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उज्बेकिस्तान में बना बाबर का म्यूजियम

खानवा की जंग

राजपूत राजा संग्राम सिंह का मानना था कि बाबर दौलत के साथ काबुल वापस लौट जाएगा. लेकिन बाबर ने मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह को चुनौती दी और मार्च 1927 में खानवा युद्ध में हरा दिया. बाबर के पास छोटी तोपें और आधुनिक हथियार थे. बाबर का लालच और बढ़ने लगा और उसने अफगानी तब बिहार और बंगाल के कई इलाकों में काबिज अफगानी शासकों को भी घागरा के युद्ध में भी हरा दिया.

बाबर की मौत और हुमायूं का शासन

बाबर ने पंजाब, दिल्ली, बिहार और दूसरे इलाकों में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया. बाबर के बेटे हुमायूं को 22 साल की उम्र में भीषण बीमारी ने घेर लिया. हकीमों ने भी जवाब दे दिया तो बाबर ने दुआ मांगी कि अल्लाह उसकी जान ले ले और बेटे को बचा ले. थोड़े वक्त में बाबर बीमार पड़ता गया और हुमांयू ठीक होता चला गया. बाबर की दिली ख्वाहिश के मुताबिक उसे काबुल में दफनाया गया. उसकी मौत के बाद हुमायूं मुगल बादशाह बना.

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