सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने बुधवार को 2016 में हुए नोटबंदी (Demonetization) के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की. अदालत (Supreme Court) ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर ‘लक्ष्मण रेखा' से वाकिफ है, लेकिन 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल अवश्य करेगा, ताकि यह पता चल सके कि मामला केवल ‘अकादमिक' कवायद तो नहीं था. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की एक संविधान पीठ 58 याचिकाओं पर विचार कर रही है, जिनमें केंद्र सरकार द्वारा 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती दी गई हैं.
नोटबंदी की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से सवाल पूछा है. शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें रेफर किए गए हैं उसका वह जवाब दे. सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का परीक्षण करेगा. मामले की अगली सुनवाई 9 नवंबर को होगी.
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी पर एक्ट को उचित तरीके से चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक रहेगा. विमुद्रीकरण अधिनियम 1978 में कुछ उच्च मूल्य के नोटों के विमुद्रीकरण (Demonetization) के लिए जनहित में प्रदान करने के लिए पारित किया गया था, ताकि अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक पैसों के अवैध ट्रांसफर की जांच की जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह घोषित करने के लिए कि क्या यह एकेडेमिक है या निष्फल है, उसे मामले की जांच करने की जरूरत है क्योंकि दोनों पक्ष सहमत नहीं हैं. कोर्ट ने कहा, ''मुद्दे का जवाब देने के लिए, हमें सुनवाई करनी होगी.'' कोर्ट की बेंच ने कहा, "हम हमेशा जानते हैं कि लक्ष्मण रेखा कहां है, लेकिन जिस तरह से इसे किया गया था, उसकी जांच की जानी चाहिए. हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा.''
उधर, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शैक्षणिक मुद्दों पर अदालत का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि वह 'संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी' जैसे शब्दों से हैरान हैं, क्योंकि पिछली बेंच ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान बेंच के समक्ष रखा जाना चाहिए.
एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है. उन्होंने कहा कि इस तरह की नोटबंदी के लिए संसद के एक अलग एक्ट की आवश्यकता है. बता दें कि 16 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटबंदी की वैधता वाली याचिका को पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया था.