औरंगजेब ने दफन होने के लिए औरंगाबाद को ही क्यों चुना था, क्यों हो रही है मकबरा हटाने की मांग

समाजवादी पार्टी के विधायक अबु आजमी के बयान के बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमाई हुई है. उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को महान शासक बता दिया था. बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था. अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने औरंगजेब के मकबरे को ही कानून के जरिए हटाने की मांग की है.

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नई दिल्ली:

मुगल शासक औरंगजेब के नाम पर देश में सियासत गर्म हैं. इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि छत्रपति संभाजीनगर में स्थित मुगल बादशाह औरंगजेब का मकबरा हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि इस काम को कानून के दायरे में करना चाहिए. उन्होंने बताया कि कांग्रेस की पिछली सरकार ने औरंगजेब के मकबरे को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सौंप दिया था. छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और सतारा से बीजेपी सांसद उदयनराजे भोसले ने भी औरंगजेब के मकबरे को हटाने की मांग की थी.ऐसा पहली बार नहीं है कि औरंगजेब की मकबरा हटाए जाने की मांग की जा रही है या उस पर सियासत की जा रही है. आइए जानते हैं कि कहां है औरंगजेब का मकबरा और कितना पुराना है उससे जुड़ा विवाद. 

औरंगजेब का मकबरा कहां बना है

औरंगजेब का पूरा नाम अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर था. उनका पैदाइश 1618 में हुई थी. उनका निधन 87 साल की उम्र में 1707 में अहमदनगर में हुआ था. अपने जीवन के करीब 37 साल औरंगजेब ने औरंगबाद में बिताए थे. यह भी उनके औरंगाबाद प्रेम का एक कारण था.उन्होंने औरंगाबाद में ही अपनी पत्नी की कब्र बीबी का मकबरा बनवाया था. बीबी के मकबरे को दक्कन का ताज भी कहा जाता है. उनको औरंगाबाद से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खुल्दाबाद में दफनाया गया था.औरंगजेब अपने खर्चे के लिए टोपियां सिलते थे. उन्होंने वसीयत में लिखा था कि उन्होंने जितना पैसा अपनी मेहनत से कमाया है, उसी पैसे मकबरा बनाया जाए और उसमें सादगी का ख्याल रखा जाए. औरंगजेब के बेटे आजम शाह ने खुल्दाबाद में उनके मकबरे का निर्माण कराया था.

इस साल फरवरी में आई फिल्म 'छावा' के बाद औरंगजेब को लेकर विवाद और बढ गया है.

औरंगजेब को खुल्दाबाद में दफनाने के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल औरंगजेब की वसीयत के मुताबिक उनकी ख्वाहिश थी कि मरने के बाद उन्हें खुल्दाबाद में ही दफनाया जाए, जहां उनके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन दफन हैं. वो इस संत को अपना पीर मानते थे. औरंगजेब को पढ़ने का शौक था. वो जैनुद्दीन की ही तरह पढ़ना चाहते थे. उन्होंने वसीयत में लिखा था कि उनका मकबरा साधारण होना चाहिए. मकबरा सब्जे (तुलसी) के पौधे से ढंका होना चाहिए. मकबरे की छत नहीं होनी चाहिए. लॉर्ड कर्जन ने 1904-05 में खुल्दाबाद का दौरा किया था. औरंगजेब का साधारण सा मकबरा देखने के बाद उन्होंने मकबरे के आसपास संगमरमर की ग्रिलें लगवाई थीं. 

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औरंगजेब की कब्र पर सियासत

राजनीति में औरंगजेब पर ताजा सियासत महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी के बयान के बाद शुरू हुआ है. उन्होंन औरंगजेब को अच्छा राजा बताया था. उन्होंने कहा था कि औरंगजेब के समय भारत वर्मा से लेकर अफगानिस्तान तक फैला था.उन्होंने कहा था कि औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज या छत्रपति सांभाजी महाराज में लड़ाई धर्म को लेकर नहीं बल्कि सत्ता और जमीन को लेकर थी. मैं जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव में विश्वास नहीं करता हूं. बाद में दबाव बढ़ने पर उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया. 

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एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब के मकबरे पर फूल चढाए थे.

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन के नेता और तेलंगाना के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी ने मई 2022 में औरंगजेब के मकबरे का दौरा किया था. उन्होंने वहां पर शीश नवाया था. इसकी काफी आलोचना हुई थी. औवैसी के दौरे के बाद से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस मकबरे के औचित्य पर सवाल उठाते हुए उसे हटाने की मांग की थी. ओवैसी के इस दौरे की आलोचना करने वालों में मनसे के साथ-साथ शिवसेना और बीजेपी भी शामिल थी. इन दलों ने ओवैसी पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की थी. 

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औरंगजेब के मकबरे पर विवाद को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मकबरे को कुछ दिनों के लिए बंद करने का फैसला किया था.हालांकि विवाद को देखते हुए मकबरे की इंतजामिया कमेटी ने फी एएसआई से इसी तरह का कदम उठाने की अपील की थी.

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औरंगजेब के मकबरे पर जाने वाले ओवैसी अकेले नेता नहीं थे. वंचित बहुजन अघाड़ी के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर ने भी औरंगजेब के मकबरे पर फूल चढ़ाए थे. इसके बाद बीजेपी ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना पर सवाल उठाए थे, क्योंकि वंचित बहुजन अघाड़ी के संबंध थे. इस पर आंबेडकर ने कहा था कि औरंगजेब ने करीब 50 साल तक शासन किया था, इसलिए लोगों को उसकी आलोचना करने की जगह उसके इतिहास पर गौर करना चाहिए. 

औरंगजेब की मजार पर फूल चढ़ाने के बाद प्रकाश आंबेडकर ने अपने विरोधियों को इतिहास पढने की नसीहत दी थी.

महाराष्ट्र में औरंगजेब पर क्यों होता है विवाद

महाराष्ट्र में औरंगजेब के शासनकाल में उसकी सेनाओं और मराठों के बीच हुई लड़ाइयों के लिए याद किया जाता है. मराठों ने मुगलों के विजय रथ को रोक दिया था. इसे मराठा गौरव के रूप में देखा जाता है और औरंगजेब को एक विधर्मी के रूप में. मुगल सेना ने 1689 में छत्रपति शिवाजी के बेटे संभाजी महाराज को गिरफ्तार कर लिया था. मुगलों ने फांसी देने से पहले उनको बहुत यातनाएं दी थीं. इस घटना ने औरंगजेब को मराठों का एक कट्टर दुश्मन बना दिया. इसी साल आई फिल्म 'छावा'  ने इस घाव को और हरा कर दिया है. 

महाराष्ट्र के इतिहास में अहम स्थान रखने वाले ज्योतिबा फुले से लेकर विनायक दामोदर सावरकर तक ने औरंगजेब की आलोचना करते हुए उसे क्रूर शासक बताया है. सावरकर तो औरंगजेब को इंसान रूपी राक्षस बताते थे. यही वजह है कि आजादी के बाद हिंदुओं की राजनीति करने वाले हिंदूवादी संगठन भी औरंगजेब के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं. शिवसेना इस राजनीति की चैंपियन रही है. कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार चला रहे उद्धव ठाकरे ने अपने अंतिम कैबिनेट बैठक में जो फैसला लिया था, उसमें औरंगबाद का नाम बदलकर अब संभाजी नगर रखने का फैसला भी शामिल था.

शिव सेना और औरंगजेब

उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे ने  मुस्लिमों की तुलना औरंगजेब से की थी. इसका परिणाम यह हुआ था कि शिवसेना को औरंगाबाद नगर निगम में जीत मिली थी. इस जीत के बाद बाल ठाकरे ने लिखा था, ''300 साल से औरंगजेब का भूत इस देश को सताता रहा है. 300 साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है और मर्द मराठों ने औरंगजेब को औरंगाबाद की उसी धरती में दफना दिया है.'' शिवसेना ही औरंगाबाद का नाम सांभाजी के नाम पर रखने की मांग कर रही थी. औरंगाबाद नाम भी औरंगजेब के नाम पर ही पड़ा है. शिवसेना के नेतृत्व वाले नगर निगम ने औरंगाबाद का नाम बदलने का प्रस्ताव पास किया था.लेकिन कानूनी अड़चनों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया था.शिवसेना में बगावत कर बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के फैसले को पलट दिया था. उन्होंने संभाजी नगर का नाम बदलकर छत्रपति सांभाजी नगर कर दिया. 

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