देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के इस सप्ताह आने वाले परिणामों से केवल यह फैसला नहीं होगा कि इन राज्यों के अगले मुख्यमंत्री कौन होंगे, बल्कि इसका असर संभवत: इस साल के अंत में होने राष्ट्रपति पद के चुनाव भी होगा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त होगा और 10 मार्च को उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभाओं के चुनाव परिणाम फैसला करेंगे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में किस पार्टी या गठबंधन की निर्णायक भूमिका होगी.
इस समय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) देश के शीर्ष पद के लिए अपने उम्मीदवार का आसानी से चयन करने की स्थिति में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रतिकूल परिणाम इस स्थिति में बदलाव कर सकते हैं और ऐसा होने पर राष्ट्रपति चुनाव में बीजू जनता दल (बीजद), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी.
राष्ट्रपति चुनाव में उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य सबसे अधिक यानी 208 है, जबकि सिक्किम के एक विधायक के वोट का मूल्य सबसे कम यानी सात है. जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से पंजाब के एक विधायक के वोट का मूल्य 116, उत्तराखंड के विधायक के वोट का मूल्य 64, गोवा के एक विधायक के वोट का मूल्य 20 और मणिपुर के एक विधायक के वोट का मूल्य 18 है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि राज्य के 403 विधायकों में से प्रत्येक के वोट का मूल्य सबसे अधिक यानी 208 है. उत्तर प्रदेश विधानसभा के वोट का कुल मूल्य 83,824, पंजाब का 13,572, उत्तराखंड का 4,480, गोवा का 800 और मणिपुर का कुल मूल्य 1,080 है.
विभिन्न गणनाओं के अनुसार, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों का मूल्य कुल संख्या के 50 प्रतिशत से कम है और राष्ट्रपति भवन में अपने उम्मीदवार का मार्ग सुगम बनाने के लिए उसे गठबंधन से अलग मित्र दलों के समर्थन पर निर्भर रहना होगा. टीआरएस सुप्रीमो और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव राष्ट्रपति चुनाव में अहम भूमिका निभाने के स्पष्ट इरादे से विपक्षी दलों से मुलाकात कर रहे हैं. विपक्षी खेमे ने यह प्रस्ताव देकर भाजपा नीत राजग को विभाजित करने की कोशिश की है कि यदि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग हो जाते हैं, तो उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है.
राष्ट्रपति का चुनाव करने वाले निर्वाचक मंडल में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं. विधान परिषदों के सदस्य और मनोनीत सदस्य निर्वाचक मंडल का हिस्सा नहीं होते हैं.
निर्वाचक मंडल के कुल 4,896 निर्वाचकों में राज्यसभा के 233 सदस्य, लोकसभा के 543 सदस्य और विधानसभाओं के 4,120 सदस्य होते हैं.
राष्ट्रपति पद का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होता है. प्रत्येक वोट का मूल्य 1971 की जनगणना के आधार पर संबंधित राज्य की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार पूर्व निर्धारित होता है. कुल 4,896 निर्वाचकों के वोटों का कुल मूल्य 10,98,903 है और उम्मीदवार को जीत के लिए कम से कम 50 प्रतिशत मतों के अलावा एक अन्य मत की आवश्यकता होती है.
देश भर की विधानसभाओं में अकेले भाजपा के 1,431 विधायक हैं. इसके बाद कांग्रेस के पास विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में 766 विधायक हैं. गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी दलों के पास कुल 1,923 विधायक हैं. इनमें से कुछ दल पहले ही किसी न किसी राष्ट्रीय दल के साथ गठबंधन कर चुके हैं. राजग के लोकसभा में 334 और राज्यसभा में 115 सदस्य हैं. राज्य सभा में 115 सदस्यों में से, भाजपा के नौ सदस्य मनोनीत श्रेणी के हैं और मतदान के लिए अयोग्य हैं. इससे राजग की मतदान के लिए योग्य राज्यसभा सदस्यों की संख्या 106 रह जाती है. प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 निर्धारित किया गया है.