सेना दुश्मन को अपने ड्रोन से करेगा ढेर, जान लें क्या है पूरी योजना

सेना चाहती है कि ये ड्रोन दिन-रात और हर मौसम में उड़ान भरने में सक्षम हों. इन्हें तेज हवा, अत्यधिक गर्मी और कड़ाके की ठंड में भी प्रभावी ढंग से काम करना होगा. विशेष रूप से ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती के लिए ड्रोन को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी संचालन योग्य होना चाहिए.

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नई दिल्ली:

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना ड्रोन-आधारित युद्ध क्षमताओं को और सशक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है. सेना करीब 20 टैक्टिकल ड्रोन की खरीद की तैयारी में है, जिनमें 10 ड्रोन मैदानी इलाकों के लिए और 10 ड्रोन ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए प्रस्तावित हैं. इस उद्देश्य से रक्षा मंत्रालय ने टैक्टिकल रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट के लिए रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (RFI) जारी की है. इस RFI के जरिए सेना यह आकलन करना चाहती है कि देश की कौन-कौन सी कंपनियां ऐसे आधुनिक, हथियारबंद और बहुउद्देश्यीय ड्रोन विकसित करने में सक्षम हैं, जो मैदानी इलाकों से लेकर ऊंचे, दुर्गम और अत्यधिक ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से ऑपरेट कर सकें. प्रस्तावित खरीद पूरी तरह ‘मेक इन इंडिया' और ‘आत्मनिर्भर भारत' पहल के तहत किए जाने की संभावना है.

यह पहल स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भारतीय सेना भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारियों को नए सिरे से आकार दे रही है. बदलते युद्ध स्वरूप, ड्रोन की बढ़ती भूमिका और चीन व पाकिस्तान की सीमावर्ती गतिविधियों के मद्देनज़र टैक्टिकल ड्रोन सेना की परिचालन रणनीति का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं.

सेना चाहती है कि ये ड्रोन दिन-रात और हर मौसम में उड़ान भरने में सक्षम हों. इन्हें तेज हवा, अत्यधिक गर्मी और कड़ाके की ठंड में भी प्रभावी ढंग से काम करना होगा. विशेष रूप से ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती के लिए ड्रोन को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी संचालन योग्य होना चाहिए. तकनीकी रूप से ड्रोन की रेंज लाइन-ऑफ-साइट मोड में कम से कम 120 किलोमीटर और सैटेलाइट कम्युनिकेशन के जरिए 400 किलोमीटर तक होनी चाहिए, जबकि इनकी एंड्यूरेंस कम से कम 8 घंटे निर्धारित की गई है.

ये ड्रोन केवल निगरानी तक सीमित नहीं रहेंगे. सेना इन्हें इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस (ISR), इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और आवश्यकता पड़ने पर सटीक स्ट्राइक जैसे मिशनों के लिए उपयोग करना चाहती है. इसके लिए ड्रोन को अत्याधुनिक सेंसर, हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरे और आधुनिक मिशन सिस्टम से लैस करने की शर्त रखी गई है, ताकि दुश्मन की गतिविधियों पर रियल टाइम नजर रखी जा सके.

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोन की भूमिका ने उनकी रणनीतिक अहमियत को और स्पष्ट कर दिया था. रियल टाइम इंटेलिजेंस जुटाने, दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने और ऑपरेशनल निर्णयों में बढ़त दिलाने में ड्रोन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके बाद से पहाड़ी, दुर्गम और विवादित क्षेत्रों में ड्रोन सेना के लिए एक अनिवार्य साधन बनकर उभरे हैं. ऐसे इलाकों में मानवयुक्त विमान, यूएवी या हेलीकॉप्टर भेजना जोखिम भरा होता है, जबकि ड्रोन अपेक्षाकृत कम खतरे में मिशन को अंजाम दे सकते हैं.

इस RFI का व्यापक उद्देश्य न केवल सेना की तकनीकी और ऑपरेशनल क्षमता को मजबूत करना है, बल्कि देश में एक मजबूत और आत्मनिर्भर ड्रोन इकोसिस्टम को भी बढ़ावा देना है. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इच्छुक कंपनियों को इस RFI का जवाब 18 मार्च 2026 तक देना होगा.कुल मिलाकर, यह कदम भारतीय सेना के भविष्य के युद्ध सिद्धांतों में ड्रोन की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है और यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में ड्रोन-आधारित युद्ध क्षमता भारत की सैन्य शक्ति का एक अहम स्तंभ बनने जा रही है.

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