विश्लेषण : कांग्रेस की नई CWC - चुनाव हैं फोकस, डगमगाने से बचते हुए

यह पिछले 20 वर्ष में पहले गैर-गांधी कांग्रेस प्रमुख बने मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा किया गया पहला बड़ा संगठनात्मक फेरबदल है. उन्हें CWC के सभी सदस्यों को मनोनीत करने, चुनने नहीं, का काम सौंपा गया था. इस संदर्भ में देखें, तो मल्लिकार्जुन खरगे की नई टीम पार्टी द्वारा कुछ बदलाव करने का प्रयास नज़र आ रही है, जिससे डगमगाने के हालात पैदा न हों...

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नई दिल्ली:

जल्द ही होने जा रहे राज्य विधानसभा चुनावों, और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 पर फोकस करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की रविवार को घोषित की गई नई टीम पुराने और नए साथियों का बहुत ध्यान से किया गया मैनेजमेंट है. सुरक्षित रहते हुए इसमें कुछ अपेक्षित चेहरे भी शामिल किए गए हैं, लेकिन इसके माध्यम से दिया गया स्पष्ट संदेश यह है कि पार्टी का प्राथमिक ध्यान चुनाव लड़ने पर होगा, और संगठनात्मक राजनीति को उस लक्ष्य के रास्ते में नहीं आना चाहिए.

नई टीम की घोषणा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे के कार्यभार संभालने के 10 माह बाद की गई है, और इसे आकांक्षाओं, वफादारी को संतुलित करने और भविष्य की तैयारियों को आगे बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

गांधी परिवार के सदस्यों के साथ-साथ कांग्रेस के दिग्गज नेताओं दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, मीरा कुमार, पी. चिदम्बरम, अभिषेक मनु सिंघवी और सलमान खुर्शीद को तो समायोजित किया ही गया है, गौरव गोगोई तथा सचिन पायलट सरीखे कुछ युवाओं को भी जगह दी गई है. भले ही कांग्रेस के शीर्ष कार्यकारी निकाय का विस्तार युवाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए आंतरिक कोटा पूरा करने के लिए होना ही था, लेकिन उसके बावजूद CWC में सिर्फ़ तीन सदस्य हैं, जिनकी आयु 50 वर्ष से कम है.

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पार्टी ने इसकी घोषणा के लिए भी विशेष तिथि चुनी - भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती. कर्नाटक में पार्टी की जीत, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मानहानि मामले में राहुल गांधी की सज़ा पर रोक लगाया जाना और एकजुट विपक्ष में कांग्रेस की संभावित अहम भूमिका इस नई CWC के लिए खासतौर से अहम पृष्ठभूमि हैं.

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नई CWC में कई संदेश छिपे हैं - शशि थरूर को शामिल किया गया, जो पिछले साल पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव में मल्लिकार्जुन खरगे के ख़िलाफ़ मैदान में थे, सचिन पायलट और गौरव गोगोई जैसे युवा नेताओं को शामिल किया गया, सामाजिक प्रतिनिधित्व पर ज़ोर, और राज्यों की राजनीति के बदलते स्वरूप में सभी को संतुष्ट रखने की मल्लिकार्जुन खरगे की कोशिश.

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पार्टी ने पिछले साल CWC का आकार 23 से बढ़ाकर 35 करने का फैसला किया था. नई CWC में कुल 84 सदस्य हैं, जिसमें 39 नियमित सदस्य, 32 स्थायी आमंत्रित और 13 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं.

सबसे पहले समझें, कांग्रेस कार्यसमिति है क्या...?

कांग्रेस में कार्यसमिति ही सर्वोच्च कार्यकारी निकाय है, जिसके पास पार्टी संविधान के प्रावधानों को क्रियान्वित करने का अंतिम अधिकार है. तकनीकी रूप से कार्यसमिति के पास पार्टी अध्यक्ष को हटाने या नियुक्त करने की शक्ति है, और आमतौर पर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद इसका पुनर्गठन किया जाता है.

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नई CWC के मुख्य संदेश क्या हैं...?

चुनाव का सामना करने जा रहे सूबों को संदेश

आम चुनाव 2024 के लिए अभियान शुरू करने से पहले कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव का सामना करना है, और नई CWC में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि चुनाव पार्टी का सर्वोच्च फोकस प्वाइंट है.

राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को पुनर्गठित CWC में शामिल किया जाना पार्टी नेतृत्व की ओर से संकेत है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ उनके मतभेदों का समर्थन नहीं करने के बावजूद पार्टी उन्हें भविष्य में अधिक ज़िम्मेदारियां देने के लिए तैयार है.

पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने सुष्मिता देव, हिमंता बिस्वा सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई होनहार, अपेक्षाकृत युवा चेहरों को भारतीय जनता पार्टी (BJP) या तृणमूल कांग्रेस (TMC) के खेमे में गंवा दिया है. सचिन पायलट को मनाने के लिए लगातार की जा रही कोशिशें इस बात का भी प्रतिबिम्ब हैं कि कांग्रेस कैसे अपने परिवार को एकजुट रखना चाहती है, विशेषकर उन राज्यों में, जहां चुनाव होने वाले हैं.

राजस्थान में पिछले 25 साल से हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा चली आ रही है, और अशोक गहलोत सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं के ज़रिये इसका तोड़ निकालने की कोशिश कर रही है. यह अब भी बेहद मुश्किल काम है. कांग्रेस के लिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान जीतना अहम है और उसके लिए अहम है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक-दूसरे पर हमले बंद करें.

छत्तीसगढ़ के मंत्री ताम्रध्वज साहू को CWC में शामिल कर कांग्रेस ने OBC वोटरों को संदेश देने की कोशिश की है. राज्य के सबसे बड़े OBC समूह साहू ने 2018 में BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस का समर्थन किया था, और ताम्रध्वज साहू इस समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते हैं. मध्य प्रदेश में सिहावल से युवा विधायक कमलेश्वर पटेल को CWC में जगह दिया जाना भी दिलचस्प है. वह दूसरी पीढ़ी के कांग्रेस नेता हैं, और राज्य में पार्टी का OBC-कुर्मी चेहरा भी हैं, और OBC से जुड़े मुद्दों पर बोलते रहे हैं.

खैर, बगावत का अध्याय बंद करते हैं, और बात करते हैं नए चेहरों की

पार्टी ने CWC में गांधी परिवार के वफादारों को बरकरार रखा है, लेकिन ऐसे नेताओं को भी शामिल किया है, जिन्हें पार्टी पदों से हटाया गया था, या कोई आधिकारिक पद दिए ही नहीं गए थे. इनमें प्रतिभा सिंह जैसे नेता भी शामिल हैं, जो कभी हिमाचल कांग्रेस का नेतृत्व किया करती थीं, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुकाबले CM पद की दौड़ में पीछे छूट गई थीं.

वर्ष 2020 में हुई G23 बगावत ने कांग्रेस को हिलाकर रख दिया था. आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे वरिष्ठ नेताओं ने एक खत के ज़रिये बड़े पैमाने पर बदलाव की मांग की थी. गौरतलब है कि नई CWC में उस बगावती खेमे के कम से कम पांच शीर्ष नेताओं को जगह दी गई है, जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि पार्टी अतीत से आगे बढ़ना चाहती है.

पिछली CWC के अधिकतर सदस्यों को बरकरार रखा गया है, जिनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, डॉ मनमोहन सिंह, ए.के. एंटनी, अंबिका सोनी, के.सी. वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक, पी. चिदम्बरम, आनंद शर्मा, तारिक अनवर, अजय माकन, कुमारी शैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला आदि शामिल हैं.

इनके अलावा, गौरव गोगोई, सचिन पायलट, कन्हैया कुमार, मनिक्कम टैगोर और अलका लाम्बा जैसे नेताओं को भी जगह दी गई है, और इन सभी के संगठन में अहम पद संभालने की संभावना है. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की शुरुआत करने वाले और मणिपुर में हिंसा पर तीखी बात कहने वाले गौरव गोगोई को प्रमोशन दिया गया है. पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत जैसे उन पार्टी नेताओं को भी CWC में शामिल किया गया है, जो विभिन्न मंचों पर ज़ाहिर तौर पर BJP से मुकाबिल हैं.

सामाजिक प्रतिनिधित्व और राज्यवार समायोजन पर ज़ोर

शीर्ष निकाय में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को प्रतिबिम्बित करने की कोशिश की गई है, क्योंकि यह आम चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस के लिए बेहद अहम मुद्दा है. छह OBC, नौ SC और एक ST नई CWC का हिस्सा हैं. यह इसलिए भी बेहद अहम है, क्योंकि राहुल गांधी ने आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीमा को बढ़ाने के पक्ष में बात की थी, और 'जितनी आबादी, उतना हक' (किसी भी समूह के अधिकार उसकी जनसंख्या हिस्सेदारी के अनुपात में हैं) पर ज़ोर दिया था. CWC के बदलाव ऐसे वक्त में किए गए हैं, जब BJP भी OBC समुदायों के लिए राष्ट्रव्यापी योजना शुरू करने के लिए तैयार है.

पार्टी ने पिछले साल अपने संविधान में संशोधन करते हुए कहा था कि CWC के 35 सदस्यों में से 50 प्रतिशत SC, ST, OBC, अल्पसंख्यक, युवा और महिलाएं होंगी. एक ही राज्य से आने वाले नेताओं को अलग-अलग ज़िम्मेदारियां देकर संतुलन बनाने की भी कोशिश की गई है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई असंतोष या निराशा नहीं है.

उदाहरण के लिए नई CWC में गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ठाकोर को भी लाया गया. विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद हाल ही में उन्हें गुजरात कांग्रेस प्रमुख पद से हटा दिया गया था. वह गुजरात में कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण OBC चेहरा हैं, जहां पार्टी को पिछले साल अपने सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था, और वह 17 सीटों पर सिमट गई थी. गुजरात से दो अन्य चेहरों - दीपक बाबरिया और लालजी देसाई - ने भी CWC में जगह बनाई है. जम्मू एवं कश्मीर कांग्रेस के पूर्व प्रमुख गुलाम अहमद मीर, पश्चिम बंगाल की नेता दीपा दासमुंशी और आंध्र प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रमुख एन. रघुवीरा रेड्डी को भी जगह दी गई है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जानी-मानी आलोचक और पूर्व केंद्रीय मंत्री दीपा दासमुंशी उत्तर दिनाजपुर जिले के गोलपोखर से कांग्रेस की पूर्व विधायक भी हैं. उनके पति पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी का 2017 में निधन हो गया था. रघुवीरा रेड्डी ने लगभग पांच वर्ष तक आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, लेकिन 2014 और 2019 में लगातार दो विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया. रघुवीरा रेड्डी को पिछले साल कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में सक्रिय रूप से शिरकत करते देखा गया था.

नई CWC में दिल्ली पर भी फोकस किया गया है. अगर AAP-कांग्रेस के बीच कामयाबी से गठबंधन बन जाता है, तो राष्ट्रीय राजधानी भी अहम है. नवंबर में राजस्थान कांग्रेस प्रभारी का पद छोड़ने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को बहाल कर दिया गया है, जबकि AAP से कांग्रेस में लौटीं अलका लाम्बा को भी जगह दी गई है.

कांग्रेस का नेतृत्व, पद कैसे भरे जाते हैं, पार्टी के भीतर चुनाव या चयन कैसे होते हैं, भारतीय राजनीति को करीब से देखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह बेहद दिलचस्पी का विषय रहा है. रविवार को घोषित CWC और भी अहम है, क्योंकि यह पिछले 20 वर्ष में पहले गैर-गांधी कांग्रेस प्रमुख बने मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा किया गया पहला बड़ा संगठनात्मक फेरबदल है. उन्हें CWC के सभी सदस्यों को मनोनीत करने, चुनने नहीं, का काम सौंपा गया था. इस संदर्भ में देखें, तो मल्लिकार्जुन खरगे की नई टीम पार्टी द्वारा कुछ बदलाव करने का प्रयास नज़र आ रही है, जिससे डगमगाने के हालात पैदा न हों...

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