'आपातकाल का दमन और यातनाएं अभी भी मेरी यादों में', संविधान हत्या दिवस पर बोले अमित शाह

केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि बुरी घटनाओं को भुला देना चाहिए, ऐसा कहा जाता है लेकिन जब बात समाज, जीवन की हो तो ऐसी घटनाओं को चिर काल तक याद रखना चाहिए ताकि उन्हें फिर से दोहराया न जा सके. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला किया है. 

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  • देश आज आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर संविधान हत्या दिवस मना रहा है.
  • शाह ने आपातकाल के दौरान युवा मोदी के योगदान पर किताब का जिक्र किया.
  • इंदिरा ने परिवारवाद को बचाने के लिए आपातकाल लगाया, मोदी ने उसे खत्म कर दियाः शाह
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नई दिल्ली:

देश में 1975 में आपातकाल लगाए जाने के 50 साल पूरे होने पर देश आज संविधान हत्या दिवस मना रहा है. इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि देश ‘आपातकाल' में कांग्रेस द्वारा किए गए अन्याय और अत्याचार को कभी भूल नहीं पाएगा. मोदी जी ने इसे ‘संविधान हत्या दिवस' नाम दिया है ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी यह याद रहे. शाह ने कहा कि आपातकाल का दमन और यातना अभी भी मेरी यादों में है. मैं इसे कभी भूल नहीं पाऊंगा.

शाह ने कहा कि आज हम आजादी के बाद के भारत के एक काले अध्याय को याद करने के लिए यहां जुटे हैं. ऐसा कहते हैं कि बुरी घटनाओं को भुला देना चाहिए, लेकिन जब बात समाज, जीवन की हो तो ऐसी घटनाओं को चिर काल तक याद रखना चाहिए ताकि उन्हें फिर से दोहराया न जा सके. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला किया है. 

शाह ने इस दिन को संविधान हत्या दिवस नाम दिए जाने की कहानी भी बताई. उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय में इसके नाम को लेकर कई सारे सुझाव आए थे. तब एक विचार ये भी आया कि संविधान हत्या दिवस एक कठोर निर्मम शब्द होगा. लेकिन सोच विचार के बाद यही नाम रखा गया क्योंकि जिस तरह से आपातकाल में देश को जेलखाना बनाकर रख दिया गया था, देश की आत्मा को नंगा कर दिया गया था, न्यायालयों के कानों को बहरा कर दिया गया था, लिखने वालों की कलम से स्याही निकालकर रख दी गई थी. ऐसे  कालखंड का वर्णन ऐसे कठोर शब्दों के साथ ही करना चाहिए. तभी युवा पीढ़ी जान पाएगी कि उस वक्त क्या हुआ था.

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आपातकाल के दौरान युवावस्था में नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से योगदान दिया, उसके ऊपर लिखी गई किताब का भी जिक्र किया. इस किताब का नाम है- The Emergecy diary: Years that forged a leader. शाह ने कहा कि आपातकाल के विरोध में जेपी और नानाजी देशमुख के नेतृत्व में जो आंदोलन चला था, उसमें 23-24 साल के युवा कार्यकर्ता के रूप में नरेंद्र मोदी ने जिस तरह संघर्ष किया, उसका विवरण है. 

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शाह ने कहा कि युवा नरेंद्र मोदी उस वक्त संघ के प्रचारक के रूप में 19 महीने तक काम किया था. वह मीसा बंदियों के घर गए. उनके परिजनों की पूछताछ की, इलाज की व्यवस्था कराई. उस समय जो गुप्त अखबार निकलते थे, उसे बांटने का काम किया. शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी उस वक्त भूमिगत रहकर काम करते थे. कभी साधु, कभी सरदार जी, कभी हिप्पी, कभी अगरबत्ती बेचने वाले तो कभी अखबार डालने वाले फेरिया का काम करके आपातकाल के विरोध को जन-जन तक पहुंचाया था. 

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शाह ने कहा कि समय का चक्र देखिए कि 20-25 साल के जिस युवा ने उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विचारों का घर-घर जाकर, गांव-गांव जाकर विरोध किया था, उस व्यक्ति ने 2014 में उसी परिवारवाद को खत्म कर दिया है, जिसके लिए आपातकाल लगाया गया था. उन्होंने कहा कि इस देश में प्रधानमंत्री मोदी ने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का काम किया है. 

गृह मंत्री ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा कि 24 जून 1975 को एक तानाशाह की सोच को जमीन पर उतारने का अध्यादेश लागू किया गया था. कई बार इतिहास नीयत और नजरिए को भी उजागर करता है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने आंबेडकर के संविधान की आत्मा को कुचलने का काम किया था.

शाह ने कहा कि इंदिरा ने 12 जून की घटना के खिलाफ इमरजेंस लगाई थी. इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री के चुनाव को खारिज करके छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. इसके अलावा 12 जून को ही गुजरात में कांग्रेस की सत्ता का अंत होकर जनता मोर्चा का प्रयोग सफल हुआ था. इंदिरा ने राष्ट्र की सुरक्षा को खतरे का हवाला देकर इमरजेंसी लगाई थी. लेकिन असल में खतरा उनकी कुर्सी को था. 

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