घने जंगल, उफनती नदी और दुर्गम पहाड़िया पर कर पहुंचाई दवाइयां, जानें कौन हैं तेलंगाना के वो हेल्‍थ ऑफिसर

अल्लेम अप्पैया भारत के तेलंगाना में मुलुगु के जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (DMHO) हैं. वह इन दिनों देशभर में काफी चर्चा में बने हुए हैं. अल्लेम अप्पैया सार्वजनिक सेवा, विशेष रूप से दूरदराज और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक पहुंचने के प्रति उनके समर्पण के लिए काफी प्रशंसा मिल रही है.

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अल्लेम अप्पैया बताते हैं कि उनके फोन का नेटवर्क इस गांव के आसपास चला गया था...
हैदराबाद:

घने जंगल और उफनती नदी को पार कर, दुर्गम पहाडि़यों को पार कर 16 किलोमीटर ट्रेकिंग करते हुए एक हेल्‍थ ऑफिसर ने आदिवासियों तक दवाइयां और जरूरी सामान पहुंचाया, आम लोगों की सेवा के लिए ऐसा जज्‍बा आजकल कम ही देखने को मिलता है. तेलंगाना में मुलुगु के जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (डीएमएचओ) अल्लेम अप्पैया, उफनती नदी से गुजरते हुए, पहाड़ियों पर चढ़ते हुए और पांच घंटे से अधिक समय तक 16 किमी की ट्रैकिंग करने के बाद, दवाइयां, मच्छरदानी पहुंचाने के लिए वाजेदु मंडल के एक दूरदराज के गांव में पहुंचे. इस गांव में सिर्फ 11 परिवार रहते हैं. 

आदिवासियों का दर्द किया महसूस

अल्लेम अप्पैया भारत के तेलंगाना में मुलुगु के जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (DMHO) हैं. वह इन दिनों देशभर में काफी चर्चा में बने हुए हैं. अल्लेम अप्पैया सार्वजनिक सेवा, विशेष रूप से दूरदराज और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक पहुंचने के प्रति उनके समर्पण के लिए काफी तारीफ हो रही है. वह इस गांव में एक रात ठहरे भी. अल्‍लेम अप्‍पैया का इस मुश्किल यात्रा को करने के पीछे एक मकसद था. वह दरअसल, यह महसूस करना चाहते थे कि आदिवासी इस दुर्गम जगह पर कैसे अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारी को उन तक दवाइयां पहुंचाने में कितनी मुश्किल आती है.   

उफनती नदी और पहाडि़यों को लांघा

अल्लेम अप्पैया टाइम्‍स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि यहां रहने वाले आदिवासियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मानसून के सीजन में तो यह जगह दूसरे इलाकों से लगभग कट जाती है. यहां पहुंचने के लिए लोगों को उफनती नदी का सामना करना पड़ता है, वहीं दुर्गम पहाड़ी की चढ़ाई भी लोगों के हौसले पस्‍त कर देती है. मानसून में यहां रहना बेहद खतरनाक है, क्‍योंकि अगर किसी को इमरजेंसी में अस्‍पताल पहुंचाना हो, तो बेहद मुश्किल है. यहां 11 परिवार रहते हैं, जिन्‍हें मैदानी इलाकों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए. 

अब सिर्फ बचे हैं 11 परिवार

दरअसल, गांव में एक समय 151 परिवार रहते थे. प्रशासन के अनुरोध पर इस गांव में रहने वाले 140 परिवार मैदानी इलाकों में चले गए हैं, लेकिन यहां अब भी 11 परिवार मौजद हैं. ये सभी बेहद मुश्किल परिस्थितियों में जिंदगी जी रहे हैं. प्रशासन चाहता है कि ये 11 परिवार भी जल्‍द से जल्‍द मैदानी इलाकों में शिफ्ट हो जाएं, ताकि इनकी जान को कोई खरता न रहे. इन 11 परिवारों में कई 2 साल के बच्‍चे भी हैं. हालांकि, ये लोग यहां से शिफ्ट होने को तैयार नहीं हैं. ये 11 परिवार मांग कर रहे हैं कि उन्‍हें सड़क के नजदीक घर और खेती करने के लिए जमीन दी जाए, तभी वे यहां से निकलने का फैसला करेंगे. प्रशासन आदिवासियों की इन मांगों पर विचार कर रहा है. 

मोबाइल नेटवर्क भी नहीं...

ये गांव ऐसी जगह पर स्थित है, जहां मोबाइल नेटवर्क भी बेहद मुश्किल से मिलता है. अल्लेम अप्पैया बताते हैं कि उनके फोन का नेटवर्क इस गांव के आसपास चला गया था. इसके बाद सभी से उनका संपर्क टूट गया. ऐसे में यहां रहने की मुश्किलों को समझा जा सकता है. इसलिए मैंने गुथी कोया परिवारों से मैदानी इलाकों में स्थानांतरित होने का अनुरोध किया, लेकिन वे इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं. बता दें कि अल्‍लेम अप्पैया ने इस गांव तक पहुंचने के लिए तीन स्थानों जगहों पर उफनती नदी को पार किया. अप्पैया ने यात्रा के दौरान तीन पहाड़ियों को पार किया, उनके साथ उनके स्टाफ समेत छह अन्य लोग भी थे. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दामोदर राजा नरसिम्हा ने आदिवासी परिवारों तक पहुंचने के लिए डीएमएचओ और उनकी टीम द्वारा किए गए प्रयासों की जमकर तारीफ की है. 

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