कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच चुनाव कराए जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट लगातार सख्ती दिखा रहा है. कोर्ट ने कहा है कि कोरोना के बीच में विधानसभा और पंचायत चुनाव कराने के अपने फैसले को लेकर चुनाव आयोग, उच्च अदालतें और सरकार 'इसके विनाशकारी नतीजों का अनुमान लगाने में नाकाम रहीं.' हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की सिंगल बेंच ने यह टिप्पणी सोमवार को की थी.
कोर्ट ने एक केस में 'विशेष आधार' पर गाजियाबाद के एक बिल्डर को जनवरी, 2022 तक गिरफ्तारी से सुरक्षा देते हुए यह टिप्पणी की. उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस बिल्डर के खिलाफ एक संपत्ति पर कथित कब्जा करने को लेकर केस दर्ज किया है. कोर्ट ने वो विशेष आधार भी बताए, जिनके आधार पर प्रोटेक्शन दी गई. कोर्ट ने कहा कि 'महामारी जैसे कारणों के चलते मृत्यु की आशंका किसी आरोपी को अग्रिम जमानत देने का आधार बनाई जा सकती है.'
18 पेज के इस ऑर्डर में कोर्ट ने कोविड के हालात पर कई टिप्पणियां की हैं. कोर्ट ने कहा है कि कोविड का संक्रमण अब उत्तर प्रदेश के गांवों में पहुंच गया है और हाल ही में कराए गए पंचायत चुनावों से संक्रमण में तेजी आई है. हाईकोर्ट ने कहा, 'राज्य सरकार को शहरी इलाकों में कोरोना में काबू पाने में दिक्कतें आ रही हैं, और अब गांवों में बढ़ते मामलों के बीच यहां टेस्टिस, ट्रेसिंग और ट्रीटिंग बहुत मुश्किल हो जाएगी. राज्य के पास इसके लिए तैयारी और संसाधन भी नहीं है.'
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कोर्ट ने कहा कि 'पंचायत चुनावों के बीच राज्य में बहुत से FIR दर्ज कराए गए हैं. इसके इतर भी राज्य में गांवों में क्राइम रेट काफी ऊंचा है. गांवों में पंचायत चुनावों के बाद की हालत को देखते हुए, बहुत से आरोपी संक्रमित हो सकते हैं और उनके संक्रमण का पता नहीं होगा.'
बता दें कि पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट में कोरोना के बीच चुनाव कराने पर मद्रास हाईकोर्ट की एक टिप्पणी को लेकर चुनाव आयोग ने अपना बचाव किया था. आयोग ने यह भी कहा था कि मीडिया पर कोर्ट की सुनवाई की रिपोर्टिंग करने से रोक लगाई जाए. दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि देश में कोरोना के मामलों के बढ़ने में चुनाव आयोग का हाथ है और उसपर 'हत्या का मुकदमा चलाना चाहिए.' हालांकि, यह टिप्पणी आखिरी आदेश में नहीं थी.