आगरा के हसनुराम अंबेडकरी ‘धरती पकड़' ने पहली बार 1985 में चुनाव लड़ा था, लेकिन 98 चुनावी हार के बाद 78 वर्षीय इस लोकसभा चुनाव में अपना नामांकन दाखिल कर 100 चुनाव लड़ने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी भी उत्साहित हैं. मनरेगा मजदूर के रूप में अपना जीवन यापन करने वाले अंबेडकरी कहते हैं, ‘‘इस बार भी मुझे यकीन है कि मैं दोनों सीटों पर हार जाऊंगा. लेकिन, मेरा लक्ष्य 100वीं बार चुनाव लड़ना है और उसके बाद मैं कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा.'' .
आगरा जिले की खेरागढ़ तहसील निवासी अंबेडकरी ने अपना पहला चुनाव मार्च 1985 में खेरागढ़ विधानसभा सीट से बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय के तौर पर लड़ा था. उनके हाथ में शुक्रवार को फिर से नामांकन पत्र थे. उन्होंने कहा कि वह इस बार आगरा सुरक्षित सीट और फतेहपुर सीकरी सीट से नामांकन दाखिल करेंगे.
अंबेडकरी ने कहा, ‘‘मैंने 1985 से ग्राम प्रधान, राज्य विधानसभा, ग्राम पंचायत, एमएलए, एमएलसी और लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा है. मैंने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी अपनी उम्मीदवारी दाखिल की थी लेकिन वह खारिज कर दी गई..,.'' लगातार निर्दलीय चुनाव लड़ने और हारने के जुनून ने प्रसिद्ध काका जोगिंदर सिंह ‘धरती पकड़' के बाद उन्हें भी ‘धरती पकड़' का हिंदी उपनाम दिया.
जोगिंदर सिंह ने 300 से अधिक चुनाव लड़े थे जिनमें राष्ट्रपति चुनाव भी शामिल है. जब अंबेडकरी से पूछा गया कि किस बात ने उन्हें लगातार चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया तो उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘मैंने वर्ष 1984 के अंत में आगरा तहसील में 'अमीन' की अपनी नौकरी छोड़ दी क्योंकि बसपा ने मुझसे खेरागढ़ सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने का वादा किया था.'' उन्होंने कहा,‘‘लेकिन बाद में क्षेत्र में पार्टी के तत्कालीन संयोजक ने मुझे टिकट देने से इनकार कर दिया और उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाया ‘तुम्हें तुम्हारी बीवी भी वोट नहीं देगी, तो और कोई तुम्हें क्या वोट देगा.'' अंबेडकरी ने कहा, अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ा और चुनाव परिणाम में उन्हें तीसरा स्थान मिला. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यह साबित करने के लिए और अधिक चुनाव लड़ने की योजना बनाई कि मुझे भी लोगों से वोट मिल सकते हैं.''