- 20 अगस्त को DRI ने राजधानी एक्सप्रेस में 72 किलो से अधिक हाइड्रोपोनिक गांजा और करोड़ों नकद बरामद किए.
- हाइड्रोपोनिक वीड मिट्टी की जगह पोषक तत्वों वाले पानी में उगता है, इसकी कीमत एक करोड़ रुपये से अधिक होती है.
- जगदीशपुरा में 92 करोड़ रुपये के मेफेड्रोन कारखाने का खुलासा हुआ था, जो विदेशी ड्रग नेटवर्क से जुड़ा था.
Bhopal Drug Factory: दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस के डिब्बों में बैठे यात्री यह सोच भी नहीं सकते थे कि उनके बैग और बर्थ के नीचे करोड़ों का नशा सफर कर रहा है. लेकिन 20 अगस्त को ऑपरेशन ‘वीड आउट' के तहत हुई DRI की कार्रवाई ने फिर साफ कर दिया कि भोपाल सिर्फ़ एक शहर नहीं, बल्कि नशे के कारोबार का नया अड्डा बनता जा रहा है. बेंगलुरु और भोपाल जंक्शन से जब जांच शुरू हुई तो एक के बाद एक खुलासे होते गए. 29 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा बेंगलुरु से दिल्ली जाने वाली राजधानी ट्रेन से मिला. फिर 24 किलो गांजा भोपाल स्टेशन से बरामद हुआ, जो 19 अगस्त को बेंगलुरु से दिल्ली भेजा गया था.
होटल में छापा मारकर थाईलैंड से लौटा एक यात्री पकड़ा गया, उसके पास से 18 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा मिला. कुल मिलाकर 72 किलो से ज़्यादा हाइड्रोपोनिक गांजा और एक करोड़ से ज़्यादा नकद बरामद हुआ. पांच यात्री और पूरा मास्टरमाइंड गिरफ़्त में है.
हाइड्रोपोनिक वीड की कीमत एक करोड़ से ज्यादा
हाइड्रोपोनिक वीड नाम सुनने में भले ही नया लगे, लेकिन यह बेहद महंगा और खतरनाक नशा है. इसकी कीमत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सिर्फ़ एक किलो की क़ीमत एक करोड़ रुपये से ज़्यादा होती है. यह दरअसल गांजा ही है, लेकिन साधारण गांजे से अलग.
सामान्य गांजे से कैसे अलग होता है हाइड्रोपोनिक वीड
इसे हाइड्रोपोनिक तकनीक से उगाया जाता है, यानी मिट्टी की जगह पोषक तत्वों वाले पानी में खेती. इसी वजह से इसमें THC का स्तर सामान्य गांजे से कहीं अधिक होता है, जो इसे बेहद नशीला बना देता है. इसे आमतौर पर सिगरेट या रोलिंग पेपर में भरकर पिया जाता है और यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय ड्रग नेटवर्क में इसकी मांग बहुत ज़्यादा है.
लेकिन असली सवाल यही है भोपाल अब ड्रग्स का हब बन चुका है?
92 करोड़ का मेफेड्रोन कारखाना भी भोपाल में पकड़ा जा चुका है
यह वही भोपाल है जिसके शांत गांव जगदीशपुरा में 16 अगस्त को DRI ने छापा मारकर 92 करोड़ का मेफ़ेड्रोन कारख़ाना पकड़ा था. वहां मिली मशीनें, केमिकल और तापमान नियंत्रित रिएक्टर साफ़ बता रहे थे कि यह कोई लोकल खेप नहीं थी, बल्कि डी-गैंग का विदेशी धंधा था.
भोपाल के ड्रग्स तस्करी रैकेट में डी कंपनी भी शामिल
सलीम डोला, जो कभी दाऊद का आदमी हुआ करता था, तुर्की से इस धंधे को चला रहा है. उसका भांजा मुस्तफ़ा कुब्बावाला इंटरपोल की रेड कॉर्नर नोटिस में वांछित है और नेटवर्क संभाल रहा है. इससे पहले अक्टूबर 2024 में बगरोदा इंडस्ट्रियल एरिया में भी 1800 करोड़ का मेफ़ेड्रोन कारख़ाना पकड़ा गया था. एक नकली ‘फ़र्टिलाइज़र यूनिट' दरअसल हाई-टेक नशे की फैक्ट्री थी.
लोकल पुलिस को क्यों नहीं मिलती खबर
इतनी बड़ी-बड़ी कार्रवाइयाँ हो रही हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि हर बार छापे मारती है कोई केंद्रीय एजेंसी कभी DRI, कभी NCB, कभी GST इंटेलिजेंस. स्थानीय पुलिस की नाक के नीचे करोड़ों का नशा पकड़ा जाता है और उन्हें भनक तक नहीं लगती?
सिंथेटिक ड्रग्स का नया नर्व सेंटर बना भोपाल
दो बार मध्यप्रदेश की धरती पर देश की सबसे बड़ी ड्रग फैक्ट्रियाँ पकड़ी गईं. हज़ारों किलो रसायन, करोड़ों का माल, इंटरनेशनल सिंडिकेट. पिछले एक साल में भोपाल से ही दो सबसे बड़ी फैक्ट्रियाँ और करोड़ों की खेप पकड़ी गई हैं. इसके बावजूद कोई राजनीतिक या प्रशासनिक जवाबदेही तय नहीं की गई.यह सवाल अब सिर्फ़ भोपाल का नहीं है, यह पूरे देश का है. क्या भोपाल अब भारत के सिंथेटिक ड्रग्स का नया नर्व सेंटर बन चुका है?
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