Afghanistan Crisis: भारत में रह रहे सैकड़ों अफ़ग़ानी रिफ्यूजी (शरणार्थी) दूसरे देशों के दूतावासों के बाहर हर रोज़ इस उम्मीद में खड़े हो जाते हैं कि शायद अमेरिका/ऑस्ट्रेलिया जैसे देश उन्हें अपने देशों में रिफ्यूजी का दर्ज़ा दे दें. इनमें से कुछ वो अफ़गानी महिलाएं भी हैं जिनके पति अफ़ग़ानिस्तानी फ़ौज में थे और तालिबान ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. 52 साल की ज़रगुना बारिश में एक दूतावास से दूसरे दूतावास भीगते हुए पैदल जा रही हैं. उनके पति अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में काम करते थे. करीब पांच महीने पहले तालिबान ने उन्हें गोली मार दी. ज़रगुना ने किसी तरह भारत में शरण ली लेकिन UNHCR कार्ड न होने के कारण उनको भारत में अन्य रिफ़्यूजियों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं.
UNHRC कार्ड बनाने के लिए ज़रगुना को दो साल बाद 'अपॉइंटमेंट' मिला है.ज़रगुना ने बताया कि उनके पति को 5 महीने पहले मार दिया था, वे राष्ट्रपति भवन में काम करते थे . जरगुना यहां भागकर आई पर यहां न कोई काम कर पा रही है, न कहीं बाहर जा सकते हैं. UNHRC कार्ड बनाने के लिए भी दो साल बाद का वक़्त मिला है. 35 साल की शहनाज़ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वे दो महीने पहले अपने पूरे परिवार के साथ भारत आई थीं. शहनाज़ के पति अफ़ग़ानिस्तान पुलिस में थे. दो महीने पहले वे तालिबान से लड़ने कांधार गए थे तबसे लापता हैं. शहनाज़ का भी UNHCR कार्ड नहीं बना है, इसके कारण यहां अपने बच्चों को पढ़ाना भी मुश्किल हो रहा है. शहनाज़ न भारत में काम कर सकती हैं और न ही बाहर से किसी और देश जा सकती हैं..
शहनाज़ ने बताया, 'मेरे पति का नाम शहाबुद्दीन था, उनका फ़ोन भी बंद हैं. हम बहुत ग़रीब हैं. बड़ी मुश्किल से यहां आए हैं. यहां UNHCR के बिना न मैं काम कर सकती हूं, न बच्चों को पढ़ा सकती हूं . ऑस्ट्रेलियाई दूतावास ने भी दूतावास के बाहर लगे एक पेड़ पर लिख कर टांग दिया है कि वो भारत में रह रहे अफ़गान शरणार्थी नहीं लेगा. यह नोटिस पढ़कर सब हताश हैं. हालांकि इसके बावजूद उम्मीद में बारिश में भीगते अपने छोटे बच्चों को लेकर ये यूके दूतावास चले जाते हैं. दरअसल, UNHCR कार्ड संयुक्त राष्ट्र द्वारा दूसरे देशों में रह रहे शरणार्थियों को दिया जाता है जिससे उन्हें उस देश के संसाधनों और योजनाओं में भागीदारी मिलती है.